बेहद आत्मीय कार्यक्रम था यह दो तीन घंटे चलने वाला- जहां चित्रकार से लेकर संगीत गीत, कहानी कविता आलोचना के सभी लोग इकठ्ठे थे. नाटकों से जुडी युवा पीढी थी जो अपना जीवन नाटक संगीत में देने की लालसा रखती है. आशा यह है कि देवास की अभिव्यक्ति संस्था इस प्रयास को ज़िंदा रखेगी और आगे बढायेगी. मप्र रोडवेज से सेवानिवृत्त गनी भाई के दो किस्से सुनकर पुरी महफ़िल में जान आ गयी कि किस्सा गोई किसे कहते है. जो भी हो बहरहाल मजा आ गया सुबह सुबह सबसे मिलकर. बहादुर पटेल, ब्रजेश कानूनगो, डा प्रकाश कान्त, संजीवनी ताई, प्रभात माचवे, हेमंत बक्शी, जीवन सिंह ठाकुर, मुश्ताक, इकबाल, अभिषेक राठोर, गोपाल पवार, प्रकाश पवार, सोनाली, जयप्रकाश चौहान, सुधीर एवं असीम पंडित, नवरतन सिंह, झोकरकर जी, आदि ऐसे ढेर साथी थे जो अपने अनुभव बाँट रहे थे और महसूस कर रहे थे कि ऐसा होना चाहिए. शायद एकलव्य में हम लोगों ने जो पाठक मंच शुरू किया था उसे फिर से ज़िंदा करने की आवश्यकता है परन्तु वही बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे?
चेतन से लम्बी बात हुई बड़े दिनों बाद.............एक कला अकादमी खोलने का मैंने कहा क्योकि भोपाल का नाटक स्कूल कुछ ठोस कर नहीं पा रहा और मालवे में जो कलाओं का संगम है वह शायद मप्र के दूसरे हिस्सों में ना हो. खैर............इसी बहाने अपुन ने भी सबको दीपावली मुबारक कह दिया लगे हाथ, आपको भी मुबारक............अपने शहर के लोगों के साथ रहिये, जो जहां है वही से कुछ करिए..........देश को रचनात्मक कामों की बहुत आवश्यकता है, हम सबकी आवश्यता है, और एक ऐसे सहज माहौल की जहां से युवा पीढी कुछ सीख सकें, हम बुरा देश उन्हें सौंपकर जाने वाले है यकीन करिए और अभी समय नहीं गुजरा है, कुछ करिए, कुछ करिए........ दोस्तों प्लीज़....................
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