अपनी ख़ामोशी में ही अपने को समझे और जो इस सर्द ख़ामोशी में खलल डालें उस आवाज को हमेशा के लिए या तो दबा दो या ऐसी जगह दफ़न कर दो कि वो सिर्फ एक इको बनकर रह जाये संसार मे ताकि वो त्रिशंकु की भांति यही बना रहे खत्म ना होने के लिए।
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हम जितना अपने करीबी परिजनों, मित्रों, सहकर्मियों और ख़ास लोगों से फ़ासला रखेंगे उतना ही दिमाग़ी सुकून मिलेगा जीवन में।
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आपके जीवन मे यदि कोई व्यक्ति विशेष दखल दें, परेशान करें और आपकी डिग्निटी या निजता में झांकने का काम करें तो सबसे पहले उसे फेसबुक से ब्लॉक करें, वाट्स एप से हटाए उसका नम्बर ब्लॉक करें और उससे संबंधित सारी स्मृतियां भूला दे - मुश्किल है पर कठिन भी नही। अगली बार वह नामाकूल मिलें तो उसे दुर्लक्ष कर उसकी इतनी उपेक्षा करें कि वह आपको भी अपने ज़ेहन से निकाल दें।
देखा यह है कि जब आप लोगों के काम, सदाशयता और ईमानदारी पर सवाल करते है तो वे जवाब देने के बजाय औकात पर तुरन्त आते है।
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सार्वजनिक जीवन मे उतने ही खुले, स्वतंत्र और निर्भीक रहिये जितना लोहे के पर्दों से पार देखा जा सकता है। (Iron Curtain)
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यदि आप किसी की मदद कर रहे है तो याद रखिये वो आपको बहुत जल्दी डसने वाला है
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हिन्दुतान में मोबाइल पर बकर करने वालों की कमी नही और इन सबको बात करने की तमीज भी सिखानी चाहिए
इतनी जोर से घंटों तक बकलोल करते है कि जी करता है इनके मोबाइल छीनकर फेंक दो
बातें ऐसी करेंगें कि इनका ना कोई ओर है ना छोर, आप ना सुनना चाहो तो भी मूर्खाधिपति भयानक जोर से बोलते है
अपनी बीबी, गर्लफ्रेंड , बॉस या सहकर्मी से बात करते हुए इन बकलोल पतियों को यह भी ध्यान नही रहता कि अपने निजी जीवन के मसले और गुप्त राज से रोग भी सबको सुना देते है
अब जमाना गया कि आप जोर से बोलकर मोबाइल का रौब गांठ रहे हो किसी पर, अब तो सभ्य और सुसंस्कृत वह है जो मोबाइल पर बहुत कम बात करता हो या बिल्कुल ही नही
सबसे ज्यादा दिक्कत तब होती है जब आप यात्रा में हो और कान में भोपू फंसाकर ये भारतीय बकलोल इतनी जोर से बोलते हो मानो कोई नाक कान विशेषज्ञ आपकी ऑडियोमैट्री कर रहा हो और आप भरमाये से टुकुर टुकुर देख रहे हो
असल मे दिक्कत यह है कि हम सब लोग इतने बड़े बकलोल है कि कह नही सकते चाहे वो खिचड़ी जैसे खाने को उत्सव बनाकर राष्ट्रीय व्यंजन बना दें या चुटकियों में विश्व को परास्त कर दें या अपने कमजोर कुतर्कों से कुछ भी कह सुन लें
हम यह भूल जाते है कि दुनिया मे चुप रहकर ही अधिकांश काम हुए है और चिंतन, आविष्कार या धर्म बने है,मौन रहकर ही मुखर हुआ जा सकता है , मैं और मेरे कई साथी भी बकलोल है और अब मैं बहुत कम बोलता हूँ, लोगों से मिलना लगभग बन्द कर दिया है और अपने मे ही लगा रहता हूँ , बकलोलों से दूरी ही ठीक है
चारो ओर शोर है झूठे, मक्कारों, फरेबियों और फर्जी लोगों का और ये सब महाबकलोल है
#खरी_खरी
राजेन्द्र या ऐसा ही कुछ नाम बताया था, 28 बरस उम्र, बीबी और एक चार साल की बेटी, किराए का मकान और नौकरी पीवीआर में गेट कीपर।
तनख्वाह मात्र 7500/- प्रतिमाह, समय सुबह 1130 से रात 1230 तक, हफ़्ते में एक दिन छुट्टी।
कैसे गुजर करते हो , भाई इस शहर में ?
आप ही बताइए कैसे करें, आप सौ डेढ़ सौ रुपया देकर आये है देखने फ़िल्म !
पिछले दिनों जेएनयू से पी एच डी कर चुके एक कवि, साहित्यकार और युवा विचारक से पूछा था कि ये हिंदी में इतने लोग शोध कर रहे है, इनका क्या भविष्य है।
बुरी तरह से भड़क गया , गाली पर उतर आया - बोला - सहानुभूति मत दिखाइए, सब हो जाएगा, क़िस्मत में खाना लिखा है आप ज्ञान मत बघारिये इतना उत्तेजित हो गया कि लगा ब्रेन हेमरेज ना हो जाएं।
दो साल पहले अपना शोध जमा करने के दूसरे ही दिन हिंदी का विलक्षण छात्र रविशंकर उपाध्याय बी एच यू, बनारस में ब्रेन हैमरेज से मर गया - सासाराम का था --- आपको पता है ? रोहित वेमुला तो याद है ना - कसम से आज तक बिक रहा है ; दलित था।
हिंदी की बात करें - काशी हिंदू विवि में 8 पद आये है ,4000 नेट और पी एच डी वालों के आवेदन है। कर्नाटक केंद्रीय विवि में 2 पदों के लिए 400 आवेदन है सब नेट और पी एच डी है ।
8000 से 14000/- प्रतिमाह में सबसे ज्यादा शिक्षित उपलब्ध है राष्ट्रीय स्तर का "ओके , टेस्टेड" !
पीवीआर में गेट कीपर की नौकरी हो या सफेद कॉलर प्राध्यापक वाली - सब बराबर है।
आइये पदमावती की, गुजरात चुनाव, पाटीदार आरक्षण की बात करें !
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