आज
एंटी रेप बिल 2013 जो नया आया है हाल ही में, उसे पढ़ रहा था तो लगा कि इस
देश में संविधान के खिलाफ जाकर क़ानून बनने लगे है अब. महिलाओं के साथ होने
वाले अपराधों की वजह से समूचे पुरुष जगत को अपराधी मान लिया गया है और सारी
महिलाए सच्ची, निर्दोष और भोली भाली है. जिस संविधान ने स्त्री पुरुष को
बराबरी का मौका दिया है वहाँ आजकल हर जगह महिलाओं को प्राथमिकता दी जाने
लगी है यह ठीक है पर अब महिलायें जिस तरह से
सारे कानूनों का बेजा इस्तेमाल करके पुरुषों को येन-केन प्रकारेण फंसाने
का काम कर रही है वह बेहद शोचनीय और निंदनीय है. अभी समय है आने वाले समय
में इस तरह के भेदभाव से समाज में व्यापक हिंसा फैलेगी और ज्यादा हालात
खराब होंगे यह तय है...........अफसोस इसमे सबसे ज्यादा यह है कि ये सब
इस्तेमाल करने वाले पढ़ी-लिखी औरतें है जो खुद या तो दिमागी अवसाद से ग्रस्त
है या एकल हो गई है अपनी महत्वकांक्षाओं के चलते, या सिर्फ अपने आपको
पुरुषों से बढ़-चढ़कर दिखाने के चक्कर में हेकड़ी दिखाना चाहती है. मै कोई
महिला सशक्तीकरण के खिलाफ नहीं पर जिस तरह से हालात देख रहा हूँ उससे तो यह
लगने लगा है कि अगर अभी स्थिति नहीं सुधारी और ध्यान दिया तो आने वाले समय
में भारत का गृह युद्ध भाषा, साम्प्रदायिकता, वर्ग भेद या जाति पर नहीं
वरन पुरुष बनाम स्त्री पर लड़ा जाएगा.
युवा
लडकियों एवं महिलाओं द्वारा दहेज विरोधी क़ानून का कितना भयानक दुरूपयोग
किया जा सकता है इसका आज एक उदाहरण देखने को मिला मन बहुत दुखी हो गया है
........मै बता नहीं सका कि उस लडकी की क्या समझ थी और किस बेदर्दी से मेरे
मित्र को फंसाया गया यहाँ तक कि पुरे परिवार को जबकि यह कुछ भी संभव नहीं
था और मै खुद मेरे मित्र को जानता हूँ..........इस तरह से क़ानून का
दुरूपयोग करने पर सख्त सजा का प्रावधान होना चाहिए.......भाड़ में जाये
जेंडर के मुद्दें जब लडकियां इस तरह से अपनी वाली पर उतर आ रही है तो क्या
हमें चुप रहना चाहिए......? इसमे क़ानून में भी कई खामियां है जिनकी पडताल
आज लाजिमी है........
पिछले
तीन चार दिनों से सफर कर रहा हूँ बसों में ट्रेन में तो देखा कि जो
लडकियां अप-डाउन करती है घर से तो बिलकुल सती -सावित्री नुमा निकलती है
मुँह पर दुपट्टा बांधकर पर बस या ट्रेन में आकर वे विकराल रूप धारण कर लेती
है और जिस तरह के अश्लील और भद्दे मजाक करती है और लडको या सभ्य पुरुषों
के साथ, जो कई बार उनके पिता के समान होते है , उन्हें भी वे नहीं छोडती और
अश्लील फिकरे कसती है. बसों के क्लीनरों, ड्राईवर
और कंडक्टर के साथ जो ठिठोली होती है एक डेढ़ घंटे में वो बेहद शर्मनाक और
शोचनीय है. मोबाईल पर घटिया फ़िल्में देखना - दिखाना इस दौरान जारी रहता है.
मै कह रहा हूँ कि लडके भी कोई कम खुदा नहीं है पर अगर इस दौरान किसी गरीब
का हाथ गलती से इन हूरों को छू जाये तो ये एक साथ ऐसे आती है उस पर जैसे खा
जायेगी..........जबकि खुद दूसरों की सीट पर, पैर पर पाँव रखकर चलेगी, अपना
सामान ऐसे सौपेंगी बैठे हुए यात्रियों पर मानो इनके बाप ने किसी को इनका
सामान उठाने के लिए गुलाम मुक़र्रर कर रखा है. और ऐसे में यह एंटी रेप बिल
.ज़रा एक बार बैठिये बसों में देखिये इस तरह से सशक्त होती जा रही लडकियों
को जो बेहद घटिया मानसिकता और दूषित जहर लेकर हमारे आने वाले भारत की
तस्वीर बुन रही है..........
मूर्ख,
बेवक़ूफ़ और दिमाग से एकदम पैदल लडकियां सिर्फ अपने रूप रंग और मसखरी के बल
पर नौकरियां कर रही है ना उनमे अक्ल है ना काम करने की दक्षता और ना कौशल
जो अति आवश्यक होते है. ये सिर्फ सारा दिन अपने चाहते बॉस को या जिसने
उन्हें इसी रूप रंग के दम पर रखा है, को फोन करके पुरे दफ्तर की चुगली करती
रहती है और घटिया बातों से बॉस का दिल खुश रखती है. अपने आप को बेचकर ये
सशक्तीकरण का फ़ायदा उठा रही है- काम ना धाम बस
सत्यानाश.................ऐसे में बेचारे पुरुष जो काम करना भी चाहते है तो
दफ्तर की घटिया राजनीती का शिकार हो रहे है और फ़िर नौकरी से
बाहर..........और ऐसे में सरकार क़ानून पे क़ानून ला रही है जो पुरुषों को
दोयम दर्जे का नागरिक बना रहे है इसी देश में ..........जाये तो जाये
कहाँ.......
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