तुम धूल हो
ज़िन्दगी की सीलन से
दीमक बनो
रातोंरात।
सदियों से बन्द इन
दीवारों की खिड़कियां , दरवाज़े
और रौशनदान चाल दो।
तुम धूल हो
ज़िन्दगी की सीलन से जनम लो
दीमक बनो , आगे बढ़ो।
एक बार रास्ता पहचान लेने पर
तुम्हें कोई खत्म नहीं कर सकेगा।
- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
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