Skip to main content

देवास की खुश्कगवार सुबह










देवा की इस खुश्कगवार सुबह को सुबह बनाया अनुज चेतन पंडित ने जो आज फ़िल्मी दुनिया के स्थापित कलाकार है. प्रकाश झा के बैनर में बनने वाली लगभग सभी फिल्मों में वे एक दशक से ज्यादा समय से काम कर रहे है, द वेडनस डे, जयप्रकाश जैसी नायाब फिल्मों में काम करने वाले चेतन देवास के ही है और स्व नरेन्द्र पंडित के सुयोग्य एवं होनहार सुपुत्र है. आज सुबह उन्होंने परिणय वाटिका में देवास के लिखने-पढ़ने वालों और ललित कलाओं से जुड़े लोगों को आमंत्रित किया और सबसे चर्चा की, जब मैंने पूछा कि ये क्यों तो चेतन ने कहा कि वे मुम्बई में जब भी समय होता है सत्येन्द्र त्रिपाठी के घर जरुर जाते है जहां हर रविवार को बतरस होता है और सुधीजन एक विषय पर बात करते है. 

बेहद आत्मीय कार्यक्रम था यह दो तीन घंटे चलने वाला- जहां चित्रकार से लेकर संगीत गीत, कहानी कविता आलोचना के सभी लोग इकठ्ठे थे. नाटकों से जुडी युवा पीढी थी जो अपना जीवन नाटक संगीत में देने की लालसा रखती है. आशा यह है कि देवास की अभिव्यक्ति संस्था इस प्रयास को ज़िंदा रखेगी और आगे बढायेगी. मप्र रोडवेज से सेवानिवृत्त गनी भाई के दो किस्से सुनकर पुरी महफ़िल में जान आ गयी कि किस्सा गोई किसे कहते है. जो भी हो बहरहाल मजा आ गया सुबह सुबह सबसे मिलकर. बहादुर पटेल, ब्रजेश कानूनगो, डा प्रकाश कान्त, संजीवनी ताई, प्रभात माचवे, हेमंत बक्शी, जीवन सिंह ठाकुर, मुश्ताक, इकबाल, अभिषेक राठोर, गोपाल पवार, प्रकाश पवार, सोनाली, जयप्रकाश चौहान, सुधीर एवं असीम पंडित, नवरतन सिंह, झोकरकर जी, आदि ऐसे ढेर साथी थे जो अपने अनुभव बाँट रहे थे और महसूस कर रहे थे कि ऐसा होना चाहिए. शायद एकलव्य में हम लोगों ने जो पाठक मंच शुरू किया था उसे फिर से ज़िंदा करने की आवश्यकता है परन्तु वही बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे? 

चेतन से लम्बी बात हुई बड़े दिनों बाद.............एक कला अकादमी खोलने का मैंने कहा क्योकि भोपाल का नाटक स्कूल कुछ ठोस कर नहीं पा रहा और मालवे में जो कलाओं का संगम है वह शायद मप्र के दूसरे हिस्सों में ना हो. खैर............इसी बहाने अपुन ने भी सबको दीपावली मुबारक कह दिया लगे हाथ, आपको भी मुबारक............अपने शहर के लोगों के साथ रहिये, जो जहां है वही से कुछ करिए..........देश को रचनात्मक कामों की बहुत आवश्यकता है, हम सबकी आवश्यता है, और एक ऐसे सहज माहौल की जहां से युवा पीढी कुछ सीख सकें, हम बुरा देश उन्हें सौंपकर जाने वाले है यकीन करिए और अभी समय नहीं गुजरा है, कुछ करिए, कुछ करिए........ दोस्तों प्लीज़....................

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...