सदाचार
"कुछ किया नही जा सकता अब , हम ही नही सारी कायनात भी इसी से परेशान है। देखो ना अब बाजार में कितने अच्छे संतरे आ रहे है, सुंदर पीले और गोल मटोल पर स्वाद सबका एक जैसा कहाँ है खट्टे मीठे, बेस्वाद वाले भी है पर कोई देखकर पहचान सकता है इन्हें ? दुःख तब होता है जब हम अच्छा खासा, बड़ी फांक वाला संतरा खोलते है और रेशों को छिलते है तो सबसे मीठी फांक बगैर बीज वाली निकलती है!!! किसने सोचा था, तुम बताओ क्या कोई जानबूझकर यह बगैर बीज वाली फांक का सन्तरा खरीदकर लाया था ...."
कमरे में सन्नाटा था, और सब चुप थे। कांता बुआ फर्श पर बिखरी इमली फोड़ रही थी और फिर कहने लगी, "देखो इसमें भी चीये नही निकल रहे, अब इत्ता बड़ा पेड़ , इत्ती मनभर इमली और कुछ बगैर चीये वाली, पेड़ का दोष नही है बेटा, बहु को समझा...."
सब कमरे से उठकर जाने लगे थे और बुआ ने एक टेर छेड़ दी थी ..... वंशिका की आँखों से अश्रू झर रहे थे और कुलदीपक ने उसे आहिस्ते से अपने कांधों से लगाया और अपने कमरे की ओर ले गया, अम्मा बाबूजी चकित थे कि कैसे सात साल से चला आ रहा कलह एक झटके में मिट गया ।
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