वैसे इस वर्ष मौसम वैज्ञानिकों ने (जी हाँ भारतीय महान सरकारी विभाग के वैज्ञानिकों ने ) भविष्यवाणी की थी कि बरसात कम होगी भला हो हमारी आस्था और विश्वास का कि समय रहते कवेलू ठीक कर लिए , फेर लिए, छत ठोंक दी, रिसती दीवारों पर हाथ फेर लिए, रेनकोट भी खरीद कर रख लिया, छतरी की ताड़ी सुधरवा ली, प्लास्टिक के जूतों को सिल्वा लिया, भुट्टे खरीदकर रख लिए, मूंगफली सेंक ली, सोलर वाली इमरजेंसी लाईट रोज चार्ज करके रख लेते हेंगे, और सायकिल को गिरीस पेंटिंग डेंटिंग करवा कर रख लिया, नई तो भिया सई के रिया हूँ वाट लग जाती......... कुछ भी बोलते है यार ये लोग भी क्यों.......भिया ???
भाई Nalin Ranjan Singh ने एक गंभीर मुद्दे की ओर ध्यान आज दिलाया है
"राजधानी लखनऊ के 1850 स्कूलों में पढ़ने वाले 1.83 लाख बच्चों में 91 हजार यानी 50 फ़ीसदी बच्चे पढ़ने नहीं आ रहे हैं जबकि इन स्कूलों में पंजीकृत 1.83 लाख बच्चों में पात्र बच्चों को स्कालरशिप भी जारी कर दी गयी थी | सभी बच्चों को ड्रेस और किताबें भी दी गयी थीं |
यह मेरी नहीं डी.एम्.राजशेखर की रिपोर्ट है | इसमें यह भी जोड़ दें कि मिड डे मील भी बन ही रहा होगा"
मप्र की स्थिति भी इससे कोई जुदा नहीं होगी, मप्र में यदि कोई एनजीओ या स्वतंत्र रूप से मूल्यांकन करें तो शायद स्थिति समझ आये. लखनऊ के बारे में मेरा आकलन है कि दरअसल में यूपी में दिल्ली के बड़े शिक्षाविदों ने जो शिक्षाविद कम ठे्केदार ज्यादा है, ने कुछ स्थानीय मास्टरों का शोषण करके और उन्हें बरगला कर या फुसलाकर सारा कबाड़ा किया है. हरदोई से लेकर SIEMAT SCERT और ना जाने कहाँ कहाँ से ये लोग घूस गए है.. मैंने खुद इन्हें लखनऊ में अधिकारियों से हाथ मिलाते देखा है और कमाए धन से एकड़ों जमीन खरीदी है दिल्ली से लेकर बनारस तक......बेसिक इंसानियत नहीं है शिक्षा क्या देंगे ये भिक्षाविद.?
ये जो हाथी को लेकर भीख मांगने हट्टे कट्टे साधू संत निकल पड़ते है जो हाथी को गजानन्द और गणेश कहकर भीख कपडे अनाज बर्तन मांगते है, ये लोग वन विभाग को दिखाई नही देते ? खुले आम सड़कों पर ट्राफिक जाम करते जाते है और बेशर्मी से चिल्लाकर ध्वनि प्रदूषण भी करते है।
वही दूसरी ओर एक आदिवासी की गाय, बकरी या भैंस जंगल में घूस जाए तो जंगल विभाग इस गरीब को जेल में डाल देता है, 5000 हजार जुर्माना वसूलता है और ना जाने क्या क्या तोहमते लगाकर उसे लकड़ी चोर , बाघों का हत्यारा साबित कर देता है और इन सड़कों पर घूमने वालों मुस्टंडे साधुओं के भेष में निकम्मों को भीख देकर दुआएं लेता है क्या? मजेदार यह है कि समाज के सारे जिम्मेदार लोग मूक रहते है और दुआएं बटोरते है।
वाह रे जंगल के रखवालों !!!!
जो भाजपा अपने गिरेबां के शिवराज, सुषमा, वसुंधरा, निहालचंद्र, रमनसिंह, अमित शाह , जेटली, उमा भारती, , तमाम तरह के ढोंगी पाखण्डी साधू साध्वी जो संसद में अनाचार फैला रहे है और खुद मोदी जो देश की आँख में धूल झोंक रहे है उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नही करती उस पार्टी की सुमित्रा महाजन ने 25 सांसदों को निलम्बित कर अपनी कूप मण्डूक मानसिकता दिखा दी है. स्पीकर के रूप में उनका यह काला कार्यकाल याद रखा जाएगा। और मजेदार यह है कि मप्र में शिवराज जैसे भृष्ट और व्यापम में लिप्त मुख्यमंत्री ने विधान सभा तीन दिन में बन्द कर दी और भाग खड़े हुए. इतने लोकतांत्रिक है तो हिम्मत से मानसून सत्र चलाते ! पिछले दो बार से सदन में बैठने की हिम्मत नही पड़ रही और सुमित्रा जी जरा अपने 25 साल के अपने कार्यकाल को याद करो इंदौर में जो आपने रायता फैलाया है उसे समेटने में सदियाँ लग जायेगी. इंदौर को एक शहर से झुग्गी बनाने में और टुच्चे नेताओं को मंत्री बनाने में आपको हमेशा याद किया जाएगा. कितने दिन रहती है आप यहां और करती क्या है सिवाय मराठी ब्राह्मणों के जनेऊ संस्कारों में जाने के ? संसदीय मर्यादा - उफ़ ये शब्द तो अब देश के लिए कलंक हो गया है !!!
फिर आ गए है ये कारे बादल, बरस रहा है नेह और मन के किसी कोने में धधकती ज्वाला शांत हो चली है... अबकी बार इस बदली के साथ सब बरस जायेगा तो रिक्त होता सा लगूंगा और रिसते हुए टिप टिप बहुत अंदर किसी धरती के मुहाने से किसी क्षितिज में समां जाऊंगा और एक दिन फिर से अलस्सुबह किसी शुक्र तारे की आंच में तुम्हारे आँगन में एक कोंपल बनकर फिर उग आऊंगा, देखना तुम पहचान नही पाओगे... ये जो बादल है ना अपने साथ बड़ी कहानियाँ भी समेट लाते है इनकी झोली में सिर्फ नेह की बूंदें ही नही एक सृष्टि का अवसान और प्रारब्ध भी छुपा होता है... सुन रहे हो ना...कहाँ हो तुम.... तुम्हारे लिए....
पोर्न का विरोध वो कर रहे है जो चौबीसों घंटे इसी में डूबे रहते है, कवि सम्मेलनों में जाकर बदनाम होते है और बावजूद उसके भी लगे रहते है अपनी कुंठा मिटाने में और अब सद्व्यव्हारी बनकर ज्ञान बाँट रहे है..............
उपदेशों ही मूर्खानां...............!!!
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