Kejariwal a Dramatist and Modi
हम सब इतने मूर्ख सच मे है क्या जो गिरगिटों की बात मानकर राफेल, छोटे - बड़े- मझले मोदी से या विक्रम कोठारी से ध्यान हटाकर दिल्ली के मुख्य सचिव को चांटा मारने पर चले जायेंगे। और अगर यह सही है तो अभी शूरूवात है जिस तरह की हरकतें तुम गिरगिट करते हो तलवें चाटने से लेकर पोतड़े धोने तक उसका सिला तो और ज्यादा होना चाहिए।
शर्म आती नही हुक्मरानों को जो हमको इतना मूर्ख समझ रखा है और सबसे ज़्यादा अरविंद केजरीवाल पर तरस आता है कि यह बन्दा भी अजीब अहमक है जो हमेशा समय आने पर गुड गोबर करता है।
असल मे लगता है कि दिल्ली के नाटक का निर्देशक यही है जो अपने आका को ज्ञान भी देता है और नौटन्की भी बखूबी निभाता है।
अरविंद तुम अपने को समझते क्या हो कि तुम्हारे और केंद्र सरकार की सास बहू वाली लड़ाई किसी को समझ नही आएगी और धूर्तता से सब छुप जाएगा
ये बताओ तुम भी कही इस बैंक और बाकी नाटक में शामिल तो नही ? और प्रधान सेवक जी आपको ये बचकाने सुझाव कौन देता है कि मन की भड़ास सुनाने के बजाय ये बच्चों वाली मसखरी हरकतें करवाये - सुधीर, अर्णब या रजत शर्मा ?
असली बात यह है कि सामने आकर बोलो और हिम्मत से बोलो कि हाँ यह हुआ और यह करूँगा और हाँ पढ़ लिखकर समझकर आना, रोने धोने का नाटक मत करना और कर्नाटक चुनाव या उत्तर पूर्व के चुनाव अभियान में जाकर बोलोगे तो कोई अर्थ नही रहेगा - समझ रहें है ना !
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ऐसे लोगों को आसानी से माफ मत करो - जो छठे चौमासे में एक दिन आकर आपकी वाल पर आकर पन्द्रह बीस दिन की की पोस्ट डेढ़ से दो मिनिट में पढ़ जाते है और 57, 79 नोटिफिकेशन दहेज में छोड़ जाते है।
यह भी भक्ति की पराकाष्ठा और किसी को चिढ़ाने का बेहतरीन तरीका है।
अब ऐसे लोगों जो भी छाँटना पड़ेगा जो गाहे बगाहै इरिटेट करते है।
हे डेढ़ मिनिट की औलादों, कम से कम अपने पूरे विकसित होने में नौ माह तो माँ के गर्भ में रह लेते, कमबख्त बाहर आकर दुनिया पर एहसान कर दिया।
समझ नही आया हो तो नाम टैग करूँ तुम्हारा छह मासी या सतमासी अर्ध विकसित भ्रूणों !!!
तुमसे ही जमाना है नामुरादों
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बहुत सारे युवा और अधेड़ भी नौकरी से तंग आकर या हकाल दिए जाने के कारण या अयोग्य होने के कारण या पिछवाड़े पर चार दुलत्ती पड़ने के कारण या ज्यादा काम होने के कारण सब छोड़ छाड़ कर फेलोशिप, एनजीओ या स्टार्ट अप के नाम पर धंधा खोल बैठे है और अपनी आत्म मुग्ध प्रशंसा में नौकरी छोड़कर आने को पहला गुण बताकर दो कौड़ी का प्रभाव डालने का एहसान करते है। रोते रहेंगे कि काम नही, रुपया नही फिर भी सूट बूट में आपको माह के 15 दिन एयर पोर्ट पर दिखेंगे और पुरस्कार या ज्ञान बाँटते दिखेंगे।
सबसे ज्यादा इनसे बचने की जरूरत है ये भक्तों से ज्यादा बदमाश और हरामी है।
मैं भी कभी कभी इनमे शामिल हो जाता हूँ इसलिए "हम इक उम्र से वाकिफ है " वाला जुमला सही है। 30 -35 तक की उम्र के अधेड़ कुँवारे ये "Complicated Relationship" का तमगा लगाए और तथाकथित बूढा गए - युवा कही कोई नौकरी नही कर रहा था और कोई पढ़े लिखे नही है ।
बाप का रुपया उजाड़कर किसी घटिया कॉलेज से इंजीनियरिंग की और प्रेस्टिज जैसे दो कौड़ी के घटिया कॉलेज से एम बी ए !!! इतने दक्ष है ये कि अपने बारे में चार लाइन हिंदी अंग्रेजी में नही लिख सकते और ना ही चार मुद्दों की समझ है। बोलें तो एकदम बकर उस्ताद जो यहां वहां फेंककर देश दुनिया के लिए बोझ बन गए ही। इनके बाप माँ से जाकर मिलिए कभी जो इनकी जेब खर्च और रजनी गन्धा का खर्च पेट काटकर देते है।
लेखन से कविता - कहानी के नाम पर धब्बा और कचरा परोसने वाले दुनिया भर के लोगों से जीवंत सम्पर्क रखते है। फ्री का जियो वापरकर अपने टी आर पी बढाने वाले ये बकैत दलित मुद्दों से लेकर अध्यात्म तक का कूड़ा कचरा परोसते है, इनका आधा ध्यान तो लाईक कमेंट्स और जुगाड़ में रहता है। मजेदार यह कि बड़ी बेशर्मी से अपने आपको ये परोसते है और संस्कृति के नाम पर कुछ कमा लेने की कोशिश करते रहते है।
इन पर बिल्कुल भरोसा ना करें और जब भी ये कोई पोस्ट लगाएं तो समझ लें चूतिया बनने का नम्बर आपका है अब !
कोई कहें स्टार्ट अप आप स्टार्ट होकर भाग लें वरना आपकी खैर नही !!!
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पर्रिकर ने बीफ़ ज़्यादा खा लिया क्या ? विदेश जाना पड़ रहा है इलाज के लिए
मैं के रिया था एक बार रामदेव को दिखा देते पेले !
धिक्कार है नेहरू से लेकर मोदी सरकार तक जिसने सत्तर वर्षों में देश मे एक भी अस्पताल विकसित नही किया जहां सारी सुविधाएं हो, जांच हो और समुचित इलाज हो सकें। इससे तो सिंगापुर ठीक है छोटा सा बित्ता भर देश जहां विश्व का बेहतरीन अस्पताल है। क्या हमारे डाक्टर और पैरा मेडिकल स्टाफ इतना योग्य नही कि एक आदमी का इलाज कर सकें।
हजारों लाखों बच्चों को मारकर किसकी दुआएं मिलेंगी सोचा कभी, तुम सब इतने कमींन हो कि नवजात बच्चों और गर्भवती महिलाओं का पोषाहार खा जाते हो और उन्हें मरने को छोड़ देते हो तो क्या इलाज की व्यवस्था करोगे ?
मुम्बई में कोकिला बेन अस्पताल भी नही, क्या अपोलो फोर्टिस और एम्स मात्र बिल देने की मशीनें है , PGIs लखनऊ और चण्डीगढ़ सिर्फ डिग्री देने की गौ है ? यह सवाल आपको नही मथते तो आपको अब समझ आ रहा कि स्वास्थ्य में बजट की कमी और शिक्षा में मूर्ख लोगों को लीडरशिप देने का क्या अर्थ है ?
आये दिन उठ सुठकर कोई भी ससुरा पंच पार्षद या प्रतिपक्ष का नेता विदेश चला जाता है और हमारी मेहनत का रुपया बर्बाद होता है इनके इलाज में।
जिस देश की संस्कृति पर गर्व करके आप तमाम पतंजलि और आयुवेदाचार्यों को याद कर फुले नही समाते वे कहां चले जाते है। पोछ दो सुश्रुत, चरक के नाम बन्द कर दो बैद्यनाथ और हमदर्द की दुकान, उस रामदेव को अनुदान देना बंद करो और सब अस्पताल बन्द करके आधार कार्ड बनवाते रहो सुतियों और फिर हवाई टिकिट बांटो।
अब चुनाव आ रहा है जाहिर है उल्टी दस्त तो लगेंगे ही तुम्हे।
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