यह देवास के एक इठलाती हुई शाम थी जो आज अपने होने पर ही गर्व कर रही थी . मौका था नईम समारोह जो नईम फाउन्डेशन द्वारा आयोजित था, और अवसर था पदमश्री प्रहलाद टिपानिया का सम्मान , पूर्व जिलाधीश गौरी सिंह का सम्मान और कबीर भजन . यह बेहद आत्मीय कार्यक्रम था जहाँ सारे देवास के नए पुराने लोग खासकरके साक्षरता अभियान से जुड़े लोग एकत्रित थे और मिलजुलकर अपने पुराने दिनों को याद कर रहे थे. इंदौर, उज्जैन, भोपाल से भी लोग यहाँ आज आये थे छिंदवाडा के रोहित रूसिया ने नईम जी के गीतों को अपने सुरों से बांधा और फ़िर यह समां एक खुशनुमा सांझ मे तब्दील हो गया. नए पुराने ढेरों साथी मिले और फ़िर जमकर गप्प पुराने दिनों की बेहतरीन यादें और शिकवे गिले....प्रहलाद जी के भजनों से मालवा के लोग परिचित ही है पर आज जो उन्होंने झूमकर गाया वो अदभुत था और अंत मे कबीर की एक उलटबांसी से अपने भजनों का समापन किया बीच बीच मे वे समझा भी रहे थे कि कबीर क्या कहते है. भाई कैलाश सोनी के दो चित्र गौरी सिंह और प्रहलाद जी को जब भेंट किये जा रहे थे तो लगा कि ये सिर्फ भेंट ही नहीं बल्कि पुरे देवास का दर्शन, अपनत्व और संगीत का थाल सजाकर इन दोनों को दिया जा रहा है. इस कार्यक्रम मे महापौर, अधिकारी, नेता, साहित्यकार, आम लोग, संगीत प्रेमी, और ना जाने कौन कौन साथी मौजूद थे जिन्होंने इस शाम को एक अविस्मरणीय सांझ बना दिया. प्रोफ़ेसर अफजल साहब के पोतों और पोतियों द्वारा बनाई गई खूबसूरत रांगोली ने पुरे हाल मे एक ऐसी महक छोड़ी थी कि यह हमेशा याद रहेगी. लगा ही नहीं कि नईम या अफजल हमारे बीच नहीं है. जो लोग या साथी नहीं आ पायें निश्चित ही उनके लिए जीवन का यह दुखद पहलू रहेगा. गौरी को ठीक नवरात्र के दूसरे दिन पाकर देव-वास के लोग धन्य हो गये. साथ ही "ज़रा हलके गाड़ी हाँको मेरे राम गाडीवान" जैसा सुमधुर भजन हमेशा जेहन मे बना रहेगा........आज यहाँ वीरेंद्र जैन एवं राम मेश्राम की उपस्थिति मे नईम जी की याद मे एक स्मारिका का भी विमोचन किया गया. इस कार्यक्रम को सफल बनाने मे सुनील चतुर्वेदी, दिनेश पटेल, बहादुर पटेल, मनीष वैद्य, श्रीकांत उपाध्याय, संकेत सुपेकर, संजीवनी ताई, प्रकाश कान्त, अमेय कान्त, पारुल, दानिश, तनवीर नईम, मेहरबान सिंह, जीवन सिंह ठाकुर, संदीप नाईक, रईस भाई, सुदेश सांगते, केदार, भगवान, अभिषेक राठौर, सुलताना नईम, और अंत मे ड़ा समीरा नईम की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण थी इस लंबी चौड़ी टीम के अभाव मे यह कार्यक्रम अधूरा ही रह जाता. और अंत मे देवास के लोग जो हमेशा से हर तरह के अच्छे प्रयासों मे जी-जान से साथ देते है
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत
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