Skip to main content

प्रशासन पुराण 56



कल एक वरिष्ठ साथी से बात हो रही थी जो लंबे समय तक म् प्र नरोन्हा प्रशासनिक अकादमी में बतौर फेकल्टी रहे है और आजकल कुछ सहयोग करते रहते है. कह रहे थे कि देश का सुशासन करने के लिए जिन भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को चुना जाता है और लबासना मसूरी में भेजा जाता है इन्हें वहाँ यह बार बार सिखाया जाता है कि तुम देश के कर्णधार हो और अब देश तुम्हारे ही भरोसे है इसलिए अपना "इगो" कायम रखते हुए और सबको म
ुर्ख समझकर काम करो, यह "पेम्परिंग" इन्हें जीवन भर ज़िंदा रखती है और गर्व और इगो साथ ही अपने ही आप में मस्त रहकर ये अधिकारी देश का सत्यानाश कर डाल रहे है. ना इन्हें जन की फ़िक्र है, ना लोक की, ना लोकतंत्र की. जब तक लबासना का ढांचा मूल रूप से बदला नहीं जाता मेरा मतलब वहाँ पर दो वर्ष के प्रशिक्षण को ठीक से वर्तमान सन्दर्भों में लागू नहीं किया जाता तब तक देश में ऐसी ही ढीलपोल चलती रहेगी. मै कभी से कह रहा हूँ कि भा प्र से के अधिकारी की जिले में निरंकुशता पर लगाम लगायी जानी चाहिए. मेरी नजर में बराक ओबामा और भाप्रसे का अधिकारी पूरी दुनिया को अपनी जेब में रखकर चल रहा है और जो मर्जी वो कर रहा है. जिले में जिलाधीश नामक व्यवस्था खत्म की जाये और ये तथाकथित हाई क्लास ब्यूरोक्रेट्स जमीन से जुड़े और सच में लोकसेवक की मंशा अनुरूप काम करें. इतने आयोगों ने इन सुधारों के लिए अनुशंषाएं की है पर कहाँ किसी को फर्क पड़ा, नेता पांच साल के लिए आते है और बस ये सबका बेंड बजा देते है ......नियम कायदे तो बदले जा सकते है पर इनको कौन कब बदलेगा.....

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...