सटीक और सार्थक समीक्षा साधुवाद भाई Mahesh Punetha
युवा साहित्यकार जितेंद्र श्रीवास्तव के संपादन में निकला ‘उम्मीद’ का प्रवेशांक एक नई उम्मीद लेकर आया है। सामग्री की विविधता इसे पत्रिकाओं की भीड़ में एक अलग पहचान देती है। जैसा कि अपने संपादकीय में जितेन्द्र लिखते हैं कि उनकी आकांक्षा थी एक ऐसी पत्रिका निकाली जाए जो रचना ,आलोचना और शोध का मुकम्मल त्रैमासिक हो ,निश्चित रूप से यह अंक उनकी इस आकांक्षा का प्रतिबिंब है। उनकी कोशिश है कि सतही बहस में न पड़कर हिंदी के साहित्यिक और वैचारिक परिसर को विस्तार दिया जाय , इस अंक को देखकर कहा जा सकता है कि वह इस दिशा मंे एक सही शुरूआत करने में सफल रहे हैं। पत्रिका में शताब्दी,उम्मीद विशेष, आलेख,पाठ-विश्लेषण,शोध और समीक्षा जैसे स्तम्भों के साथ-साथ कहानी ,कविता ,उपन्यास अंश आदि विधाओं का समावेश किया गया है।
आगामी अंकों में स्त्री,दलित व आदिवासी विमर्श पर विशेष सामग्री देने की योजना है। 172 पृष्ठों वाली इस पत्रिका की एक और विशेषता है कि रचना हो या आलोचना उसमें युवा स्वरों को विशेष स्थान दिया गया है। कविता में जहाँ मनोज कुमार झा ,अशोक कुमार पाण्डेय, बहादुर पटेल जैसे सशक्त युवा कवि हैं वहीं कहानी में संदीप नाईक और आलोचना में अरूण होता ,सुबोध शुक्ल ,जितेंद्र गुप्त व रवि रंजन कुमार जैसे चर्चित व समर्थ नाम जिनसे हिंदी साहित्य को काफी उम्मीद हैं। नंददुलारे वाजपेयी की पत्रकारिता और संपादन कला पर डा.आलोक गुप्त, कृष्णमूर्ति के शिक्षा दर्शन पर रघुवंशमणि तथा भूमंडलीकरण का परिप्रेक्ष्य और हिंदी उपन्यास पर दीपक प्रकाश त्यागी के आलेख भी उल्लेखनीय हैं। दिनेश श्रीनेत ने हिंदी सिनेमा के आगामी सौ वर्षों की दिशा का अच्छा आंकलन किया है।
इसके आलावा भी प्रस्तुत अंक में बहुत कुछ पठनीय है जैसे समीक्षा खंड में वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना,अरूण कमल व चर्चित कवि उमेश चैहान के नए कविता संग्रहों पर क्रमशः त्र्यम्बक नाथ त्रिपाठी ,अमरेन्द्र पाण्डेय ,सुशील सिद्धार्थ की समीक्षाएं, शोध खंड में निवेदिता,शंभुनाथ मिश्र और गायत्री रमाशंकर मिश्रा के शोधपरक आलेख । अनामिका और अनूप कुमार की कविताएं , तेजेन्द्र शर्मा की कहानी ,शाहबुद्दीन ,बिपिन तिवारी ,पुष्पपाल सिंह ,बृजराज सिंह और चैनसिंह मीणा की समीक्षाएं ,सुखजीत की पंजाबी कहानी और ट्रंगट्रंग डिन्ह का वियतनामी उपन्यास अंश भी अंक को समृद्ध करते हैं।साक्षात्कार, यात्रा वृतांत ,संस्मरण आदि विघाओं को पत्रिका में शामिल किया जाता तो पत्रिका में जो थोड़ी बहुत कमी रह गई है वह भी पूरी हो जाती।
कुल मिलाकर अंक काफी मेहनत और गहरी दृष्टि से तैयार किया गया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि आगे के अंकों में और अधिक बेहतर से बेहतर सामग्री पढ़ने को मिलेगी और ‘उम्मीद’ हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में अपना स्थान बनाने में सफल रहेगी।
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