Skip to main content

Role of Press and Advertisements - Posts of 10-11 July 16


भीगा आसमान, गीली धरती और कोयल
*****
रिमझिम में नेह की अमृत बूँदें
*****
जिस देश में सेनेटरी नेपकिन, गुटखा, पान मसाले, टूथपेस्ट, और चड्ढी बनियान से राष्ट्रीय न्यूज प्रायोजित होती हो और नीम हकीम, संगम तेल, जापानी तेल और अंग वर्धक फर्जी उपकरणों से अखबार चलते हो, पोर्न तस्वीरों से अखबारों के ई संस्करण निकलते हो, ब्लैक मेल करके टेबलाईट या सप्लीमेंट निकलते हो, थानों से आई दारु और आय ए एस अधिकारी के बंगले पर हुई शराब, शबाब और कबाब पार्टी से देर रात लीड न्यूज बनती हो, सत्ता और सरकार के भृष्ट मंत्रियों के थोबड़े दिखाते विज्ञापन और कभी जमीन पर ना दिखने वाली योजनाओं से पत्रिकाएं छपती हो वहाँ आपको क्या उम्मीद है कि मीडिया चौथा स्तंभ है, मुआफ़ कीजिये आप भी निरे मूर्ख है फिर तो !!!
*****
जनसंख्या दिवस पर जनसंख्या रोकने वाले भूल चुके है कि वे पैदा हो चुके है !!!
*****
खालिद का बुरहान की तुलना चे से करना गलत है इसलिए कि चे ग्वेरा एक बड़ी क्रान्ति की बात करते है और बदलाव की बात करते है और अलग मुक्ति की बात करते है जबकि यहां एक घोषित लड़ाकू को, जो भाई की मौत का बदला लेना चाहता है, को महिमा मंडित किया जा रहा है। मुझे लगता है कश्मीर पर अलग से संविधान और बाकी पूर्वाग्रहों से हटकर बात करने और तुरन्त समाधान की जरूरत है। यह काम देश के सभी लोगों को मिलकर करना चाहिए नाकि सिर्फ मोदी महबूबा और मीडिया। हम सब जानते है कि ये तीनों खाली और पूर्वाग्रहों से ग्रसित है बुरी तरह से।

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही