यदि देश की पूरी जनता न्यूनतम राशि बैंक में ना रखने पर दण्ड देने से मना कर दें और अपने खाते ही बंद करवा दें तो इस सरकार की खटिया खड़ी हो जाएगी
रिजर्व बैंक के इस तुगलकी आदेश का विरोध कीजिये और उखाड़ फेंकिए मक्कारों और भ्रष्ट लोगों को ।
बैंक से झगड़िये, बैंक लोकपाल को शिकायत करिये और संगठित होकर अपना प्रतिरोध दर्ज करिये।
नही तो इस बैंक व्यवस्था को उखाड़िये।
जिस इंदिरा गांधी ने हिम्मत कर बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था दुर्भाग्य देखिये कि उसी पद पर बैठकर नरेंद्र मोदी सरकार ने बैंक व्यवस्था को तहस नहस कर दिया।
इससे शर्मनाक क्या होगा कि आम जन से जुड़ी एक संस्था को भ्रष्ट सरकार ने भ्रष्ट बनाकर दीवालिया बना दिया और अपने स्वार्थ के लिए अपने ही लोगों से इस स्थापित व्यवस्था को भंग कर देश की जनता का विश्वास खो दिया।
मूर्खों की बातों में ना आकर अपने हित का सोचिये, ये देश इन नीरव मोदी , अम्बानी , अडानी या मेहुल चौकसे से लेकर भ्रष्ट राजनेताओं और अंध भक्तों का नही हम सबका है। बोलिये वरना ये कल आपको मार डालेंगे और आपकी मृत्यु का बेशर्मी से जश्न मनाएंगे।
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देश की सर्वोच्च से लेकर तहसील स्तर की परीक्षा से उत्तीर्ण होकर आए लोग जब शौचालय सर्वे और देश के सुशासन की स्थानीय इकाइयाँ पूरा ध्यान अपने कस्बे शहर को सिर्फ और सिर्फ स्वच्छ बनाने में लगी हो तो विकास की प्राथमिकता सरकार की क्या है यह समझना रोचक ही नही आवश्यक भी है।
सुबह उठकर प्रधान सेवक की आवाज बांटती गाड़ियों का प्रयोजन प्रशंसनीय है पर सारी प्राथमिकता सिर्फ संडास और कचरे पर आकर टिक जाए तो गंदगी कहां कहां है सोच से लेकर क्रियान्वयन तक मे आसानी से समझा जा सकता है।
मैं विरोधी नही हूँ पर एक नम्बर की होड़ ने जिस तरह से कलेक्टर, निगमायुक्त और पूरी मशीनरी काम कर रही है वह चिंताजनक इसलिए है कि बाकी सारे काम ठप्प है। यह देश कब तक लुभावने नारों, जुमलों और कोरे आश्वासनों पर चलेगा। सातवे वेतन आयोग का मोटा रुपया खाकर हमारे टुकड़ों पर पलने वाले कर्मचारी सिर्फ संडास का काम करें यदि आपको यह समझ नही आता तो आपकी बुद्धि पर तरस आता है। और इस संडास के पीछे की गंदगी में सत्ता पक्ष हम सबको मल में धकेल रहा है।
जाइये जिला कलेक्टर से , निगम आयुक्त से हिम्मत कर पूछिये कि क्या आप इसलिए आये थे कि संडास बनवाओगे इसलिए इतनी पढ़ाई की थी कि इस सरकार के दबाव में आप अपने संविधानिक कर्तव्य भूल जाये ? लिखिए और आवाज उठाइये इस जड़ और जर्जर हो चुकी प्रशासनिक व्यवस्था के खिलाफ।
तय करिये - नौकरी, आजीविका, रोजगार , विकास , सौहाद्र, भाईचारा, समानता, समता, सबका उत्थान या संडास की प्राथमिकता ?
देश हमारा है और चन्द कांग्रेसी या सत्ता पक्ष को तय करना है कि हमारा वर्तमान और भविष्य कैसा हो या हम आप करेंगे यह निर्णय।
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