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मेरे प्रिय कवि अम्बर की कवितायें जो मुझे बहुत प्रिय है

केश धोना -

(परिचय)

शिशिर दिवस केश धो रही थी वह, जब मैंने

उसे पहली बार देखा था भरे कूप पर.

आम पर बैठे शुक-सारिकाएँ मेघदूत

के छंद रटते रटते सूर के संयोगों

भरे पद गाने लगे अचानक. केश निचोड़

और बाएं हाथ से थोड़े से ऊँचे कर

उसने देखा और फटी धोती के टुकड़े

से पोंछ जलफूल उठी नील लता सी. चली.

दो चरण धीमे धरे ऐसे जैसे कोई

उलटता पलटता हो कमल के ढेर में दो

कमल. कमल, कमल, कमल थे खिल

रहें दसों दिसियों. कमल के भीतर भी कमल.

केश काढना

{झगड़ा}

श्यामा भूतनाथ की केश काढती रहती

हैं. नील नदियों से लम्बे लम्बे केश

उलझ गए थे गई रात्रि जब भूतनाथ ने

खोल उन्हें; खोसीं थी आम्र-मंजरियाँ

काढतें काढतें कहती हैं 'ठीक नहीं यों

पीठ पर बाल बिथोल बिथोल फंसा फंसा अपनी

कठोर अंगुलियाँ उलझा देना एक एक

बाल में एक एक बाल. मारूंगी मैं

तुम्हें, फिर ऐसा किया तुमने कभी.

देखो कंघा भी धंसता नहीं

गाठों में'. 'सुलझा देता हूँ मैं', कह

कर उसने नाक शीश में घुसा

सूंघी शिकाकाई फलियों की गंध.

'हटो उलझाने वाले बालों

को. जाओ मुझे न बतियाना.' भूतनाथ ने

अंगुली में लपेट ली फिर एक लट.

सिन्दूर लगाना

{डपटना}

छोटे छोटे आगे को गिरे आते चपल

घूँघरों में डाली तेल की आधी शीशी ,

भर लिया उसके मध्य सिन्दूर और ललाट

पर फिर अंगुली घुमा घुमा कर बनाया उसने

गोल तिलक. पोर लगा रह गया सिन्दूर

शीश पर थोड़ा पीछे; जहाँ से चोटी का

कसा गुंथन आरम्भ होता हैं, वहां पोंछ

दिया. उसे कहा था मैंने 'इससे तो बाल

जल्दी सफ़ेद हो जाते हैं.' हंसी वह. मानी

न उसने मेरी बात. 'हो जाए बाल जल्दी

सफ़ेद. चिंता नहीं कल के होते आज हो

जाए. मैं तो भरूंगी खूब सिन्दूर मांग

में. तुम सदा मुझ भोली से झूठ कहते हो.

कैसे पति हो पत्नी को छलते रहते हो

हमेशा. बाल हो जायेंगे मेरे सफ़ेद

तो क्या? मेरा तो ब्याह हो गया हैं तुमसे.

तुम कैसे छोड़ोगे मुझे मेरे बाल जब

सफ़ेद हो जांयेंगे. तब देखूंगी बालम.'


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