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मोबाईल देने का विरोध क्यों ???

सेम पित्रोदा ने स्व राजीव गांधी को कंप्यूटर युग का स्वप्न दिखाया था तो भी हमारी पीढ़ी ने बहुत विरोध किया था और कहा था कि इससे बेरोजगारी बढ़ेगी आदि आदि, आज हम सब लोग इसके फायदे देख ही रहे है. मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि वैसे भी इस देश में सूचना क्रान्ति आ चुकी है यदि सबके पास आधार कार्ड जा रहा है तो बी पी एल परिवारों को मोबाईल देने का विरोध क्यों , यह सही है कि देश में अभी हम रोजी - रोटी और मकान, बिजली पानी और स्वास्थय जैसी बुनियादी समस्याओं से जूझ रहे है, निश्चित ही मोबाईल इन सबका हल ना है, ना होगा.... पर यकीन मानिए आने वाले पांच सालों में हालात एकदम बदल जायेंगे यह मेरा पक्का मानना है. सरकार के जो भी मंतव्य हो, दबी - छुपी भावनाएं हो, चुनाव की ओर इशारे हो, ट्रेस करने के उद्देश्य हो, फील्ड मोनिटरिंग की बात हो, संदेश देने की बात हो, या सामुदायिक सूचना प्रणाली को मजबूत करने की बात हो हमें एक नई आशा और उम्मीद के साथ इस पहल का स्वागत करना चाहिए. कम्युनिटी रेडियो को लेकर भी इस तरह के पूर्वाग्रह उठे थे मुझे याद है शुरू में हालांकि अभी भी पेचीदगियाँ है इसमे, पर आज यह एक बड़ा हथियार बना है दूरदराज के इलाकों में बदलाव का, यही बात दूरदर्शन पर भी लागू थी, खैर बहुत उम्मीदों से आशा के साथ मै इस पहल को देख रहा हूँ कि इससे दूर दूर तक फैले हमारे गाँव में सूचना का संजाल फैलेगा और हम तक सही बात सीधे पहुंचेगी यह तो तय है अब हमें तय करना है कि इस सही सूचना का क्या करे.........मुझे तो लगता है कि अब लोगों को "वर्चुअल वर्ल्ड" में रहने, अपना स्थान बनाने और उपयोग करके प्रेशर बनाने की ट्रेनिंग देनी चाहिए, बहुत हो चुके जागरूकता और लोक लुभावन कार्यक्रमों के चुतियापे...........

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आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

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