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सिर्फ याद आ रहा है चचा ग़ालिब का एक शेर

आज दे दे इजाजत दोस्तों.............

मैंने पिछले बरस ही कहा था कि इनका मकसद कुछ और नहीं अपनी पुरानी तडफ और गहरी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करना है राजनीती तो अभी भी बहाना है असली मकसद कुछ और है ये अन्ना को सिर्फ यूज कर रहे है और सरकार में बैठे लोग बहुत घाघ है युही बाल सफ़ेद किये है सरकार ने, मेरी नजर में सरकार ने कोई बात न करके बहुत अच्छा किया, ना बात की ना गिरफ्तार किया, ना अनशन छुडवाने कोई नेता आएगा, ना किसी भी लोकपाल या समिति बनाने की बात की, और इस बहाने मीडिया को भी अपनी औकात याद आ गयी और अन्ना टीम को भी भीड़ के बहाने अपनी स्थिति समझ आ गयी है, देश में कोई बड़ा समर्थन जमा नहीं कर पाई. राजनैतिक दल भी दूर हो गये है, मेरे वोट को यह टीम बेइज्जत करके कैसे रहेगी. मेरा दावा है यदि अन्ना एक विधानसभा की भी सीट जीत ले बाकी टीम के सदस्यों का जीतना तो बहुत दूर की बात है. ये ना गांधी का मार्ग था ना इरोम शर्मिला का मार्ग है, ना किसी शकर गुहा नियोगी का मार्ग था, ना दुनिया में किसी भी आंदोलन का. जिस तरह से दिल्ली का आंदोलन खत्म हो रहा है, विकेन्द्रीकरण के नाम पर अब नई राजनीती शुरू करना है और इस बहाने से देशभर के लोगों का दो साल से सिर्फ समय बर्बाद कर रहे है.   


"बहुत बेआबरू होकर तेरे कुचे से हम निकले, बहुत निकले मेरे अरमां लेकिन फ़िर भी कम निकले"

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