साहब मीटिंग मे है, मीटिंग चल रही है, कल साहब मीटिंग मे जाने वाले है, सबकी मीटिंग करके निर्णय कर लो, आभी टी एल मीटिंग चल रही है या जब भी किसी के पास जाओ तो वे मीटिंग मे जा रहे है, जा चुके है या जाने वाले है सो समय नहीं है......ये वो जुमले है जो अमूमन हर जगह बोले विचारे और झेले जाते है. मुझे लगता है कि इस देश से अगर मीटिंग खत्म हो जाये तो सारा विकास जो अवरुद्ध पड़ा है हो जाएगा. फ़िर लगा कि आखिर चक्कर क्या है सरकारी अधिकारी से लेकर एनजीओ और तमाम ना जाने कौन कौन से लोग मीटिंग ही करते रहते है.
फ़िर गहरी से सोचा और मित्रों से बातें की तो समझ मे आया कि मीटिंग सीखने सिखाने का जरिया है और इसलिए ब्यूरोक्रेट्स को ये मीटिंग भयानक पसंद है जब मन किया मीटिंग बुलवा ली. क्या आपने किसी विवि मे अकादमिक लोगों को इतनी बड़ी तादाद मे मीटिंग अक्रते देखा है या इशारों या भाभा परमाणु शक्ति केन्द्र के वैज्ञानिकों को बड़ी तादाद मे मीटिंग करते देखा है ? जवाब है नहीं तो अब समझिए इस मीटिंग का चक्कर .ब्युरोक्रेट्स तो रट्टा मारकर आयएएस बन गये, बचे खुचे जो अति महत्वकांक्षी थे जो ब्यूरोक्रेट्स ना बन पाने के अपराधबोध मे जीते रहे, वे पुराने जमाने के मेट्रिक थे सो चापलूसी और मख्खन लगाकर आय ए एस का ओहदा पा लिया और जा बैठे जिलों मे जहाँ इनके बाप दादे ज्ञान का खजाना लेकर बैठे थे या विभिन्न विभागों मे ज्ञान वाले लोग बैठे काम कर रहे है फ़िर क्या ये जो ब्यूरोक्रेट्स है (आयएएस) और ऐसे ही बड़े अधिकारी ज्ञान तो है नहीं दिमाग मे कूड़ा कचरा भरा है और फ़िर शिक्षा से लेकर मछली पालन, खनिज से लेकर स्वास्थय की समस्याएं इन्हें देखना है, सम्हालना है और बंटाधार करना है तो ये लोग हर विभाग की मीटिंग बुला लेते है और रौब गांठकर अधिकारी को छकाकर, चमकाकर, धमकाकर या रुला कर ज्ञान ले लेते है और उसी ज्ञान की सहायता से अगली मीटिंग मे उसी अधिकारी की खटिया खड़ी कर देते है.
एक अधिकारी महोदय को शिशु मृत्यु दर का नहीं मालूम था तो उन्होंने सिविल सर्जन को पूछा मीटिंग मे, जिला शिक्षा अधिकारी को पूछा सकल पंजीयन दर के बारे मे, खनिज अधिकारी को पूछा कि क्या प्रावधान है अवैध ढूलाई के, या वन अधिकारी को पूछा कि क्या नियम है छटवी अनुसूची के, तो ढपोर शंख अधिकारी इस तरह से मीटिंग की वृहद श्रंखला मे निष्णात होकर अच्छे अधिकारी बन जाते है, ठीक इसके विपरीत जो ज्ञानवान व्यक्ति है या जिसे अपने काम करने और सही तरीका मालूम है वो कभी मीटिंग नहीं करता और सीधे अपने काम पर लक्ष्य लगाकर अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर लेता है. ये सामान्यीकरण की प्रक्रिया है या जो लोग सामान्य ज्ञान लेकर भारतीय स्तर पर परीक्षा मे रट्टा मारकर आये है वे जीवन भर सामान्य ही बने रहेंगे और बने रहते है, इसलिए भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी भले ही कितना दहाडें पर वे असल मे एक सामान्य व्यक्ति से ज्यादा कुछ नहीं होते और जो भी होते है वे सिर्फ मीटिंग के भरोसे होते है इसलिए इन्हें मीटिंग बहुत प्रिय है.
अगर सरकार मीटिग पर प्रतिबन्ध लगा दे तो ये सारे तारे जमीन पर आ जायेंगे, बात सिर्फ अधिकारियों की ही नहीं है हमारे महानतम नेता भी से ही है क्या आप किसी नेता, मंत्री, मुख्यमंत्री को ज्ञानवान समझते है या किसी राष्ट्रपति या प्रधान मंत्री को महान ज्ञानवान समझते है, ड़ा अब्दुल कलाम या ड़ा मन मोहन सिंह की बात छोड़ दे, वे अपवाद है पर बाकि का गुना भाग करके देखे तो सारा माजरा समझ मे आ जाएगा दूसरा वे भी मीटिंग के तो दीवाने है और असली बात यह है कि हामरे देश मे ढपोल शंखी बहुत है और इनकी जिनकी जन संख्या है उससे ज्यादा मीटिंग होती है इसलिए यह देश चल भी रहा है वरना क्या बात है तू कोई सितमगर तो नहीं की तर्ज पर. खैर.....भगवान ना करें कि मीटिंग इस देश से कभी खत्म हो वरना तो सारे देश की प्रजा आफत मे आ जायेगी और फ़िर बचा खुचा ज्ञान भी जो ये निर्णायक लेते है मीटिंगों से वो खत्म हो जाएगा और जनता जनार्दन का तो कबाडा ही हो जाएगा.
फ़िर गहरी से सोचा और मित्रों से बातें की तो समझ मे आया कि मीटिंग सीखने सिखाने का जरिया है और इसलिए ब्यूरोक्रेट्स को ये मीटिंग भयानक पसंद है जब मन किया मीटिंग बुलवा ली. क्या आपने किसी विवि मे अकादमिक लोगों को इतनी बड़ी तादाद मे मीटिंग अक्रते देखा है या इशारों या भाभा परमाणु शक्ति केन्द्र के वैज्ञानिकों को बड़ी तादाद मे मीटिंग करते देखा है ? जवाब है नहीं तो अब समझिए इस मीटिंग का चक्कर .ब्युरोक्रेट्स तो रट्टा मारकर आयएएस बन गये, बचे खुचे जो अति महत्वकांक्षी थे जो ब्यूरोक्रेट्स ना बन पाने के अपराधबोध मे जीते रहे, वे पुराने जमाने के मेट्रिक थे सो चापलूसी और मख्खन लगाकर आय ए एस का ओहदा पा लिया और जा बैठे जिलों मे जहाँ इनके बाप दादे ज्ञान का खजाना लेकर बैठे थे या विभिन्न विभागों मे ज्ञान वाले लोग बैठे काम कर रहे है फ़िर क्या ये जो ब्यूरोक्रेट्स है (आयएएस) और ऐसे ही बड़े अधिकारी ज्ञान तो है नहीं दिमाग मे कूड़ा कचरा भरा है और फ़िर शिक्षा से लेकर मछली पालन, खनिज से लेकर स्वास्थय की समस्याएं इन्हें देखना है, सम्हालना है और बंटाधार करना है तो ये लोग हर विभाग की मीटिंग बुला लेते है और रौब गांठकर अधिकारी को छकाकर, चमकाकर, धमकाकर या रुला कर ज्ञान ले लेते है और उसी ज्ञान की सहायता से अगली मीटिंग मे उसी अधिकारी की खटिया खड़ी कर देते है.
एक अधिकारी महोदय को शिशु मृत्यु दर का नहीं मालूम था तो उन्होंने सिविल सर्जन को पूछा मीटिंग मे, जिला शिक्षा अधिकारी को पूछा सकल पंजीयन दर के बारे मे, खनिज अधिकारी को पूछा कि क्या प्रावधान है अवैध ढूलाई के, या वन अधिकारी को पूछा कि क्या नियम है छटवी अनुसूची के, तो ढपोर शंख अधिकारी इस तरह से मीटिंग की वृहद श्रंखला मे निष्णात होकर अच्छे अधिकारी बन जाते है, ठीक इसके विपरीत जो ज्ञानवान व्यक्ति है या जिसे अपने काम करने और सही तरीका मालूम है वो कभी मीटिंग नहीं करता और सीधे अपने काम पर लक्ष्य लगाकर अपने उद्देश्यों को प्राप्त कर लेता है. ये सामान्यीकरण की प्रक्रिया है या जो लोग सामान्य ज्ञान लेकर भारतीय स्तर पर परीक्षा मे रट्टा मारकर आये है वे जीवन भर सामान्य ही बने रहेंगे और बने रहते है, इसलिए भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी भले ही कितना दहाडें पर वे असल मे एक सामान्य व्यक्ति से ज्यादा कुछ नहीं होते और जो भी होते है वे सिर्फ मीटिंग के भरोसे होते है इसलिए इन्हें मीटिंग बहुत प्रिय है.
अगर सरकार मीटिग पर प्रतिबन्ध लगा दे तो ये सारे तारे जमीन पर आ जायेंगे, बात सिर्फ अधिकारियों की ही नहीं है हमारे महानतम नेता भी से ही है क्या आप किसी नेता, मंत्री, मुख्यमंत्री को ज्ञानवान समझते है या किसी राष्ट्रपति या प्रधान मंत्री को महान ज्ञानवान समझते है, ड़ा अब्दुल कलाम या ड़ा मन मोहन सिंह की बात छोड़ दे, वे अपवाद है पर बाकि का गुना भाग करके देखे तो सारा माजरा समझ मे आ जाएगा दूसरा वे भी मीटिंग के तो दीवाने है और असली बात यह है कि हामरे देश मे ढपोल शंखी बहुत है और इनकी जिनकी जन संख्या है उससे ज्यादा मीटिंग होती है इसलिए यह देश चल भी रहा है वरना क्या बात है तू कोई सितमगर तो नहीं की तर्ज पर. खैर.....भगवान ना करें कि मीटिंग इस देश से कभी खत्म हो वरना तो सारे देश की प्रजा आफत मे आ जायेगी और फ़िर बचा खुचा ज्ञान भी जो ये निर्णायक लेते है मीटिंगों से वो खत्म हो जाएगा और जनता जनार्दन का तो कबाडा ही हो जाएगा.
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