मल्हारगंज, इंदौर में वर्षा
मल्हारगंज की हाट
में भयानक झंझा से
भर गयी धर्मशाला,
दुकानें व रिक्शें. छाया
का प्रतिबिम्ब हो ऐसा
तिमिर; ज्यों कोई लाया
हो चुराकर तमाल
के वन से. अनाज के
व्यापारियों ने समेट
लिया पसार. पापड़
वाले हो गए फरार.
बीच बाजार मेघ ने
आकर खोल दिया था
कुरबक के फूलों से
बंधा ऋतु का खोंपा. थे
फैल गए पीठ पर
भू की; अजानुलंबित
मंजीष्ठ के रंग वाले
मेघ. डुबकियाँ शत-
सहस्र मारकर, थे
बंगाली खड़ी से आये.
मिनुट दो मिनुट में
बजने लगे टपरे.
खुल तो गया था खोंपा
किन्तु देर तक झोड़
मेघ और ऋतु बीच
मची रही. ''तुम सांड
हो पर्जन्य. सभ्यता का
नाममात्र नहीं. कवि
कहते रहे बहुत
तुमपर किन्तु कभी
कविता तुमने पढ़ी
नहीं.' रिसिया गयी थी
ऋतुजी, यों अचानक
खुल जाने पर देर
तक यत्न से सजाया
खोंपा. तभी धूमध्वज
प्रत्यग्रवय धुरवें
का वज्रनिर्घोष सुन
जाग पड़ी थी प्रौढ़ाएं
जो अपराह्न-निद्रा से;
लौट गयी इन्द्र को दो-
चार गालियाँ दें. लौट
गयी भीतर चढ़ाने
चाय की पतीली. खड़े
रहे यायावर छज्जे
की छांह; करते रहे
प्रतीक्षा विलम्ब तक.
विलम्ब तक मेघों का
मल्हारगंज में मचा
रहा भीषण उत्पात.
{कुरबक का फूल वृद्धवसंत अथवा ग्रीष्मांत में खिलना बताया गया हैं. इसे लोक में कटसरैया भी कहते हैं. हालाँकि इसके फूल पीतवरनी होते हैं किन्तु कवियों ने इन्हें श्याम वर्ण का कहा हैं. कुरबक मानसून के आते ही झड़ जाता हैं. }
बाढ़
साढ़े छः इंच वृष्टि रात्रिमात्र
में हो गयी. शिप्रा खतरे के
निशाँ से सात फुट ऊपर बहती
हैं. दिन में भी अन्धकार हैं.
भयभीत हैं पूरा देवास. मौसम
विभाग ने दी हैं भारी वर्षा की
चेतावनी. स्कूलों में अवकाश हैं,
दफ्तर-कारखाने बंद. दूध
मिलना मुश्किल. भदवारे का आठवां
दिवस-धूम्र, ज्योति, जल वायु से
गुथीं- दिशा से दिशा तक बंधी हैं
धारावर्षी माला. पूरे दिन बरसते रहे
धारासार. फूली हुई भैसों की देह
तैरती हैं जल में. माचिस की तीली की
नोक पर ही बची हैं आग. डोंगियों
पर कठैत युवाओं का दल पानी में
फंसे लोगों को बचा रहा हैं; टार्च
और लालटेन की रौशनी में. जो
कर ले मेघ जो कर ले अन्धकार ,
बचा रहा हैं मनख बच रहे हैं प्राण;
तो क्या जो एक
नमक का पूड़ा मिलना भी हैं मुहाल.
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