एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता प्रशिक्षण कार्यक्रम में मुझे बताया गया कि मप्र के अधिकाँश सरकारी अस्पतालों में जिसमे एमवाय, मेडिकल कॉलेज, जिला अस्पताल, सामुदायिक केंद्र, प्राथमिक केंद्र और सब सेंटर भी शामिल है, में कार्यरत कई पुरुष कर्मचारी जिसमे वार्ड बॉय से लेकर बीएमओ साहेबान और मेडिकल ऑफिसर्स तक ड्यूटी के दौरान शराब में धुत्त रहते है और इस दौरान वे गाली गलौज और महिला कर्मचारियों से छेड़छाड करते रहते है. जब महिला कर्मचारी शिकायत करती है तो बीएमओं या सीएमएचओ अक्सर इन महिला कर्मचारियों को यह कहकर समझा देते है कि आपको क्या करना है, मै उसे समझा दूंगा, और फ़ालतू की नौटंकी क्यों कर रही हो, आदि- आदि. फलसवरूप कई बार ये ही कर्मचारी महिला मरीजों, उनके साथ आई बच्चियों या महिला स्वास्थ्य कर्मचारियों के साथ दुष्कर्म करते है.
एक महिला डाक्टर ने बताया कि कैसे उसने एक कर्मचारी को सुधारा और अब वो उसे माताजी कहता है, वो कर्मचारी अक्सर उनके कमरे के बाहर से निकलते हुए उन्हें घूरता था, फिर अपने मोबाईल में अक्सर ऐसे गाने बजाता था जैसे उन्हें प्रपोज कर रहा हो, अक्सर उनके कपड़ों पर भद्दे कमेन्ट करता था, या हाथ के इशारों से उन्हें छेड़ता था, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और सीधे शिकायत की बाद में उनकी शिकायत पर उस कर्मचारी का स्थानान्तरण हो गया पर राजनैतिक दबाव से वो वही आ गया और इन महिला डाक्टर के पांवों में गिरकर माफी माँगी और अब इन्हें माता जी कहता है. कानवड के वार्ड बॉय द्वारा मात्र ढाई बरस की बच्ची के साथ हुआ बलात्कार हम भूले नहीं है. और इस बात से हम सब वाकिफ है कि यह सब सच है पर किसी माई के लाल में दम है कि ड्यूटी के वक्त शराब पीते पाए जाने वाले कर्मचारी के खिलाफ सख्त कदम उठाये क्योकि ये कर्मचारी अक्सर वरदहस्त प्राप्त होते है और कई बार जिलाधिकारी भी इन्हें कुछ नहीं कर पाते. सीहोर में तत्कालीन जिलाधिकारी एक बीएमोओ के खिलाफ कुछ नहीं कर पाते थे क्योकि उनके तार सीधे भोपाल से जुड़े थे और वे एक प्रभावी मंत्री के क्षेत्र में सामुदायिक केंद्र के खुदा हुआ करते थे. ये डाक्साब यहाँ बरसों से जमे हुए है और ना खुद काम करते है ना किसी को करने देते है. और शिकायत करने पर भी इनका कुछ नहीं होता.
बातचीत से यह निकला कि क्या एक शोध किया जाए कि कितने प्रतिशत कर्मचारी ऐसे होंगे, तो इन कार्यकर्ताओं ने कहा कि शोध की क्या जरुरत है लगभग साथ से सत्तर प्रतिशत कर्मचारी ड्यूटी के दौरान दिन में भी शराब के नशे में धुत्त रहते है विशेषकर वार्ड बॉय, स्वीपर और ड्रेसर और डाक्टर चाहकर भी कुछ नहीं कर पाते क्योकि हरिजन एक्ट, हड़ताल और ना जाने कितने इन्हें डर सताते है. इसमे आदिवासे इलाकों में 'आशा' भी शामिल है जो दिन में शराब के नशे में धुत्त रहती है और किशोर वय की लड़कियों को, जो जांच कराने आती है अपने गाँव के प्रभावाशाले लोगों से सम्बन्ध बनाने के लिए दबाव डालती है.
इस पांच दिवसीय प्रशिक्षण ने स्वास्थ्य को लेकर और जमीनी हकीकतों को लेकर मेरे सारे पुर्जे खोल दिए और समझ नहीं आता कि पुरे कुएं में भांग है कहाँ से शुरू किया जाए तो कुछ सुधरे. मप्र में प्रमुख सचिव स्वास्थ्य कभी चौपाल लगाकर कुछ जमीनी महिला कार्यकर्ताओं की बात सुनेंगे या अंतर्राष्ट्रीय स्तर के लोग जो UNFPA, UNICEF, UNDP, DFID, FHI 360, MPTAST में बैठे है कुछ करेंगे इन मुद्दों को लेकर या यूँही आंकड़े बाजी करके अपना दायित्व निभाते रहेंगे?
बात सिर्फ स्वास्थ्य की नहीं है बल्कि शिक्षा और अन्य विभागों की भी है जहां अक्सर कर्मचारी शराब के नशे में धुत्त रहते है और काम नहीं करते और सारी जगह गन्दगी फैलाते रहते है. अब हमारी विधायिका में भी कई बार ऐसे किस्से सुनने को मिल जाते है तो इन कर्मचारियों से क्या अपेक्षा रखें.
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