Skip to main content

कामरेड गामा बोले "आधी बीमारी ठीक हो गई-मगर आप काम छोड़ कर क्यों आये कामरेड " कामरेड बादल सरोज फेसबुक पर 9 नवम्बर 2013 अपने नोट्स में

कामरेड गामा बोले "आधी बीमारी ठीक हो गई-मगर आप काम छोड़ कर क्यों आये कामरेड " कामरेड बादल सरोज फेसबुक पर 9 नवम्बर 2013 अपने नोट्स में 

9 November 2013 at 15:39
महू विधानसभा क्षेत्र में पार्टी  उम्मीदवार का नामांकन भरवाने और अभियान की सभाओं में हिस्सा लेने मै छह को ही इलाके में पहुँच गया था. सिमरोल या दतौदा में कहीं था जब संदीप नाइक का स्टेटस-लिंक कामरेड गामा के बहाने सच्चाई की खोज पढ़ा. चिंता बढ़ी.  सात नवम्बर की सुबह तड़के कामरेड गामा से मिलने उनके घर पहुंचे. सांस लेने में बेइंतहा तकलीफ के बावजूद गामा जी के चेहरे पर चमक आ गयी थी. वे काफी देर तक मुझे अपने गले से लगाए रहे-और भावुक होकर बोले कि "आपके आने से मेरी आधी बीमारी ठीक हो गई है " मगर इसी के साथ उन्होंने सवाल भी किया कि  "आप चुनाव और पार्टी  के काम को बीच में छोड़कर आये क्यों कामरेड?" मेरे साथ पार्टी नेता कैलाश लिम्बोदिया भी गए थे. गामाजी के साथ चाय पीते हुए हम दोनों ने  इलाज की माहिती ली-सारी रिपोर्टें देखीं. उनके बेटे इलियास, नातिन निस्बा से दीगर जानकारियां जुटाईं. गामा जी की तीसरी पीढ़ी के  छोटे से अरमान के साथ अपने अरमान साझे किये. कुछ जरूरी इंतजामात तुरंत किये गए. बाकी के बारे में ठोस मंसूबे बनाये गए.
गामा जी को ले जाकर ई एस आई के इंदौर के नंदा नगर अस्पताल की आई सी यू में दाखिल करा दिया गया है. उनकी साँसे काबू में हैं. उनकी देखभाल जारी है. उम्मीद है बहुत जल्द ही वे देवास की सडकों पर फिर एक बार लालझंडा थामे जलूसों की अगुआई करते दिखाई देंगे.
अपनी साँसों के आरोह-अवरोह को काबू में रखने की हर सम्भव कोशिश करते हुए भी गामा जी अपनी तस्वीरों के अल्बम दिखाते हुए कभी कामरेड शैली तो कभी धाकड़ साब की याद दिलाते रहे. एक तस्वीर में मौजूदा राज्य सचिव का  लगभग पूरी काली दाढ़ी वाला फ़ोटो देखकर उनके चहरे पर भी शरारती मुस्कान आ गयी. . घरवालों ने बताया कि आज काफी अर्से के बाद मुस्कुराये हैं गामा जी.
मुस्कराहट के लिए ही तो लड़ाई है गामाजी और उनके जैसे बाकियो की.
मुस्कराहट की सल्तनत और ख़ुशी का साम्राज्य ही तो कायम करना है पार्टनर !!!  ये आर्थिक बराबरी, सामाजिक समानता, लूट की जगह इंसानियत की बहाली..वगैरा वगैरा तो पतवारें हैं-नांवे हैं..नखलिस्तान की जमीन जो इन भंवरो-तूफ़ानो-मंझधारों को पार करने के बाद आएगी वह मुस्कुराहटों की चमक से ही तो रोशन होगी. 
(कितने सारे मित्रो ने - उन सब के नाम लिखने में काफी समय लगेगा.- उस पोस्ट को/शेयर की गई पोस्ट को लाइक करके-अनेक सुझाव देकर-यहाँ तक कि तत्काल मदद की पेशकश करके मित्र  संदीप नाइक की चिंता के साथ साझा किया है. एक नयी सी बहस भी शुरू  की है. ऐसी अभिव्यक्तियाँ हौंसला बढ़ाती है. धन्यवाद लिखने में हिचक हो रही है-गामा जी और उनके जैसे लोग किसी व्यक्ति-तंजीम भर की संपत्ति नहीं है. वे समूचे समाज के हैं इसलिए सभी की ओर से सभी का आभार.)   

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...