कल देवास में स्व कुमार गन्धर्व समारोह था जिसका आयोजन शासकीय तौर पर हर साल होता है और एक राष्ट्रीय पुरस्कार दिया जाता है किसी युवा कलाकार को. अबकी बार यह २००८-०९ का पुरस्कार पुणे के युवा संगीतकार और सुयोग्य गायक पंडित संजीव अभ्यंकर को दिया गया. कार्यक्रम में सजावट जोरदार थी अफसोस कि पुरस्कार देते समय जिलाधीश भी उपस्थित नहीं थे और कुमार जी के परिजन भी. बाद में अल्लाउद्दीन खां अकादमी के निदेशक श्री बागदरे से पूछने पर ज्ञात हुआ कि जिलाधीश महोदय को शाम ६.२० पर फोन किया था उन्हें किसी निरीक्षण पर जाना था और वे बाद में समय निकालकर आयेंगे यह आश्वासन दिया था. कुमार जी के परिजन ना आने का कारण ज्ञात हुआ कि स्थानीय प्रशासन ने उन्हें सम्मान पूर्वक ढंग से आमंत्रित नहीं किया और यह उपेक्षा लगातार होती रहती है- हर बार, हर तरह के कार्यक्रमों में. शासन इतना ढकोसला क्यों करता है यदि कलाकारों का सम्मान नहीं कर सकता तो, दूसरा प्रशासनिक अधिकारियों की समझ कितनी होती है यह बात किसी से छुपी नहीं है. देवास जैसे शहर में जब आज संगीत साहित्यिक कार्यक्रमों में सैकड़ो लोग युही इकठ्ठा हो जाते है और पूरी तल्लीनता से सुनते-गुनते और बूझते है तो फ़िर शासन-प्रशासन के जिम्मेदार लोग क्यों नहीं अपनी भूमिका निभाते. एक राष्ट्रीय स्तर के गौरवमयी कार्यक्रम में यह बेरूखी, और वो भी उस परिवार से जिनके नाम पर सारा आयोजन किया जाता है, बहुत अखरती है. इससे बेहतर है कि शासन संस्कृति के नाम पर ढोल पीटना बंद करे और सिर्फ वो सब करे जो अधिकारियों, नेताओं और कुछ स्थानीय लोगो के हित में होता है. इस तरह से ना तो प्रदेश की संस्कृति बचेगी ना ही ललित कलाओं का उद्धार होगा. बेहद अफसोस के साथ लौटा मै.............
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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