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पिछले दिनो एक शादी मे इन्दोर गया था. अर्पित मेरा पुराना पडोसी था महू मे जब मे सेना के एक विद्यालय मे प्रशासनिक अधिकारी के पद पर काम करता था अर्पित वही रहता था गुप्ता कालोनी मे. तब अर्पित बारहवी में पढ़ रहा था. कालांतर में अर्पित ने इंदौर के किसी कॉलेज से बी ई किया और फिर टी सी अस में नौकरी की आजकल वो अमेरिका में है. अर्पित पिछले दो वर्षो से अमेरिका में है कमोबेश वो रोज़ ही मेल पर ऑन लाइन रहता है और वहा की दुनिया के बारे में बड़ी संवेदना के साथ मेरे साथ बतियाता रहता है. एक अच्छी बात यह है की वह रहकर भी वो अभी पूर्णतः भारतीय बना हुआ है और यही उसकी खूबी मुझे भाती है.अर्पित की शादी तय होते ही मुझसे कहा था और वादा लिया था की में ज़रूर आउंगा सो यही वादा निभाने में इंदौर गया था ११ दिसंबर की शादी थी . पहले अमित की सोडा शॉप पर गया वहा मयंक मिला एक पुराना शागिर्द फिर उसने पलासिया पर छोड़ा फिर उसके बाद यंत्रणा का एक बेहद कठिन सफ़र शुरू हुआ.
पलासिया से ऑटो लिया था राजीव गांधी चौराहा तक क्योकि शुभ कारज उद्यान वही था. यह पुरे एक घंटे की यात्रा थी दहशतगर्द और भयावह ...
धूल और गन्दगी , ट्राफिक और भीड़ , वाहनों का शोर और बेतरतीब व्यवस्था
कोई किसी का माई बाप नहीं और कोई किसी की सुनने को तैयार नहीं सब अपने मन की मर्जी के मालिक और यातायात पुलिस अपने कर्तव्य से दूर खडी निहार रही थी
आखिर लोग भी क्या करे ............??
मुझे दुःख हुआ पर क्या इसी इंदौर के विकास और सिंगापूर बनाने की बाते हो रही है
सारे लोग परेशां है रोज़ मीडिया चीखता है दुर्घटनाये होती है किसी का बेटा मरता है किसी की माँ किसी का सुहाग उजड़ता है किसी का एक मात्र कमाई का सहारा पर किसे परवाह है " जन " की
" ये इंदौर शहर हादसों का शहर है , यहाँ ज़िंदगी एक लम्बा सफ़र है....." ऑटो वाला गा रहा था उसने छककर शराब पी राखी थी मैंने कहा की में शिकायत करूँगा तो बोला कर दो साहब ये पुलिस वाले भी तो पीकर ही जिंदा है........
सब साले पचास की पट्टी पर बिक जाते है
सारा शहर प्रदेश के एक विधायक और मंत्री की निजी मिल्कियत है , कोई जमीन खरीद ही नहीं सकता , मुख्यमंत्री ने क्या उखाड़ लिया , और फिर ये सड़क के ठेके भी तो बड़े बड़े लोगो को मिले है साहब जो ऊँची पीते है ... मेरे पीछे क्यों पड़े है में तो आपको धूल डंगर से बचाकर इतनी दूर छोड़ रहा हूँ ........ जाओ साहब ये शहर तो कभी नहीं सुधरेगा ........ हाँ एक शर्त पर सब कुछ ठीक हो सकता है की राजनेता यहाँ से हट जाये और कोई जोरदार कलेक्टर आ जाये जो सबकी वाट डाल दे , सीधा क़ानून का राज लागू कर दे . अभी तो गुंडों और मवालियों का शहर है साहब ....... में चुपचाप बैठा था और सोच रहा था की जहा से मैंने पढाई की उस भवर कुआँ के चौराहे की क्या हालत हो गयी है सारे कॉलेज सिकुड़ गए है और यह सब शहरीकरण के नाम पर हो रहा है
जवाहर लाल नेहरू अरबन योजना के नाम पर अरबो रूपया बहाया जा रहा है शहर के सौन्दर्यीकरण में पर क्या मिला इस शहर को सिर्फ गर्द और गुबार .............

कहा है इदौर और मालवा के रखवाले , कहा है मेयर , मीडिया और मोब औरर वो सब जो इंदौर के भले की सोचते है
याद आया रेडियो मिर्ची का वो नारा " यहाँ भी खुदा , वहा भी खुदा : और जहा नहीं खुदा वह हम खोद देंगे......"

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