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बकलोल शेर,और गंजडी घोड़ा


फिर घोड़े ने गांजे का एक लंबा बेहतरीन कश लिया उसके स्वर में थोड़ी खरखराहट थी आँखों में हल्का सा गुबार था, उसने अपनी थूथन को पटका और फिर घटिया सी दिखने वाली भौंहें उठाई और गधों को लगभग चुनौती देते हुए कहा कि मुझसे अच्छा रेंकने वाला कोई नहीं है मै ना मात्र रेंक सकता हूँ वरन, चिंघाड़ भी सकता हूँ, टर्र-टर्र भी कर सकता हूँ, भौंक भी सकता हूँ, चहचहा भी सकता हूँ, मीठी कूक भी निकाल सकता हूँ इस जंगल के सारे मूर्ख शेर मेरे कब्जे में है और फिर मै एक घोड़ा हूँ यह तुम गधों को याद रखना चाहिए ऐसा कहकर वह बहुत ही कातर स्वर में मिमियाने लगा, उसके हाथ-पाँव कांपने लगे, चेहरा मुरझा गया. आखिर घोड़े को भी अपराध बोध तो सालता था क्योकि वह भी एक सरीसृप से निकल कर इस भीषण युग में विकास की सीढियां चढ़ता हुआ आया था इस सितारा संस्कृति में, अपने विकृत अतीत को याद करते हुए रोने लगा, उसे याद आया अपना दोहरा-तिहरा चाल चरित्र और अपना अपमान जो लगातार होता रहा- कभी नदी के मुहाने पर, कभी गेंडे के छज्जे पर, कभी वो पेन्ग्युईन बना, कभी शुतुरमुर्ग बनकर जमाने से अपने आपको छुपाता रहा, इस जंगल में रोज नया घटता देख उसकी आत्मा चीत्कार उठती, अचानक उसका गांजा ख़त्म होने लगा तो गधों को लगा कि यही सही समय है जब दुलत्ती मार दी जाए इस घोड़े को और फिर शेर सहित इस घोड़े को इसी नरक में पटक कर कही ऐसे जंगल में जाया जाए जहां कम से घोड़े, घोड़े तो बनकर रहें- उल्लू, मगरमच्छ, सियार, लोमड़ी, उदबिलाव, सांप और घडियाली आंसू बहाने वाले बाकी नपुंसक मच्छरों से हम निपटने में माहिर है. गांजे की चिलम को घोड़े के हाथों में थमाकर गधों ने जंगल राज का संविधान और शिक्षा की पवित्र किताब उसके हवाले कर दी और कहा कि अपने बकलोल शेर (?) से कहना कि गधों ने जंगल देखे है, ज़माना देखा है और जानवर देखे है पर टट्टू के भेष में ना घोड़े देखे, ना बकलोल शेर, हमने युग देखे है, हम इतिहास बनाते है, और हर जंगल के और दुनिया के अपने तरीके और उसूल होते है जो एक न्यूनतम और वाजिब मूल्यों और मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित होते है, उनका पालन किया जाना चाहिए, अगर तुम्हारे उसूलों से दुनिया चलती तो अब तक सारा जहां बदल गया होता.

और फिर एक दिन घोड़े को जब असलियत का मालूम पडा तो उसने दूर देश में जा चुके गधे को लिखा कि जंगलराज में सब कुछ ख़त्म हो चुका है उस खच्चर के कारण और दोगले साँपों के कारण जंगल का क़ानून भयानक बिगड़ चुका है, घोड़े की खिसियानी जिन्दगी अब इन टट्टूओं, सांप, नेवलों, मगरमच्छों, खच्चर और उल्लूओं पर ही निर्भर रह गयी है और इस वजह से उसका धंधा बुरी तरह प्रभावित हो रहा है, घोड़े का सन्देश लाने वाले दूत को गधे ने एक दुलत्ती मारकर विदा किया और कहा जाकर कहना अपने घोड़े से कि अब वो दिन लद गए जब गधे की कोई बिसात नहीं थी, यह उसके पूर्व जन्मों का फल है वरना गधे चाहते तो सब कुछ पारदर्शी करके लौटते और फिर घोड़े की पीढियां कभी जंगल में अपना अस्तित्व बचा नहीं पाती ख़त्म हो जाती पुरी पहचान और फिर .खैर........गधे तो गधे और घोड़े तो घोड़े ही होते है- एक कामकाजी और दूसरा घोर निकम्मा..

फिर जंगल में घोड़े ने एक बड़े और मोटे ताजे गधे को नियुक्त करते हुए कहा कि अब से यह राज तुम्हारा है, यहाँ के सब जानवर तुम हांकना, सारे उदबिलाव, उल्लू, मगरमच्छ, सियार, सांप और नेवलों के बीच रहकर इस जंगल को चमन बना देना. बेचारा गधा नया था उसे रेंगना भी नहीं आता था इस जंगल में भाषा भी नई थी, उसे ना पानी दिया, न घास दिखाई, न सूरज की उजली किरणें दिखाई कि वो जंगल में जीवन जीने का किंचित यत्न भी करता, एक पौर्णिमा बीती और फिर कृष्ण पक्ष की काली रात शुरू हुई जब सियारों ने रेंकना शुरू किया और उल्लूओं ने चहकना, गंदले पानी में दूर देश के पक्षी उड़कर आये तो अपने साथ अपनी गंदी मिट्टी से गंदे बीज लाकर फिर बोने लगे जहर, तो गधे को कुछ समझ आया उसने तुरंत निर्णय लिया और एक दिन जब ठंड से सारा जंगलराज सरोबार हो रहा था, सूरज की किरणे कही नजर नहीं आ रही थी वो घोड़े के जंगलराज को मात्र एक शुक्ल और एक कृष्ण पक्ष से कम समय में दुलत्ती मारकर भाग गया और जाकर बोला सालों घोड़ों तुम सूअरों से भी ज्यादा बदजात हो, तुम तो जानवर तो क्या इंसानों से भी गए गुजरे हो और तुम्हे नरक नहीं स्वर्ग नहीं त्रिशंकु भी नसीब ना होगा.
अब घोड़े किसी नए उल्लू की तलाश कर रहे है जो जंगल राज को नया राजस्व उगाकर दे सकें.

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