अभिनय, भय, जुगुप्सा, काम, श्रृंगार, वात्सल्य, रोमांस और पीड़ा जैसे रस और उनकी अनोखी अभिव्यक्ति का अदभुत संयोजन है टाईटेनिक
रुदन है, लाशो का अम्बार, सिसकियों से गूँज रहा है आसमान, उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आती किसी को, दूर कही देखते हुए नज़रे पथरा गयी है, बूढ़े-बच्चे-महिलायें बेबस से ताक रहे है चारों ओर, युवा परेशान है अपनी ताकत के जोर पर दुनिया हिला देने वाले ये कमबख्त समझ नहीं पा रहे कि आगे क्या होगा और क्या करे? आसमान से काली आंधिया उतर रही है, बेहद खतरनाक मंजर है पानी की लहरे उद्दाम वेग से बलवती होकर कहर बरपा रही है आँखों के सामने सब कुछ डूबते जाने की पीड़ा और ना कुछ कर पाने का मलाल हर किसी को है ना समय की कीमत बची है और ना ही रूपयों की कीमत, लेने वाले को मोह नहीं और देने वाला भी जानता है कि बस यह एक मात्र छल है इससे ज्यादा कुछ नहीं, इतना कमा कर जिसमे रूपया- पैसा, यश- कीर्ति, दुनियावी नाम और झंडे पताके फहरा कर भी कुछ हासिल नहीं हो रहा .....स्मृतियों में जाने वाले ये पल आने वाले समय में कितना संताप भर देंगे मन के कोनों में इसका किसी को कोई एहसास है, सब यही छूटने वाला है -धन- दौलत, जेवर और संपत्ति, वस्त्र- आडम्बर और सारे परिधान !!! यह समय मूल्यों को त्याज कर संस्कारों को ध्वस्त कर अपने को बचाने का है पर कहाँ हो पा रहा है सब, सब कुछ छूट चला है सब कुछ डूब रहा है एक अनंतिम गहराई में बेहद तीव्र गति से सब कुछ. नर नारी परेशान है और संगीतकार बेचैन अपनी धून में वो मौत का तांडव देख रहे है और मद्धम गति से वायलिन के तार जीवन की डोर पर सजदे करते हुए बजा रहे है कि कही कोई सूर लग जाए और जीवन में आशा का संचार हो पाए. अपने कर्म में बेहतरीन, पारंगत और निष्णात ये फनकार और साजिन्दे जी रहे है एक दूसरे से बिछडने का गम और फ़िर एकाकार भाव से जुड़ पाने की खुशी मौत के विकराल रूप को देखकर भी खत्म नहीं हो रही. इस सारे मौसम में इस भीड़ को नियंत्रित करने वाले बेहद प्रतिबद्ध लोग एवं कर्मचारी भी किसी तरह से समर्पण में कमी नहीं दिखा रहे अपनी मौत की चिंता छोडकर वे लगे है कि कैसे भी मौत की ये आंधी और दस्तक कुछ लोगो की किस्मत से टल जाए वे सद्यप्रसुताओं को निहार कर मातृत्व का सम्मान करते है और जीने की अभिलाषा लिए शैशवकाल को बचाने के लिए नूह की कश्ती का प्रयोग कर रहे है ताकि बचाई जा सके एक समूची धरती और सभ्यता वे सशंकित है कि बचा नहीं पायेंगे किसी और को इससे बेहतर है कि बचा ले इनको कम से कम. पर आख़िरी में जब बेहद मुश्किल में जान सांसत में पद गयी तो अमोघ अस्त्र उठाकर वे लगे है नियंत्रित करने में इस अवागर्द भीड़ को एक गोली से साधने में जब भीड़ ने खो दिया आपा तो चल गयी एक गोली और फ़िर दूसरी और इसी क्रम में अपने अपराधबोध से त्रस्त होकर उस प्रतिबद्ध ने अपनी ही माथे पर चला दी एक गोली और खत्म सब कुछ एक ही झटके में पानी में रक्त रंजित सा डूबा शव किसी आंसू का भी मोहताज नहीं है.
अभिनय, भय, जुगुप्सा, काम, श्रृंगार, वात्सल्य, रोमांस और पीड़ा जैसे रस और उनकी अनोखी अभिव्यक्ति का अदभुत संयोजन है टाईटेनिक जो थ्री डी में आ गयी है बाजार में जरूर देखिये मित्रों.
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