देश में कैंसर के खिलाफ और तमाम ऐसी असाध्य बीमारियों से लड़ने के जीवंत किस्से हम अक्सर सुनते रहते है और जब हम पढ़ते है तो एक मामूली खबर सोचकर टाल जाते है या दहशत से काँप भी उठते है. बात जुलाई की है जब मै हरदोई गया था, अपने एक साथी के घर खाना खा रहा था- बाहर दोपहर के समय तीन बच्चे खेल रहे थे, ध्यान नहीं गया.
थोड़े दिनों बाद इसी साथी ने बताया कि उनमे से एक बेटा मेरे छोटे भाई का है जिसे हरदोई से डाक्टरों ने लखनऊ रेफर किया है क्योकि उसका हीमोग्लोबिन स्थिर नहीं रह पा रहा और बार-बार खून देने के बाद भी रक्त की अल्पता से डाक्टर भी परेशान है. मेरा मन किसी अनिश्चित कुशंका से काँप गया सिर्फ सात साल का था यह बच्चा. फिर जो होना था वही सच हुआ उसे लखनऊ लाया गया ताबड़ तोब और रातम- रात किसी तरह से जुगाड़ करके संजय गांधी पी जी आई, लखनऊ, में भर्ती कराया गया. उसके पिता शीतेंद्र इंदौर में मूक बधिर बच्चों के लिए स्पेशल टीचर का कोर्स कर रहे थे और माँ उन्नाव जिले के किसी स्कूल में सरकारी अध्यापिका है. बस फिर क्या था शीतेंद्र को अपना कोर्स छोड़कर आना पडा और माँ ने छः माह की छुट्टी के लिए आवेदन किया पर सरकारी अधिकारियों को कहाँ यह पचता है स्थानीय बी एस ए ने अडंगा लगा रखा है. अग्रिम को रक्त कैंसर की बीमारी से ग्रस्त घोषित किया गया.
खैर, अग्रिम का महँगा इलाज शुरू हुआ- रोज जांच और कड़ी परीक्षा डाक्टरों ने कह दिया कि अब इसे हरदोई ना ले जाया जाए क्योकि कमोबेश रोज ही पी जी आई आना पडेगा, सो माँ बाप ने सामने ही एक रेस्ट हाउस में एक कमरा ले लिया और रहने लगे अपने लाडले का इलाज करवाने के लिए. हर तीसरे दिन खून की दो- तीन यूनिट और महंगी दवाएं, मोटी सुईयां और कीमोथेरेपी, बस इस सबमे लगभग छः माह बीत गए. हालत कभी नर्म कभी गरम और चिंताजनक हो जाते हम सब बहुत तनाव में थे मेरे सहकर्मी साथी भी अक्सर परेशान रहते.
अभी तीन दिसम्बर को मेरे साथी ने कहा कि सर आप हरदोई अकेले आ रहे है ना गाडी से, मैंने कहा हाँ क्यों, तो बोला कि भैया को घर लाना था डाक्टरों ने उसे घर जाने की इजाजत दे दी है, बस फिर क्या था मै बहुत खुश हुआ. शाम को भीड़ भरे इलाके से और गंदे ट्राफिक से बचते हुए पी जी आई पहुंचे तो अग्रिम बाहर खेल रहा था. चहक उठा उसे याद था कि मैंने उसके लिए एक बड़ी वाली कैडबरी लाई थी जो वो खा नहीं पाया था, और फिर तो गाडी में बैठकर जो बोलना शुरू किया कि बस. आज वो कैद से बाहर था और अपने दादा-दादी और भाई बहनों से मिलने अपने घर हरदोई जा रहा था. कडाके की सर्दी पर उसे कहाँ फ़िक्र, अपने घर की याद में छः माह से वो बेचैन था. मैंने पूछा कि क्या खाओगे तो बोला खाना तो बहुत कुछ है खट्टा भी पर अभी साले डाक्टरों ने मना किया है, पर दादी और माँ ने वादा किया है कि वो टमाटर की चटनी बनायेंगे जब मै घर जाउंगा. स्कूल छुट रहा है, अंकल पर थोड़े दिनों में मै सब कव्हर कर लूंगा फिर अपनी कक्षा में पहला नंबर लाकर दिखाउंगा. पी जी आई में डाक्टर बहुत अच्छे है पर मै कभी डाक्टर नहीं बनूंगा क्योकि जो दूसरों को तकलीफ दें वो भी कोई पढाई है. मेरी कीमो में मेरे सर के सब बाल उड़ गए, पर ठीक है आ जायेंगे.
सात साल का बच्चा छः माह में इतना परिपक्व हो गया कि बस, फिर बोला अंकल आपको मालूम है कि क्रिकेट के युवराज सिंह को भी ऐसी ही बीमारी थी जब वो ठीक होकर खेल रहा है तो मेरा भी तो आज बोनमेरो टेस्ट हुआ है और फिर जल्दी ही पापा मम्मी ४५ बोतल खून का इंतजाम करेंगे और मेरा भी बोनमेरो लग जाएगा तो मेरे भी खून बनने लगेगा ना ? उसने बताया कि कैसे मोटी रॉड उसकी रीढ़ की हड्डी में डाली गयी बोनमेरो निकालने के लिए कितना रोया था वो .........मेरी आँख में आंसू थे मैंने कहा जरुर बेटा तुम्हारे लिए हम ४५ क्या ४५००० बोतल खून की व्यवस्था कर लेंगे........शीतेंद्र और विनीता सुन रहे थे...........बहुत सारा रूपया खर्च हो गया है और अब यह छः माह में घर जा रहा है तो हमें जो खुशी मिल रही है वह आपको बता नहीं सकते. आठ दिन घर रहकर अग्रिम पुनः एक बार इलाज के लिए पीजीआई आ गया है. फिर से जांच के दुश्चक्र में और लम्बी प्रक्रिया में पड़ गया है पर अब खुशी की बात यह है कि उसके शरीर ने सकारात्मक परिणाम देने शुरू कर दिए है और उम्मीद है कि वह जल्दी ही ठीक होकर अपने घर जा सकेगा और फिर से घर की मस्ती में अपनी कक्षा में और स्कूल, मोहल्ले में शामिल हो सकेगा.
आज का दिन मेरे लिए इसलिए महत्वपूर्ण है कि मैंने अग्रिम से और उसके माता-पिता से पूछकर उसकी तस्वीरें ली थी और यहाँ लिखने की अनुमति ली थी आज की तारीख इतिहास में बहुत ही अनूठी है सो सोचा कि इसे और श्रेष्ठ बनाने के लिए इस नन्हें फ़रिश्ते की वो कहानी आपके साथ बांटू जिससे जाम्बाजी का नया हौंसला मिलता है. आप सबसे यही इल्तिजा है कि इस नन्हें जाम्बाज के लिए दुआएं करें, अपने शुभार्शिवाद दें और अपने आसपास नजर रखे कि कही कोई घातक बीमारी किसी को अपने पंजे में ना लपेट लें. अग्रिम के लिए खूब सारा प्यार, दुआएं और शुभकामनाएं. और उसके परिवार के हौंसलें और हिम्मत के लिए सलाम कि कितने धैर्य से उन्होंने सब सहकर अपने इस नन्हें बच्चे की जान बचाई है. सच में बड़ा कठिन है यह सब सह पाना और फिर लड़कर निकल पाना. मै खुद कई लड़ाईयां लड़ चुका हूँ और अभी भी एक मोर्चे पर लड़ रहा हूँ तो समझ सकता हूँ कि क्या हालत होती है जब घर का एक सदस्य बीमार होता है ..........
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