3.
शायद मप्र के 51 में 14 जिला मुख्यालय किसी भी तरह की रेल सेवा से जुड़े नही है। तहसील और बाकी सब तो छोड़ दीजिये। कांग्रेस ने तो कुछ नही किया पर व्यापम के रुपयों से इन दलित जिलो को तो रेल से जोड़ देते मामा जी। कितना काम बाकी है अभी दो तीन शहरों में मेट्रो लाकर कमाई के रास्ते खोजने के बजाय आधार भुत ढांचों पर अब तो ध्यान दो।
मने कि यूँही सोच रहा था कि देवास में बुलेट ट्रेन की पटरी मैं उखाडूंगा तो यह ख्याल आया। हाँ शराब की दुकानें जरूर बढ़ी है गत तीन शासन कालों में मामा जी के और हर गाँव में लाडलों को शराब के ठेके जरूर दिलवाये है और घोटालों तक पहुँच की है ।
एम पी अजब है - सबसे गजब है।
2.
वसुंधरा राजे जैसी मुख्यमंत्री की सोच भी कितनी निम्न है और इसमे वह अकेली शामिल नहीं होगी , संघ से लेकर भाजपा और शिखर नेतृत्व के बिना इतना बड़ा फैसला लेना क्या उस शराबी महिला मुख्यमंत्री के लिए संभव था? आखिर ऐसी भी क्या मजबूरी है कि गुर्जरों से भाजपा को इतना प्रेम एकाएक उभर आया और 5 % का निर्णय लेना पडा ? अब बात पक्की है कि इनका मकसद संविधान का पूरा कबाड़ा करके रद्दी में बेचकर गोलवलकर कृत संघी नियम देश में लादना चाहते है और देश को कहाँ ले जायेंगे यह तो इनका राम ही जाने जो इस भरी गर्मी में अभी भी टेंट के नीचे अपने शरण स्थली की आस में गत सत्तर साल भाजपा और कांग्रेस द्वारा थोपा हुआ दूसरा वनवास भोग रहे है. कितने बेशर्म और अनाडी लोग है ये और ऊपर से वसुंधरा .उफ़...........!!! दरअसल में वसुंधरा और बैंसला का गठजोड़ साफ़ दिखता है जो आने वाले समय में मुश्किल पैदा करेगा। दूसरा मैं अब दलित उत्थान आदि में विश्वास इसलिए नही रखता कि वास्तविक आदिवासी तो दुनिया से खत्म हो रहे है और असली दलित आज भी मैला ढो रहे है और मलाईदार या तो मायावती नुमा हो गए या विदेशों में अयोग्य होकर भी भिक्षावृत्ति से डिग्रीयां बटोर रहे है। इसलिए अब इन आरक्षित दलितों से नफरत है मुझे । भयानक जमीन और रूतबा होने के बाद भी नोकरी चाहिए ऊपर से काम आता भी नही, करेंगे भी नही और हरिजन एक्ट की धमकी अलग देंगे कमजर्फ कही के। गुर्जर हो या अजा या अजजा अब ये सिर्फ पढ़े लिखे दलितों का सारा खेल है। आरक्षण मांगने वालो को गोली मार दो जब नक्सली अपने हक के लिए गोली खा रहे है तो सरकारी संपत्ति को नुक्सान पहुचाने वालो को मत बख्शो जो मेरे कमाई के आयकर से बनाई जाती है। इन नामुरादों के लिए अब कोई सहानुभूति नही है। आरक्षण से जगह पाये और सुविधाएं भकोसते लोगों का भी अब सोशल बाय काट होना चाहिए क्योंकि ये वो ही भस्मासुर है जो भला करने वाले को दंश मार रहे है। बहुत हो गया नाटक और वोट बैंक का खेल। भारतीय प्रशासनिक सेवा में ऐसे दो तीन लोगो को मैं जानता हूँ जो अपनी चमार जाति छुपाकर ब्राह्मणों का सर नेम लगा रहे है , नायब तहसीलदार से होते हुए आरक्षण की बैसाखी से आज मप्र में कलेक्टर बने बैठे है और एक वाक्य अंग्रेजी का नही आता , चांटे और घूंसे खाकर जी रहे है और रुपया बटोर रहे है, बस बोलो मत चमार है हरिजन एक्ट लगा देंगे। चापलूस ,मक्कार और अव्वल दर्जे के धूर्त है ये सब आरक्षित लोग ।
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आजकल काम है नही कुछ ख़ास सोच रहा हूँ कुछ गेती, तगारी, सब्बल, फावड़ा, और चाकू - छुरी लेकर देवास के स्टेशन पर पहुँच जाऊं और रेलवे की पटरियां उखाड़ना शुरू कर दूं कि जिन्दगी में कोई तो मांग पुरी करें सरकार . क्योकि क़ानून मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता और राजनीती तो पटरी उखाड़ने से ही चलती है, रहा सवाल लोग कौन होंगे तो वे सभी मेरे क्षेत्र के ब्राह्मण, बनिए, सिंधी, पंजाबी, कायस्थ, ठाकुर और अन्य भी. साला आरक्षण तो मिलेगा पांच प्रतिशत ही सही हर जाति और समुदाय को, तंग आ गया हूँ गत साठ बरसों से साला SC/ST/OBC जैसे शब्द पढ़कर हर जगह. नफ़रत हो गयी है इन शब्दों से अब और फिर मामाजी भी वसुन्धरा जी की पार्टी वाले ही है - वे भला क्यों ना देंगे आरक्षण राज्य की नौकरियों में ? उन्हें अगला चुनाव जीतना है या नहीं ? देवास से हर जगह जाने वाली गाड़ियां गुजरती है ........
तो बोलो गुर्जरों की जय - जिन्होंने देश की तमाम जातियों और समुदायों को रास्ता दिखाया और कर्नल बैसला को अगले साल मोदी जी पदम् भूषण से नवाजेंगे यह पक्का है, जब रजत शरमाओ जैसे को मिल जाता है तो कर्नल बैसला तो महान आदमी है इतिहास पुरुष है, जियो जी भरके .......
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