प्रदेश के जंगल में राजा रानी सुख से रहते थे गीदडो की फौज थी सियार थे लोमड़िया थी और गिरगिट भी थे. गाहे बगाहे अंतर्राष्ट्रीय गिरगिट आकर राजा रानी को जंगल की हकीकत बताते और दुनिया जहां में होने वाले परिवर्तनों की आँधियों और बयार से वाकिफ कराते ये बाहरी गिरगिट राजा को और उसके सियारो को खूब ऐश कराते सैर सपाटा और खाना पीना और भी कुछ कुछ इसलिए इनकी राजा के दरबार में तूती बोलती थी. एक गीदड जंगल के खजाने की देखभाल करता था जिसमे जंगल के खनिज और सारे पदार्थ हुआ करते थे, ये गीदड राजा के सामने हमेशा नत मस्तक रहता था बड़ी बेशर्मी से सबके सामने राजा को साष्टांग प्रणाम कर लेता था, इसीके चलते एक बार हाथी ने इसको जंगल के एक प्रांत से हटा भी दिया था पर रानी की कुछ ऐसी कृपा दृष्टि रही कि वो फ़िर से राजा के दरबार में विश्वस्त बनकर पहुँच गया, इस पर कई लोमड़ियों ने कई बार हमले किये, इसने जंगल के थाने में रपट लिखाई और ये हमेशा बच गया क्योकि राजा का खास आदमी था. पर अबकी बार मामला गंभीर था, जब ये गीदड एक कोयला दलाल के सौजन्य से दूर देश के जंगल में ऐयाशी करने गया था तो राजा को आने वाले चुनावो की भनक लग गयी राजा को लगा कि इस गीदड ने मेरा खजाना भरते हुए अपना भी भला कर लिया और रानी के इस गीदड पर उमड़े प्यार से भी राजा बेचैन हो गया बस जब यह गीदड बाहर था तो राजा ने उसका विभाग छीनकर किसी और तेज तर्रार कुत्ते को दे दिया जो कि भौंक कर खजाने की रक्षा कर सकता था, अब इंतज़ार है कि गीदड दूर देस से आये और देखे.........और कहे कि बहुत बे आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले..........( प्रशासन पुराण 45)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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