एक बात तो है - जसोदा और कन्हैया दोनों ने बदनाम तो बहुत किया।
!!! इति !!!
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एक कन्हैया की जीभ काटने के पांच लाख और अगर तीन वामपंथी या कांग्रेसियों की काटेंगे तो पन्द्रह लाख खाते में आएंगे ।
अब समझे काला धन मतलब कन्हैया जो काला था कि "लाल जुबान" काटोगे तो काला धन मिलेगा।
असल में घोषणापत्र का संशोधित स्वरुप अब आया है, बेचारों ने लगभग एक साल दस महीने में घोषणा पत्र में बदलाव किया जो कि वाजिब है।
तुम साले सब गधे हो , बहन विस्मृति की तरह बारहवीं पास और सात दिवसीय येल डिप्लोमाधारी हो, कम्बख्तों जे एन यु में पढ़ने ना सही - रात के उतरे छिलके गिनने ही चले जाते !!!
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क्या सोच रहे थे परसों रात में जब मेरा भाषण पूरी दुनिया सुन रही थी और कल जब मै रविशकुमार के साथ बात कर रहा था और एक बार फिर से हिन्दू राष्ट्र सुन रहा था, अब यही बता दो - 'मन की बात' करोगे अगले महीने, तब तक मै भरी गर्मी में तुम्हारा पसीना निकालने आसाम, पश्चिम बंगाल या कही और चला जाउंगा.........
अच्छा ये बताओ कि कल रात को फोन आये कि नहीं-
श्रद्धेय महामात्य द्वय आडवानी जी और मुरली मनोहर जी के
परम पूज्य मोहन भागवत जी के
बहन विस्मृति ईरानी के
योगीनाथ, साध्वी उमा भारती, और अन्य तपस्वी सांसदों के
गोविदाचार्य जी के
अमित जी भाई शाह के
शिवराज, रमण और वसुंधरा के
ममता आंटी ने नीतिश, लालू और सीता "राम" चाचा से बात की है और न्यौता भेजा है माछ-भात का. अंकल मै दिल्ली छोड़कर जाऊं - अरविन्द भाऊ की दिल्ली.....
सोये भी नहीं रात भर, सही भी है अब चचा येचुरी मुझे अप्रेल में पांच राज्यों में भ्रमण करवा रहा है कल कह दिया उसने, सरेआम चैनल्स पर....
और हाँ, सुना कि दीपक, रोहित, अर्नब और आँखों का तारा राजदुलारा सुधीर आज सुबह सफ़ेद झक्क कपड़ों में मातम पुरसी में आये थे निजी निवास पर!!! क्या नाश्ता दिया - फाफडा, ढोकला, डाभेली और उष्णपेय ?
आज कसम से गंगा ढाबा आ जाओ, लंच साथ करते है, पनीर, मैथी, दाल तड़का और तंदूरी रोटी एकदम कड़क - माँ कसम बटर लगा के खिलाउंगा शाकाहारी गनगा, झेलम और सतलज के पानी से बना सात्विक भोजन, एकदम फिरी में.... कल हो ना हो, जेएनयु में कोई कुछ नहीं कहेगा........और विस्मृति को ले आना दोपहर में मानद "डी लिट्" दे देते है , उन्हें ताकि "कलंक कागज़ से कारा" दाग मिट जाए........
माफी दे देना माई बाप.....मै राष्ट्रप्रेमी हूँ शत-प्रतिशत.
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जिन मुफ्तखोर क्रिकेट खिलाड़ियों, सिने कलाकारों को गरीब जनता ने अपना पेट काटकर दुनिया के अमीर लोगों में ला दिया वे देश प्रेम और द्रोह पर बोल नही रहे, ये दो कौड़ी के टुच्चे लोग किसी की तरफ से बोले पर आएं तो सड़कों पर, इसका साफ़ मतलब है कि बाढ़, भूकम्प और त्रासदी में जब ये चन्दा उगाहने आते है तो भृष्ट नेताओं की तरह ये भी अपना घर भर लेते है।
भक्तों समझ रहे है, इनसे तो साहित्यकार भले जो सड़क पर आये जूते खाये तुम्हारे और पुरस्कार भी वापिस किये।
आओ सचिन, गावस्कर, रैना, कोहली साइना, अनुष्का, सनी लियोन, कोंकणा, प्रियंका और सदी के नायक अमिताभ , सड़क पर आओ, बताओ तो सही पार्टनरों तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है ?
और अंत में अडानी, जिंदल अम्बानी, टाटा, गोदरेज, अजीम प्रेम, नारायण मूर्ति , सुधा मूर्ति सिर्फ घर ही भरते रहोगे, कुत्तों की तरह दूम ही हिलाते रहोगे या कभी जाकर बाथरूम में ही सही एक बार तो अपना चेहरा नंगे बदन आईंने में देख लेना और पूछना अपने आप से कि किधर खड़े हो तुम ???
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आदिवासियों के लिए जिनका सब कुछ छीन लिया और बाद में नक्सल कहकर मार दिया, रमन सिंह अजीत जोगी , महेंद्र कर्मा ने जितनी आदिवासियों की हत्या की है नक्सल के नाम पर वह सुधीर चौधरी जैसे चूतियों की फेब्रीकेटेड न्यूज समझकर कम से कम दिल्ली में तो समझ नही आ सकता उसके लिए पहाड़ी कोरबा से लेकर खत्म होते आदिवासी समुदाय के बीच जाना होता है और जटिल जीवन को समझना होता है। सिर्फ लिजलिजी देश प्रेमी भावनाये भड़काकर और जवानों को आगे करके अपनी राजनीति चलाने वाले क्या जानते है। यहां देश भक्ति का ज्ञान और जवानों की बात करने वाले कितना जानते है छग को, उन्हें पता है वे एक नमक की थैली और दो रुपये का तेल लेने एक दिन में तीस से चालीस किमी चलते है। आपको पता है इस लूट ने आदिवासियों की कई प्रजातियों को खत्म कर दिया, कभी मिले है सोनी सोरी से, कभी गए है दंतेवाड़ा इस सुकमा के किसी गाँव में जहां अर्ध सैनिक बल की टुकड़ियां शोषण का तांडव मचाती है नाबालिग बच्चियो के साथ बलात्कार करती है। उनकी जल जंगल जमीन छिनकर अडानी, अम्बानी और जिंदल को दे दी इन्ही मासूम जवानों को आगे करके।
कभी दिल्ली में हो तो भाई Himanshu Kumar से मिलो, पूछो या गरीबी देखना हो तो चलो मेरे साथ गरियाबंद या सुकमा।
सुधीर चौधरी जैसे मूर्ख और दलाल को क्या मालूम कि आदिवासी होता क्या है, विस्थापन होता क्या है, आपको जाट आंदोलन में एक समय पानी नही मिला तो सुप्रीम कोर्ट चले गये और छग में सरकार ने नदी बेच दी थी, सोचो तुम्हारे घरों में छग की मजदूर लड़कियां काम ना करें तो तुम दफ्तर ना जा पाओ या पोटी भी ना कर पाओ , सोचा ये बच्चियां क्यों है घरों में तुम्हारे ???
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हिंदुस्तान के सबसे बड़े वाले गंवार देखना हो तो लाईन से न्यूज चैनल देखते चलें, कसम से सिर फोड़ लेंगे, इतने चूतिये एक साथ मिलेंगे कि लगेगा कि सही किया मोदी ने विस्मृति को मानव संसाधन मंत्री बनाकर।
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सुधीर चौधरी कितना बड़ा गधा है, इस चूतिये को सुकमा भेज दो साले को - लोटा भी मत दो, नक्सली इसकी ऐसी बजायेंगे कि मीडिया भूल जाएगा और मण्डी हाउस में ना अंडे बेचे तो नाम पलट देना।
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Zee न्यूज सच में सदमे में है, माफ़ कर दो इन कमीनों को। छग में 125 करोड़ लोगों की सुरक्षा सुकमा में हो रही थी। Dilip Khan, कोई कारगर इलाज है क्या इन $#@$#@ का ???
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Wats app वैसे उन लोगों और भड़ासियों के लिये अच्छा मंच है जो कही छप नही पाते और अपने पांच पचास लोगों को रोज वही बासी मसाला भड़ास परोसकर दिन भर बकलोल करते रहो, रात में सबकी माँ बहन सभ्य तरीके से करते हुए सोने का स्वांग भरो
फेसबुक इससे बड़ा मंच है जो चार पाँच हजार तथाकथित दोस्तों से लड़ते भिड़ते दिन भर निकालो, रोज मेहनत करो और फिर लाइक गिनते, काले कलूटों को ब्लॉक करके सोते जाने का स्वांग करो।
बाकि सब तो हर पन्द्रह दिन में मिलजुलकर रिटायर्ड और मरे खपे लोगो की घटिया किताबों पर चर्चा करके, देश विदेश के यात्रा संस्मरण, और राजनैतिक सामाजिक अप्रासंगिक विषयों पर व्याख्यान का धंधा चलाकर भी आप महान और प्रसिद्ध हो सकते है। यानि जब देश में देश द्रोह की बात हो, रोहित वेमुला मर जाये तो आप प्रेम, देह, कहानी की उपादेयता, कविता में सौंदर्य की बात करो यह जताते हुए समाज को कि साहित्य समाज का दर्पण है और बेबस नंगे भूखे लोगों को ब्रिटेन, अमेरिका के यात्रा संस्मरण सुनाये किसी दारु के ठेके पर और पूछे कि पार्टनर पॉलिटिक्स क्या है, या अपने जन्मदिन को चार मुफ़्त खोर लौंडों को दारु का लालच देकर किसी चौराहे पर बैठकर फेसबुक पर आत्ममुग्ध होकर चुगद किस्म के फोटो चेपते रहो - एक दिन में पचास हजार ।
इस सबमे सबसे ज्यादा फायदा उठाने वाले चापलूस मक्कार और अवसरवादी तो बन ही जाते है पर अंत में रीढ़ की हड्डी खो देते है एक दिन। हाँ खाते में इस दौरान सहेज लेते है - कई पुरस्कार, कागज के चीथड़े, बूढी हो चुकी महिलाओं के फोन नम्बर, कमसिन लड़कियों के सिर पर हाथ फेरने का हौंसला, और चार छह संपर्क जो बुढ़ापे में दूध दे सकें और मरते समय हाय वो दिन, हाय ये दिन कर सकें और अंत समय कम से कम श्मशान में एक भीड़ जिसमे से कोई भी जल्दी से दो टसुये बहाकर धीरे से निकल लें कहते हुए कि "बड़ा चालू था साला " ....
और अंत में छपने वाले, जब तक सरकारी नोकरी के साथ प्रकाशक बनकर किताबें छापने वाले घाघ और हरामखोर प्रकाशक सह वेब पोर्टलों के स्वयं भू सम्पादक ज़िंदा है - लिखने वाले और छपवाने वाले मूर्खों की कमी नही है, एक बार किताब बाहर हुई सात माशी (अर्ध विकसित बच्चे की तरह) फिर वाट्स एप से यानी ऊपर से पढ़ना शुरू करो ।
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