वो कह रही थी - "मुझे एक साथी मिल गया है और अब मैं पूर्ण हो गयी हूँ - तुम्हें भी कोई मिल जाये ताकि जीवन पूर्ण हो ऐसी कामना करती हूँ", मुबारकबाद तो बनती थी, तो मैंने भी कह दिया रस्मि तौर पर ही सही, पर देर तक सोचता रहा कि पूर्ण होना क्या है - सब कुछ पा लेना, सब कुछ मिल जाना, दैहिक, वायवीय, स्थूल, निर्गुणी और फिर अन्त में कोई भी ऐसी आकांक्षा ना बचे कि जीवन ठहर जाये किसी मुकाम पर
और यह पूर्ण होना क्या है, क्या दो आधे - अधूरे लोग जिनकी सारी ज़िंदगी दौड़ते हुए कटी हो - पद, पैसा, प्रतिष्ठा, भौतिक साधनों को जुगाड़ने में, घर को सजाने और धूल फटकारने में, बर्तनों की श्रृंखला रसोई में जमाने बिगाड़ने में, रिश्ते बनाने और सहेजने में, लगातार बाहर - बाहर और बाहर ध्यान लगाने में - कभी दो पल ठहरकर अपने मन की ना सुनी, कभी देह को परखा नही, कभी अपने आप से मिलें नही, सारी उम्र नेटवर्किंग, जुगाड़ और खोखले सम्बन्धों को बनाने में दिखावा करते रहें आत्मा पर बोझ रखकर तो अब किसी एक के आने से कैसे मिल जायेगी, क्या जीवन धन ऋण है जो दो ऋण मिलकर एक धन बना लेंगे - काश कि इतना सरल सूत्र जीवन में होता तो हम सब लगकर इसे यूँ हल कर लेते चुटकी में और यूरेका यूरेका चिल्लाते - होशो हवास खोकर
मन की ऐषणायें, ऐंद्रिक संजाल और वासनाओं की क्षुधा कभी खत्म हो पाई है - इस लम्बी दौड़ में लगातार अनथक दौड़ने को हम सब तत्पर है और कोई कह दें कि इस सीमा रेखा के बाद इन हसरतों का बेटन किसी और के हाथ में थमाकर पंक्ति से बाहर हो जाना है, तो सम्भवतः मैं भी इस दौड़ का हिस्सा बनने को तैयार रहूँगा और सब गंवाने को भी सहमत हो जाऊँगा - पर क्या यह सचमुच ऐसा है
मुझे नही लगता, बहरहाल यदि कोई आपको पूर्ण कर सकता है तो शायद यह उस ईश्वरीय शक्ति को भी एक खुली चुनौती है जिसने देह के हर हिस्से और हर कोण को अपूर्ण रखा, उस प्रकृति के सामने प्रश्न है जो नित नए - नए रूप में देखती, सँवारती और ढालती है आपके जिस्म और आत्मा के पोर - पोर को कि आप बारम्बार बदलाव कर अपने को हर आने वाले क्षण के लिये बेहतर कर सके, एक ही धरा पर इतनी जटिल परिस्थितियों में जी रहें अलग - अलग मनुष्यों के लिए कैसी - कैसी चुनौतियां है ; कही बर्फ और कही दरकती वसुंधरा, कही जंगल, पानी, पहाड़ और कही रेत के कणों के सिवाय सिर्फ मृगतृष्णा ही है
काश कि सच में कोई आये, मिलें, संलग्न हो ऐसे कि हम पूर्ण हो जाये - बशर्ते पूर्णता खालिस पूर्णता हो और कोई भी शर्त अधूरी ना रहे, एक सूत भी कही कमी पेशी नही
अपनी सभी मानवीय अपूर्णताओं की स्वसंस्तुति करते हुए मैं आप सबके पूर्ण होने की कामना करता हूँ, आपको भरपूर अनुतोष मिलें और जीवन सम्पूर्ण हो
#कुछ_रंग_प्यार_के
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साइरस मिस्त्री की मौत का बेहद अफसोस है, खुदा उन्हें जन्नत अता करें , उनके सद्कार्यों को पूरा देश और दुनिया याद रखेगी, उनके परिवार को ईश्वर शक्ति दें यह दुख सहन करने की
पर ज़मीन पर जो जिंदा बचे हो - भगवान कसम ये सीट बेल्ट वाले संदेशों से बख़्श दें, बन्द करो ज्ञान बाँटना, सालों खानदान में कभी दो पहिया नही रहा और अभी भी 11 नम्बर पर पैदल चलते हो पर जान हलकान कर दी है दो रात में
अबै ओ जुकेरवा, इस ससुरी फेसबुक, तुम्हारे भाट्स अप, इंस्टाग्राम और दुश्मन के ट्वीटर पर भी बेल्ट बंधवा दें तो झोला उठाकर चल दूँगा
हां नई तो, अब और क्या ही कहूँ, ससुरा बैलगाड़ी चलाने वाला भी सीट बेल्ट के मैसेज पेल रियाँ हेगा
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ये दुख काहे कम नही होता
सुधर जाओ बै टाईप वाली पोस्ट है जे
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Prof Purushottam Agrawal in Bhopal 3 & 4 Sept 2022
1975 के दो [ जेएनयू, नईदिल्ली वाले] साथी बरसों बाद जब एक मंच पर भोपाल में मिलें तो प्रफुल्लित, हंसी और मजाक से लेकर गंभीर बातचीत, मुद्दों को लेकर मतभेद पर सहजता और स्नेह का जो दर्शन कल हम सबने देखा और अनुभव किया वह अकल्पनीय था, बेहद भावुक क्षण थे जब दो दोस्तों ने जेएनयू को याद करके गंगा ढाबा और होस्टल के दिनों को स्मृतियों से खोलकर हम सबसे अपनी मधुर स्मृतियाँ साझा की, इस समय में यह सब देखना, महसूसना और अनुभूति से आत्मसात कर पाना कितना रोमांचक था - कह नहीं सकता, विभूति झा किसी सार्वजनिक मंच पर लगभग पंद्रह वर्षों बाद आये और लोगों से अपनी बात कही
अपने वक्तव्य और उदबोधन के दौरान जब पुरुषोत्तम जी ने विभुति दा के बारे में बताना शुरू किया और लगभग तीन घंटे दोनो वरिष्ठ साथियों ने संविधान, समाज और संस्कारों के बारे में अपनी बातें कही, नाजुक समय और हमारी पीढ़ी के साथ - साथ युवाओं से इतिहास पढने का और इतिहास बोध को हमेशा ध्यान रखने के लिए ताकीद दी - वह काबिले तारीफ था, दोनों ने उपस्थित श्रोताओं के प्रश्नों के उत्तर दिए - वह भी प्रशंसनीय था.
सबसे अच्छी बात थी कि दोनों साथियों की याददाश्त और एकदम सही संदर्भों के साथ जवाब देने की शक्ति और वो भी विभिन्न किस्म के प्रश्न और संदर्भों के लिए - क्या आज के समय में इतना बहुपठित कोई है, क्या आज सम-सामयिक मुद्दों पर दबंगता और साफगोई से बात करने वाला हिंदी में नजर आता है - संभवत नहीं - क्योकि सबने अपने - अपने कम्फर्ट ज़ोन सम्हाल लिए है, नौकरी बचा रहें हैं और सच कहने समझने का हौंसला भी खत्म हो गया है, जबकि "साहित्य समाज का दर्पण कहने वाले" अपनी भूमिकाएं भूलकर यहाँ वहां की टुच्ची राजनीति में लगें है
इस अवसर पर सचिन जैन की पुस्तक " संविधान की कहानियां " का भी विमोचन प्रो अग्रवाल जी और विभूति दा ने किया, वरिष्ठ गांधीवादी और विचारक चिन्मय मिश्र जी का अदभुत संचालन भी देखने योग्य था
#विकाससंवाद #VikasSamvad का आभार कि ऐसे विचारोत्तेजक कार्यक्रमों में दो दिग्गजों का व्याख्यान किया और शिक्षा और संविधान के प्रति लोगों को जागरूक किया
1 इतिहास पढ़ते समय यह ध्यान रखा जाना चाहिये कि अपना ओछापन इतिहास के महापुरुषों पर ना छोड़े
2 सफल वही होते है जो पुण्य की राह में पराजित होते है - दिनकर
3 A Leader is always an Enlightener and not the Entertainer
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"यांत्रिक की यात्रा - स्व लक्ष्मण राव किर्लोस्कर जी जीवनी पर आधारित पुस्तक", जो मैंने मराठी से हिंदी में अनुदित और सम्पादित की थी अभी, वह आज Purushottam Agrawal जी को भेंट की, उन्होंने कहा कि यह किताब जरूर पढूंगा - क्योंकि उनका बचपन ग्वालियर में बीता है और 40 % आबादी मराठी बोलने वाली थी पर वे सीख नही पायें, उस जमाने में "किर्लोस्कर" मराठी में पत्रिका आती थी और उसका मोटा दीवाली विशेषांक उनके सभी मराठी बोलने वाले मित्रों के घर आता था, बहरहाल
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