जब अलीराजपुर के दूर-दराज के गाँव में गया था तो लगा था कि क्या मतलब है शिक्षा का- ना स्तर, ना गुणवत्ता और ना जाने क्यों ये पढ़ रहे है, ना नौकरी मिलेगी, ना मान सम्मान; परन्तु जब शशिकला से मिला तो सच कहूं मेरे लिए जीवन के मायने ही बदल गए. विस्तार से लिखूंगा थोडा समय मिल जाए, फिलवक्त इतना ही कि शशिकला खुद बारहवीं पास है इनकी चार बेटियाँ है पति मजदूरी करते है जो अनियमित होती है. संस्था कल्याणी सामुदायिक विकास केंद्र, कठ्थीवाडा से प्रेरित होकर ये बहनें अपनी बच्चियों का जीवन सुधार रही है. इन्हें कल्याणी संस्था ने निशुल्क होस्टल उपलब्ध करवाए है, जहां बच्चियां पढाई के साथ जीवन कौशल शिक्षा और कई प्रकार के हूनर भी सीख रही है, पर स्कूल की फीस आदि तो देना ही पड़ता है. शशिकला की एक बेटी इस होस्टल में रहकर पढ़ रही है.
ये खुद एक प्राईवेट स्कूल में नौकरी करके दो हजार मासिक रूप से कमाती है और सबसे आश्चर्यजनक यह है कि अपनी चारों बेटियों की फीस में तेरह सौ रूपये हर माह खर्च कर देती है. जब इन्होने कहा तो मेरे पावों के नीचे से जमीन सरक गयी कैसे परिवार का गुजारा करती होंगी, दुनिया के इतने बिरले अनुभवों में मेरे लिए ये बेहद भावुक क्षण थे जब यह अपनी कहानी बयाँ कर रही थी और फिर जब इन्होने विस्तार से बताया कि इनके बच्चों के ये पढ़ा लिखाकर नौकरी करवाना चाहती है, उन्हें स्वालंबन सिखाना चाहती है, समुदाय में बदलाव का सारथी बनाना चाहती है.
शशिकला अपने साथ अपने समुदाय की अन्य आदिवासी बहनों को भी प्रेरित करती है कि एक रोटी कम खाओ, पर बेटियों को पढाओ तो यकीन मानिए दोस्तों मै बस रोने को हो गया, और फिर अचानक मुझमे ताकत जागी कि जब ये बहन इतना परिश्रम करके, मेहनत करके चार बेटियों के लिए सोच रही है तो हम समाज की सारी उपेक्षित बेटियों की पढाई के लिए क्यों नहीं कुछ कर सकते.
ये चार-पांच बहने जिनमे शशिकला भी है, को मेरा सलाम और इनकी बेटियों को असीमित दुआएं कि इस समाज में अपना स्थान हासिल करें. ये आदिवासी बहने उत्तर प्रदेश और लखनऊ के उन निकम्में और भ्रष्ट, नवाचारियों और नालायकों शिक्षाविदों से करोड़ों गुना बेहतर है जो दारु और गांजे के नशे में में गरीब बच्चों का रूपया हड़प जाते है, बल्कि इन बहनों की उनसे तुलना ही करना बेमानी है.
बहरहाल सलाम इन सबको.
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