पानी का रौद्र रूप चारों ओर देखा है आपने कभी, आप लोग जो रूखे सूखे शहरों से आते हो हमारे शहर को नजर लगाते हो, यहाँ मै जन्मा हूँ ये दीगर बात है कि बाहर पढ़ा और बाहर रहा हूँ, ये बूढ़े माँ- बाप मुझसे उम्मीद रखते है कि मै कमाऊ धमाऊ और उनके पाप धो लू, कर्जा फेड डू, पर क्या इतना आसान है सब, इस शहर के लोग टुच्चे है सब साले नर्मदा हर- हर करके रोज पानी- पानी करते है, अपनी ओलादों से क्यों उम्मीद करते है, मै बढता जा रहा हूँ, एक नौकरी नहीं है तो क्या, शादी तो होना चाहिए ना, क्या मै इंसान नहीं हूँ, दारु पीता हूँ तो क्या एब है... बस एक सपना है कि नियाग्रा के फाल पर खडा होकर एक अपने पसंदीदा ब्रांड का सिगरेट पीना चाहता हूँ और जो धुआँ उड़ेगा उसमे मेरा भविष्य कितना शानदार होगा यह आपने कभी कल्पना की है श्रीमान जी ??? आज मेरे घर में पानी घूस आया तो आप लोंग चले आये यहाँ समाज सेवा करने , क्यों इन नामुराद बस्ती के लोगों को बचा रहे है मरने दो इन्हें, नर्मदा हर- हर करके इन्होने नर्मदा को कोपित किया है अब पानी इनके घरों में भर रहा है तो जाने दो, डूबने दो, सबको वैसे भी ज़िंदा रहकर ये क्या कर लेंगे, देखो मेरे बूढ़े माँ - बाप.. अभी भी नमामि नर्मदे देवी का जाप कर रहे है, वो देखो बस्ती डूब रही है, समाज सेवा के टुच्चे लोग सड़े गले आलूओं की सब्जी और रेपसीड तेल की पूडियां लेकर बांटने आ गये है, अपने घरों के पोतड़े उठाये यहाँ बांटने आ गये है, अब शासन भी मुआवजे के चंद टुकड़े बांटकर अमर हो जाएगा और हमसे वोटों की भीख मांगेगा, हेलीकॉप्टर में बैठकर सहानुभूति दिखाने वाले मैंने बहुत देखे है, और ये मीडिया के लोग हमारे घरों के फोटो खींचकर क्या दिखाएँगे जमाने को हमारी गरीबी या नंगापन.......???अरे जाओ साहब मै चंडीगढ में पढकर आया हूँ और मेरे नियाग्रा फाल के ऊपर खड़े होकर सिगरेट पीने के ख्वाब में बाधा मत बनो, मै सबको जानता हूँ आप सब ढोंगी है .......ये शहर ऐसे ही डूबेगा और यहाँ के लोग इसी नर्मदा में नर्मदे हर हर करते रहेंगे सड़ेंगे, गलेंगे और मरेंगे...........(नर्मदा के किनारे से बेचैनी की कथा VII)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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