जंगल के छोटे मोटे जानवर चौकीदार से सब परेशान थे, कई बार ये हुआ कि चौकीदार ने एकाध छोटे मोटे दलित से जानवर को डरा धमाका दिया, यहाँ तक कि चांटा भी मार दिया था. सभी बेचारे जंगल के धृतराष्ट्र से मिले पर कुछ नतीजा नहीं निकला, धृतराष्ट्र ने कहा कि मै कुछ नहीं कर सकता और फ़िर ये मेरे न्याय क्षेत्र में नहीं आता, जानवर परेशान थे चौकीदार का प्रकोप बढ़ रहा था जंगल में अराजक्ताएं फैलना शुरू हो गयी सारी फाईलों पर जाम लग गया विकास रुक गया अब दो पाले थे एक चौकीदार का और एक इन दलित सताए जानवरों का, दिनों दिन समस्याए बढती जा रही थी, चौकीदार को राज्याश्रय था और धृतराष्ट्र का खुला समर्थन( माफ कीजिये थोड़ा गडबड मामला है कि धृतराष्ट्र और जंगल का क्या रिश्ता है पर जब राजा अंधा हो जाए तो उसे और क्या कह सकते है? ) यही वह धृतराष्ट्र है जो अपने जंगल के ईमानदार खरगोश को जिसका कुछ लेना देना नहीं है ना ही बेईमानी से कमाना खाना है उसे भी आगे कर मरवाने का पूरा इंतज़ाम कर चुका था वो तो भला हो देवदूतो का जिन्होंने उसे बचा लिया, खैर, अब धृतराष्ट्र से भी नाराज होकर एक दिन सारे दलित जानवर जंगल के राजा के पास चले गए अपने काम से छुट्टी लेकर!!! यह तो सरासर चौकीदार के खिलाफ शंखनाद था राज विद्रोह!!! पर कहा किसी को किसी की सुनना है, सब आजकल ऐंठते है ऐसे - जैसे खजूर हो पर मामला तो गंभीर है बाकी सब चकित है कि पुरे राज्य में फैले इस प्रहसन पर किसी को चिंता नहीं है यही तो भैया जंगल राज में नौकरी करने की मनमानी और ऐश है, यही किसी ठेकेदार के यहा ये पानी भरने जाते तो ना चौकीदार हावी होता ना दलित जानवर. बस इस पूरी रामायण में परेशान है तो वे छोटे मोटे कीड़े मकोड़े जो अपनी छोटी सत्ताओ के रखवाले है और उन पर निर्माण से लेकर विकास तक की जिम्मेदारी है कितना देंगे सबको देकर भी नंगे हो गए है और सरकार है "अतुलनीय जंगल" के होर्डिंग लगाकर शेरो को (जोकि जो मूलतः गीदड है) को प्रमोट कर रही है ( प्रशासन पुराण 46)
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