जंगल में शेर का दूत आया था सियारो की लड़ाई हुई थी एक गीदड ने एक सियार को बुरी तरह से पीट दिया था. दूत के साथ दूत का चापलूस भी संग था जो रोटी का जुगाड करता था, बोटी का और पीने-पिलाने के लिए सोमरस का भी. खैर दूत ने सारे सियारो को बुलाया और गीदड को सामने बिठाकर पूछना शुरू किया और फ़िर सारे शिकवे-गिले सुनने के बाद उसने निर्णय दिया कि गीदड और सियार समझौता कर ले, जिन रूपयों के लेन देन पर मारा पीटी हुई थी उस पर अब मामला सुलट जाना चाहिए और ये क्या सारे जंगल की बदनामी होती है इस तरह से रोज कमाओ और सबको बाँट कर खाओ खुद जियो और सबको जीने दो........यही बात तो महामुनि शुतुरमुर्ग ने कही है, लगभग दहाडते हुए कहा -अब तुम साला कमाना भी चाहते हो और बांटना भी नहीं चाहते इस तरह से तो जंगल विभाग की खिल्ली उड़ेगी और फ़िर क्या भद उड़ेगी,. शर्म आना चाहिए इतने साल हो गए सेवा चाकरी करते हुए फ़िर भी रिश्वत का रूपया ठीक से बन्दर-बाँट नहीं कर सकते, यह सुनकर चूहे जो बाहर बैठे थे खुश हो गए और बोले चलो अब अपुन अपना हिस्सा पहले ही ले लेंगे, इन सियारो गीदडो के हाथ में जाने से पहले. बस दूत जब लौटने लगा तो अपनी रपट बनाने के नाम पर दूत के चापलूस ने सबसे दक्षिणा रखवा ली. सबके चेहरे पर प्रसन्नता के असीम भाव थे. आज से राजा के दूत से उन्हें खुल्ली छूट मिल गयी थी खुले आम नंगा नाच करने की और रिश्वत का रूपया मिल बाँट कर खाने की. बस दुखी थे तो दो बेबस जानवर जो किसी भी खेल में शामिल नहीं थे पर मजबूरीवश उन्हें हर जगह हर खेल में शामिल होना पडता था. इस पुरे प्रसंग में मजेदार यह था कि इस पूरी नौटंकी की खबर धृतराष्ट्र को कानो- कान भी नहीं लगी और सब कुछ शांति से निपट गया...............होना तो यह था कि दूत पहले एक बार धृतराष्ट्र से मिलकर अपने आने का प्रयोजन बताता पर जंगल राज में सब चलता है..........(प्रशासन पुराण 47)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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