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गौमूत्र - गोबर से लेकर चिकित्सा विज्ञान तक तमाम कूढ़ मगज कचरा और ना जाने क्या क्या से वैज्ञानिक मानसिकता का सत्यानाश कर दुनिया को नई अंधविश्वासी चेतना देने वाले साँप बिच्छू मोर के आँसू से बच्चा पैदा कर देने वाले देश के संवैधानिक पदों पर आसीन महान जनों से आम लोगों को जो जुगाड़ से जीवन और उपग्रह चला रहे है - को विज्ञान दिवस की शुभकामनाएं
और लानत हजारों उन मूर्ख ढपोरशंखी वैज्ञानिक लोगों, वैज्ञानिक मानसिकता रखने वाले लोगों पर जो जात पांत नही मानते, चिंतन और एक्शन में यकीन रखते है साथ ही सबके भले की सोचते है।
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भारतीयों को सरकारों ने बेवकूफ बनाते बनाते 70 साल गुज़ार दिए कि कानून सबके लिए बराबर है।
इसी को मानते हुए हम सब बैंकों से लेकर हर विभाग में कानून हाथ में लें , लोन लें योजना का लाभ लें और फिर देखें कि क़ानून के भ्रष्ट रक्षक और कानून के बराबरी वाले सिद्धांत का ज्ञान बघारने वाले क्या कहते है !
यह एक संविधानिक झूठ है जो झांसे से कम नही है अगर ऐसा है तो तमाम न्यायाधीश टेम्पो मैजिक से कोर्ट जाए, कलेक्टर भी गैस की टँकी की सब्सिडी के लिए एजेंसी के चक्कर लगाएं और मंत्रीगण पी डी एस की दुकान से राशन खरीदें और पत्रकार लोकसभा अध्यक्ष की पूरणपोली चाटना बन्द करें जो बरसों से चाट कर पूरी बेशर्मी से उनके नमक का कर्ज अदा कर रहे है या ये अन्नदाता शहर भर को, देश भर को भी खाना परोसे और इनकी पार्टियों में झुग्गियों के लोगों को घुसने की उतनी ही बेशर्म आजादी हो जितनी इन चाटुकारों को होती है।
इतना बड़ा झूठ दुनिया मे किसी ने नही बोला होगा। कितने बेवकूफ है हम !
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रविश भाई
इन युवाओं को ना नौकरी की जरूरत है ना ये डिजर्व भी करते है , इन्हें इनके हाल पर मरने को छोड़ दीजिए। ये उज्जड, गंवार और मूर्ख सिर्फ भारत माता की जय, नदी बचाओ, रैली धरना और भीख मांगने लायक है।
जब इन्हें स्वार्थवश भी अपना वर्तमान नही दिख रहा तो भविष्य क्या देखेंगे, रोज गोबर खाकर, गौ मूत्र पीकर देशभक्ति रगों में जोर मार रही है , 35 से 40 की उम्र तक बेरोजगार बैठे है शादी ब्याह नही हो रहै, निठल्ले बैठे है और नपुंसकों की तरह से बाप माँ का रुपया उजाड़ रहे है , इनसे क्या सहानुभूति और इनके रोने धोने से क्या डरना।
जिन्हें खुद अपने जीवन, माँ बाप, पत्नी या पति की चिंता नही, परिवार समाज की चिंता नही और देश भक्ति में डूबकर मर रहे है उन्हें ऐसे तानाशाह ही हांक सकते है।
इन्हें मरने के लिए छोड़ दिया जाए ताकि देश की भारत माता का बोझ कम होगा ।
दुर्भाग्य है कि आज 55 % आबादी वाला युवा देश भयानक अंधविश्वास, उजबक किस्म के मुद्दों और उत्पाती मानसिकता का शिकार है जिसमे कभी राम रहीम आ जाता है और कभी नजीब, कभी ऊना में दलित पीटे जाते है और कभी फौज में भर्ती होने की परीक्षाओं में युवा शहर में आंधी ला देते है। ये जाहिल ना शिक्षित है ना ढोर गंवार ये सिर्फ भेड़ है और इससे ज्यादा कुछ नही कि कोई भी हरकारा इन्हें हांक सकता है जुमलों के एवज में। ये अर्ध शिक्षित बैंक का फार्म नही भर सकते, चार लाइन नही लिख सकते, बोल नही सकते सिवाय नारों के उनसे क्या उम्मीद रखें कि देश समाज या अपना भविष्य लिखेंगे। मेसेज फारवर्ड करने में उस्ताद ये कुछ नही कर सकते सिवाय अपने लिए अवतार ढूंढने और मदद की भीख मांगने के। बकर करने के नोबल पुरस्कार लाने में ये दुनिया को पछाड़ दें बाकी सब छोड़िए !!!
70 वर्षों से यही हो रहा है और अब अति हो गई है। मुझे अच्छा लगेगा कि कही से कोई निकलकर आये और एक बार अपने आप से, जिसे भी वोट दिया हो, जो भी माई बाप हो उससे पूछे कि ये जो गेहूँ दाल है उसे मैं कैसे खरीदूं, ये जो स्कूल कॉलेज और अस्पताल से लेकर सरकारी कार्यालय है या मसूरी की फैक्ट्री है गधों के प्रोडक्शन की या मीडिया के दलाल है क्यों ना इन सबको अरब सागर में जाकर डुबोया जाए और एक नई सुबह का स्वप्न देखा जाये
भाड़ में जाये वामपंथी, कांग्रेसी, बहुजन और अवर्ण सवर्ण , साला सबको छोड़ो मेरे जीवन का क्या करूँ और संविधान के बरक्स यह जो सरकार मैं 70 साल से बनाता आ रहा हूँ वो सबकी सब इतनी निकम्मी क्यों हुई , कर्मचारी भ्रष्ट आचरण क्यों करते है - कोई अगर पूछ लें तो मैं उसे नगद एक रुपया दूंगा।
Ravish Kumar भाई आप क्यों खून जलाते है , सच में मैं अब मदद नही करता किसी की इन्हें 2019 और फिर 2024 में देश बनाना है ही तो हम क्यों अपनी ऊर्जा लगाएं। हम तो ना गोबर खाएंगे, ना गौमूत्र पियेंगे और ना ही किसी के वृहद समाज मे शामिल होंगे। रही बात इन युवाओं की तो ये सिर्फ श्रीदेवी की मौत के बाद दर्शन करने उसके घर के बाहर 3 दिन खड़े रह सकते है और कावड़ यात्रा में ट्रक के नीचे आ सकते है या नर्मदा यात्रा के उन्माद में जीवन दे सकते है। मुझे तो इन पर तरस भी नही आता अब !!!
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मीडिया यदि अपना रोल ना निभाते हुए चापलूसी, दलाली और भ्रष्टाचार में गले गले तक फंसा हुआ है तो चुन चुन के इन लोगों को नामजद सामने लाये। इनकी डील और कर्मों का लेखा जोखा सामने रखें। चैनल्स में तो हालत बहुत ही खराब है और शर्मनाक यह है कि जब तक ये उस चैनल्स की खाते है तब तक अक्ल पर पर्दा पड़ा रहता है और जिस दिन पिछवाड़े पर हफ्ता नही देने या कमीशनबाजी का मूल्य ज़्यादा नही देते उस दिन इन्हें लात मारकर हकाल दिया जाता है इन्हें नैतिकता याद आती है और ये सदवाक्य बोलने लगते है। मेरी जानकारी में एक नही दस बीस पचास ऐसे है - जो खूब खाये पिये, अघाये और जब लात पड़ी तो बाहर आकर जनपत्रकारिता और सरोकारी की बात करने लगें।
अपने गुरुर में दम्भ से भरे हुए ये लोग अब अपनी विश्वसनीयता खो चुके है और महज झुनझुने से ज्यादा कुछ नही जिन्हें कोई भी व्यापारी या कारपोरेट जैसे - ओसवाल, जायसवाल, अग्रवाल, माहेश्वरी, वर्मा - शर्मा , सोलंकी या चौहान अपने तरीके से हर महफ़िल में बजा सकता है और ये भी तैयार होते है क्योंकि हाथ मे कुछ नही। इस जन्म में या अगले सात जन्मों में रविश कुमार ना हो पाने का फ्रस्ट्रेशन भी चौबीसों घँटों तारी रहता ही है। रजत या सुधीर जैसी मक्कारी भी नही सीख पाएं , रोहित सरदाना या अर्णब बनने की औकात नही - करें तो करें क्या - श्रीदेवी पर ही स्टोरी बनाएंगे !!!
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श्रीदेवी मरकर भी हवा हवाई बनी हुई है
हमारे मीडिया को उम्मीद है कि वो वापस आएगी कोई मिस्टर इंडिया उसे लेकर आएगा
कमाल का मीडिया है बच्चों के मौत का संज्ञान नही के रहा, घपलों का नही पर जो गुजर गई उसका गुणगान 3 दिनों से जारी है
कितने जाहिल, मूर्ख और गंवार लोग मीडिया में है यह समझने की और जरूरत है अभी ?
इन गधों को चौथा खम्बा बोलने के बजाय चौथे दर्जे की समझ वाला बोलना ज्यादा मुनासिब है!
D grade mental retardation ☺️☺️☺️
हो सकता हो बोनी कपूर से भी रुपया खाकर बैठे हो !!!
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चंचल, चुलबुल शोख हसीना और बहुत ही गम्भीर किस्म का अभिनय करने वाली अभिनेत्री श्रीदेवी का मात्र 54 वर्ष की अल्पायु में निधन बड़ी क्षति है। हिम्मतवाला, सदमा,चांदनी से लेकर बड़ी फलक पर उन्होंने बेहतरीन काम किया और ओनी अमिट छाप जनमानस पर छोड़ी।
वे मूल रूप से मध्यमवर्गीय युवाओं की चहेती अभिनेत्री थी जिनमें सुंदरता से लेकर लावण्य, चाह, अभिनय, गोरा रंग, संतुलित कद काठी, दिलकश आवाज और बहुत ही आकर्षक आँखें थी यानी कुल मिलाकर वे एक सुखी स्त्री के रूप में हर स्तर पर भारतीय समाज मे स्वीकार्य आदर्श स्त्री के रूप में मानी गई इसलिए वे बहुत ज्यादा सराही गई और चर्चित हुई।
बोनी कपूर से शादी के बाद कितने ही मिस्टर इंडिया दिल तोड़कर पुनः जमीन पर आए और अपने प्यार के तिलिस्म को जिंदगी के गुमनाम अन्धेरों में रखकर मासूम प्यार को तिलांजलि देकर संघर्ष में लग गए।
अलविदा नौ नौ चूड़ियों की झंकार वाली मेरी चांदनी !!!
श्रद्धांजलि
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