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अपूर्व की नई नौकरी और मेरा स्थायी अकेलापन




अपूर्व की नई नौकरी लगी है आज या कल ये होना ही था मैंने उसके साथ लगभग पांच माह साथ बिताये है और मेरे लिए ये अनमोल धरोहर है मैं क्या कहू अपूर्व............ बस इतना ही की तुम थोड़ा सा यही रह जाओगे ......... या यु कहू की पुरे का पुरा यहाँ रह जाओगे बस सिर्फ़ इतना यद् रखना यदि तुम नही तो मैं नही............ संदीप नाईक समाप्त ..........बस................................
एक पिता को यह बोझ सहना ही पड़ता है आज मैंने यह दर्द कैसे सहा है यह शब्दों में बया कारण बहुत ही मुश्किल है..........
मैंने इन पाँच महीनो में यह अच्छे से समझा है की अपने लोगो को पाने के लिए भी ख़ुद को समर्पित करना पड़ता है सब कुछ भुलाकर सिर्फ़ अपनों का हो जाना पड़ता है............. मैंने लिखना - पढ़ना छोड़ दिया....... सबसे मिलना जुलना छोड़ दिया सिर्फ़ इसलिए की मेरा बेटा मेरा हो सके......... और उसने भी बहुत प्यार सम्मान दिया......... इतना की शायद अपना जाया होता तो भी नही मिलता ............. बस अब तो जीवन सिर्फ़ इन बच्चो का है- घर के तीन बच्चे और अपूर्व और मोहित............ सब इनके लिए है और कुछ भी नही है जीवन में.................
मैंने बहुत दुःख दिए सबको, कितना सारा नाटक किया की -"मोह छुट जाए", पर कहा हो पता है- कुछ भी सोचा हुआ पुरा नही होता...............
अपूर्व एक नई दुनिया में जा रहा है- मेरा रोम रोम काँप रहा है, नई दुनिया है, बीहड़ है.... जंगल है.... मूल्यों की बेहद कमी है....... और ऐसे नए अबोध बच्चे जो सिर्फ़ अपनी..... पढ़ाई.......... मूल्य लेकर इस मायावी दुनिया में जा रहे है उन्हें सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने आप पर भरोसा रखना पड़ेगा और..... रोज़ एक नई लड़ाई लड़ना पड़ेगी काफी मशक्कत के बाद ये अपना वजूद टिका पाएंगे पर मुझे ये विश्वास है की ये ये युवा देश को एक नई राह दिखायेंगे और ईमानदारी से काम करते हुए अपने परिवार और समाज के लिए कुछ बहुत सार्थक करेंगे............
कम से कम मेरा अपूर्व, मोहित और आनेवाले तीनो बच्चे तो ऐसा ही करेंगे -ये मेरा विश्वास है..............

खूब सारा प्यार और शुभकामनाये तुम्हारे लिए अप्पू , बस ये ध्यान रखना की ये "बुढा" रोज़ तुम्हारे लिए दुआ ही करेगा कितना भी हो जाए, ये तुमसे कभी लड़ाई नही कर सकता...........क्या दुनिया में कोई अपनी ही रूह से लड़ता है???

बचपन में एक कहानी पढ़ी थी एक राक्षस की उसे कोई मार नही सकता था फ़िर एक साधू ने राजकुमार को बताया की उस राक्षस की जान सात समंदर पार एक तोते में है, जबतक उस तोते को नही मारोगे , राक्षस का कोई कुछ नही बिगाड़ सकता......... यह रूपक में हमेशा से कहता आया हू तुम्हे..............पर आज मेरा "तोता" बड़ा हो गया है और अब सात समंदर पर जाने के लिए भी तैयार है, पर मेरी जान तुममे ही है और तुममे ही रहेगी -अप्पू............मेरी जान मोहित में है, मेरे सिद ,ओजस और अनि में है ............... अगर कही से भी कुछ हुआ तो ये " राक्षस मर जाएगा............"!!!!!!!!!!
खूब प्यार और दुलार के साथ स्वर्णिम भविष्य के लिए ढेर सारा प्यार और शुभकामनाये................
वही पागल और प्यार का मारा हुआ............
जो फ़िर से एक बार अकेला रह गया पहले पापा , फ़िर माँ और अब तुम भी दूर जा रहे हो......... बहुत झगडा हूँ न तुमसे.............. माफ़ी मांगने लायक भी नही रहा अब तो............ मैं ................. फ़िर भी भीगी आँखों से माफ़ी मांगता हूँ तुमसे और ये विश्वास दिलाता हूँ की मेरा प्यार कभी खत्म नही होगा...................
मुझे मुखाग्नि देना है तुम्हे.......... बस ये याद रखना ......................और मेरे लिए आ जाना एक बार ही सही पर आ जाना .........भले ही रंजिशे निभाने के लिए................

तुम्हारा ही
डैड


Comments

Amit said…
Apurv Got a very precious gift in in the form of a person who sometime act as a teacher and sometime as a friend and sometime as a dad That is you sir ......
I wish all the best to appu....

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