Skip to main content

प्रशासन पुराण 46

जंगल के छोटे मोटे जानवर चौकीदार से सब परेशान थे, कई बार ये हुआ कि चौकीदार ने एकाध छोटे मोटे दलित से जानवर को डरा धमाका दिया, यहाँ तक कि चांटा भी मार दिया था. सभी बेचारे जंगल के धृतराष्ट्र से मिले पर कुछ नतीजा नहीं निकला, धृतराष्ट्र ने कहा कि मै कुछ नहीं कर सकता और फ़िर ये मेरे न्याय क्षेत्र में नहीं आता, जानवर परेशान थे चौकीदार का प्रकोप बढ़ रहा था जंगल में अराजक्ताएं फैलना शुरू हो गयी सारी फाईलों पर जाम लग गया विकास रुक गया अब दो पाले थे एक चौकीदार का और एक इन दलित सताए जानवरों का, दिनों दिन समस्याए बढती जा रही थी, चौकीदार को राज्याश्रय था और धृतराष्ट्र का खुला समर्थन( माफ कीजिये थोड़ा गडबड मामला है कि धृतराष्ट्र और जंगल का क्या रिश्ता है पर जब राजा अंधा हो जाए तो उसे और क्या कह सकते है? ) यही वह धृतराष्ट्र है जो अपने जंगल के ईमानदार खरगोश को जिसका कुछ लेना देना नहीं है ना ही बेईमानी से कमाना खाना है उसे भी आगे कर मरवाने का पूरा इंतज़ाम कर चुका था वो तो भला हो देवदूतो का जिन्होंने उसे बचा लिया, खैर, अब धृतराष्ट्र से भी नाराज होकर एक दिन सारे दलित जानवर जंगल के राजा के पास चले गए अपने काम से छुट्टी लेकर!!! यह तो सरासर चौकीदार के खिलाफ शंखनाद था राज विद्रोह!!! पर कहा किसी को किसी की सुनना है, सब आजकल ऐंठते है ऐसे - जैसे खजूर हो पर मामला तो गंभीर है बाकी सब चकित है कि पुरे राज्य में फैले इस प्रहसन पर किसी को चिंता नहीं है यही तो भैया जंगल राज में नौकरी करने की मनमानी और ऐश है, यही किसी ठेकेदार के यहा ये पानी भरने जाते तो ना चौकीदार हावी होता ना दलित जानवर. बस इस पूरी रामायण में परेशान है तो वे छोटे मोटे कीड़े मकोड़े जो अपनी छोटी सत्ताओ के रखवाले है और उन पर निर्माण से लेकर विकास तक की जिम्मेदारी है कितना देंगे सबको देकर भी नंगे हो गए है और सरकार है "अतुलनीय जंगल" के होर्डिंग लगाकर शेरो को (जोकि जो मूलतः गीदड है) को प्रमोट कर रही है ( प्रशासन पुराण 46)

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही