इलाहाबाद से लौटकर काम और द्वाबा उत्थान एवं विकास समिति की सुखद स्मृतियाँ और कौशाम्बी जिले में भयानक बदतर हालत कुपोषण की, बच्चों, किशोरियों और गर्भवती महिलाओं में सबसे ज्यादा असर सपा सरकार और घटिया राजनीती के शिकार, परन्तु निष्क्रिय प्रशासन और व्यवस्था पाकर दुःख हुआ. एक तस्वीर काम करने वाले जांबाज सिपाहियों के साथ जिसके नेता परवेज भाई है, दूसरी तस्वीर मित्र Santanu Sarma के साथ और तीसरी तस्वीर बाल मजदूर को लेकर लिखी गयी अदभुत कविता जो पुरे हालात का जिक्र करती है उसके जीवन का.
सही कहा था आलोक ने जीवन में छोटी सी उम्र बिताने के लिए दो चार लोगों का और दो चार दोस्तों का होना ही पर्याप्त है.
अब अपने शहर और अपने लोगों को, दोस्तों को इतने लम्बी अवधि के लिए छोड़ने की हिम्मत नहीं होती.............ये उम्र का असर कह लें या स्नेह के बंधन, अपनी फिजां की आदतें या अपने पेड़ पौधों की महक पर अब नहीं होता और अब सोचकर ही इतना लंबा निकलूंगा....
शहर जितना बड़ा होता है उतना ही निष्ठुर होता जाता है ऐसे में लोग अपनी प्राथमिकताएं तय करते है तो कोई गलत नहीं बस धिक्कार् और थू-थू करने को जरुर जी करता है मानव मशीन बन चुके लोगों और झूठे मक्कार लोगों पर .
पान तो भैया अपने मालवे में ही मिलता है , ई इलाहाब्बाद में तो कछु मजा नहीं आया, सब ससुरा पीला पत्ता खिला देते है, सही है ममता दीदी के राज से पुत्तर प्रदेश में आते-आते जान निकल ही जायेगी ना पनवा की फिर बांग्ला हो, मालवी या कुछ और....
दफतने तर्के ताल्लुक में भी रुस्वाई है,
उलझे दामन को छुड़ाया नहीं करते झटका देकर ।
एक गम्भीर सवाल पूछ रहा हूँ, ये लाइव चैनल्स पर ज्ञान बांटने तथाकथित विशेषज्ञ बैठते है उन्हें सुनता कौन है?
अब जी ऊब गया है बकवास और व्यर्थ बहस सुनकर कार्यक्रम के बाद सब लोग चाय बिस्किट साथ लेते होंगे और चैनल्स की पुल कार सबको एक ही ठेले में सबको घर छोड़ती होगी.
लिफाफा भी खोलकर देखते होंगे कि कम ज्यादा तो नही दिया ?
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