सुनिए भाई साहब और बहनजी,
लाइव होकर ना कविता पढ़ने का मन है और ना हिंदी पर भाषण देने का, दूसरा अपने बच्चों के लिए हिंदी पर भाषण आप ही लिखें - वे आपकी ज़िम्मेदारी या समस्या है - मेरी नही, कृपया यह पाप मेरे मत्थे ना मढ़े - इतनी फुर्सत नही कि आपके बच्चों के अंग्रेजी मीडियम स्कूलों की बदमिज़ाज मेम्स के लिए मैं अपना दिमाग़ खपाऊँ और उनके मेडल्स की ग्यारंटी लूँ
और अंत में प्रार्थना
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दिमाग़ खराब कर रखा है हिंदी के माड़साब लोग्स, गंवार अभिभावक, हिंदी का श्राद्ध करने वाले पुजारियों और कवियों ने कल शाम से
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नरेंद्र मोदी या कोई संघी भाजपाई जो दर्प और अहम में तुष्ट है, नफरत और हिंसा से जिनके दिमाग़ भरे हुए है, रुपये की हवस और देश बेचने के ख्वाब संजोने वाले कभी इतने सहज हो ही नही सकते इसलिये इन्हें आम आदमी के पास जाने में ख़ौफ़ सताता है, ये डरते है लोगों से, उनके प्यार और आपसी सौहार्द्र से, भाईचारे और गैर मजहबी रिश्तों से
भारत तोड़ो जिनका लक्ष्य और एकमात्र सिद्धांत हो वे इन लम्हों, प्यार, सामीप्य, भाव और रिश्तों की कोमल डोरियों को कभी नही समझ पायेंगे - इनकी यात्राएं दँगा फैलाती है और राहुल की स्नेह और स्निग्ध मुस्कान वाली यात्रा प्यार के अंकुर उगाती जा रही है
वोट मिलें या ना मिले पर प्यार जरूर फैल रहा है, एक कहानी याद आती है - "वह आदमी जिसने उम्मीद के बीज बोये"
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नोट - राजनीतिक और घटिया कमेंट करने वाले भक्त किस्म की प्रजाति वाले नफरती चिंटू यहाँ रायता ना फैलाएं
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चिपकूओं से सावधान
Some people are really unplanned, hopeless and brainless and unfortunately they are highly qualified. They keep irritating you, make a big mess and kill your plans
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डूबते सूरज ने पूछा कि आज जो मैंने तुम्हें
दिन दिया
उसका तुमने क्या किया
मेरे सिर का भार कागज़ पर रखता हूँ
तभी दोनो पाँवो से उन्मुक्त चल पाता हूँ
[कोंकणी कविता का एक हिस्सा]
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अभी हैदराबाद से कुछ मित्र आए थे, दोनो पति - पत्नी वहाँ केंद्र सरकार में बड़े अधिकारी है, पति महोदय भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी है और पत्नी जी केंद्र सरकार के महकमे में वरिष्ठ टेक्निकल हैंड है, उन्होंने अपना नाम सार्वजनिक करने को मना किया है
उन्होंने इसका कुछ नाम बताया था - बड़ा सा दक्षिण भारतीय नाम था, परंतु मैं भूल गया - क्या कोई बता सकता है कि यह क्या है, इसका नाम क्या है और क्या यह ऑनलाइन मिल सकती है कहीं से - इसका स्वाद मानो अभी तक मुंह में घुला हुआ है और मजेदार यह है कि इसमें शक्कर नहीं मिलाते हैं पर इसके स्वाद में जो जादू था वह स्वर्गिक था
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"मायमावशी" मराठी रचनाकारों का एक सुलझा हुआ परिपक्व समूह है, अलकनंदा साने ताई ने मेरे द्वारा लिखे जा रहें "तटस्थ" का एक हिस्सा वहां लगाया था जिसे 11 मित्रों ने मराठी में अनुदित किया
एक लम्बा आलेख मैं लिखूँगा ही, पर अभी समूह में लेखक को अंत में अपना मनोगत देना होता है - वह लिखा तो सोचा आपसे भी बाँट लूँ, कई बार हिंदी, अँग्रेजी, गुजराती या मराठी में हम अनुदित करते है तो लोग भौंहें चढ़ाकर एक झटके में खारिज करते है, हरेक का अपना अपना स्टाइल होता है जिसे आप व्याकरणिक त्रुटि कहकर अपना ओछापन दिखाते है या कमजोर समझ या आधी अधूरी शब्दावली के कारण रचना या दस्तावेज़ को अपनी शेखी में निरस्त कर किसी और महाज्ञानी के अहम को बढ़ाने के लिए दे देते है, आपके लिखे को भी खारिज कोई भी निरक्षर कर सकता है यह ध्यान रखना चाहिये, बहरहाल, मनोगत पढ़िये ताकि आप भी समझे कि इसका अर्थ क्या है
यहाँ बड़े - बड़े अनुसर्जक, ज्ञानी और धूर्त बैठे है जो कवि, कहानीकार, उपन्यासकार, आलोचक और भाष्यकार है, प्राध्यापक है, विवि में बड़ी दुकान लेकर बैठे है या मीडिया की रोटी तोड़ रहें है और ये लोग एक झटके में अपने दर्प और थोथे ज्ञान से दूसरों को नीचा दिखाने के लिये ओछी टिप्पणी करते है
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सभी को नमस्कार
ताई ने यानी अलकनंदा साने ताई ने जब एकदिन मेरा लिखा यह नोट भेजा और कहा कि इसे इस समूह में बाँटना चाहती है तो बहुत खुशी हुई
फिर समूह से जुड़ा और ताई के लम्बे चौड़े नियम आ गए, इमोजी पर काबू पाना सीखा पहला तो गत 25 दिनों से समूह की गतिविधियां देख समझ रहा हूँ
अर्चना जी ने इसे शायद 1 सितंबर को लगाया था पर फिर बताया कि 7 को पुनः लगाएंगी
लगभग 11 अनुवाद मराठी में देखकर आनंदित हूँ और सिर्फ इतना कहूँगा कि सबने अपने तई सार्थक कोशिश करके गम्भीरता से अनुदित किया पर जैसा हम जानते है कि एक कविता के कई पाठ होते है और कई प्रकार से समझा जाता है, बल्कि जितनी बार हम पढ़ते है उसके नए अर्थ खुलते है और हर बार हम कुछ सीखते है वैसे ही अनुवाद का भी है, मैं हिंदी अंग्रेजी मराठी में अनुवाद का काम करता हूँ, सीखता हूँ और जानता हूँ कि यह दुरूह और मुश्किल है, हर बार कुछ न कुछ कमी रह जाती है और फिर यह अनुसर्जक किस मानसिक दशा में है या किस तरह से उसने पाठ को आत्मसात किया है इस पर भी निर्भर करता है
सभी अनुदित पाठ संजोकर रख लिए है जो मेरे लिए विपुल सम्पदा है आप सबका आभारी हूँ
बस एक बात कि यह सिर्फ अनुदित होकर रह गया इसमें जो मूल विचार या आध्यात्म का पुट था वह कही छूट गया जिस पर बात होती तो शायद रस आता क्योंकि इस भीषण समय में जब बाहरी आवाज़ों का शोर है तो हम अपने भीतर की आवाज़ को नही सुन पा रहें है
बहरहाल आपका सबका आभार, और अब शायद मैं समूह में परस्पर प्रतिक्रिया देकर विनम्रता से सीखता रहूँगा और सक्रिय हो पाऊँगा
धन्यवाद
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कुछ कविताएँ अनजाने में आपकी बात सुनते हुए आपके दिल में धड़कते हुए आ जाती है और फांस बनकर धँस जाती है और इनसे उबर पाना लम्बे समय के मुश्किल होता है, इसलिये नही कि वो अच्छी कविता है, आपके पसन्द के कवि ने लिखी है, उसके भाव, कथ्य या बिम्ब अनूठे है - बल्कि इसलिये कि वो अपने आपमें एक मुकम्मल कविता है - जो हर बार पढ़ने पर नए अर्थ, द्वंद और मानदंड खोलती है जीवन के और हम बार - बार उसी कविता की ओर लौटते है - पूरी बेचैनी, व्यग्रता और दुस्साहस के साथ और फिर कही एक हल्का सा इशारा मिलता है, गाँठ खुलती है धीरे से और मन उद्धिग्न होता है और लगता है निकलेगा रास्ता देर - सबेर यही से
कल शाम Joshnaa Banerjee की यह कविता पढ़ी, तो सहेज ली थी कि एक कवि कितनी मासूमियत से बड़ा मन रखकर बहुत कुछ सहज ढंग से कह जाता है, बहरहाल, पढ़िये ये कविता
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|| कतिपय सुख के लिए ||
कतिपय सुख के लिए
कभी नहीं दुखाया किसी का हृदय
कंठ ऊँचा कतई नहीं किया
नहीं तरेरी आँखें हरगिज़
वे जो छोटी छोटी चीज़ो के लिए लड़े थे मुझसे
वे लड़ाईयाँ भुला दी है मैंने
बस की सीट घेरने के लिए
जो दो कदम तेज़ भागी थी मुझसे
वो लड़की ठीक से मुझे याद नहीं
जिस छुरी ने मेरी ऊँगली चीरी थी
परवल काटते हुए
उसी छुरी से मुझे कोई शत्रुता नहीं
प्रेमिका के लिए जब उसके प्रेमी ने तोड़ लिया वो पुष्प
जिसे मैं देख रही थी स्नेह से
उद्यान में
तब भी उस प्रेमी से कुछ नहीं कहा
वह पुष्प दिनों तक याद रहा मुझे
दोस्त के किताब ना वापस करने पर
यह सोच कर मौन रही कि उस किताब की आवश्यकता उसे अधिक है
जिन दोस्तों ने मेरी जगह जगह निंदा की
उन्हें विश्वास दिलाया कि उनके हिस्से के तिमिर में
मेरी धवलिमा उन तक अवश्य पहुँचेगी
जिन मछलियों को मैं दाना डाल रही थी
उन्हें एक मछरंगा खा गया
मैंने मछलियों के लिए प्रार्थनाएँ की
मछरंगे को श्राप न दे सकी
सूर्य ने मेरी पीठ कई दफे झुलसा दी
ताप सूर्य का कर्म है सोचकर
अपना कर्म किया
क्षमा कर पाने की भावना मन में उत्पन्न नहीं होने दी
ऐसा करने से पहले लोगों को दोषी मानना पड़ता
जिन कविताओं ने एकांत में सेंध लगाई
उन्हीं को सौंप दिया अपना हृदय
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