विकास संवाद - सोलह बरस की बाली उमर को सलाम
एक संस्था के 16 वर्षों पूर्ण होने का जश्न बहुत महत्वपूर्ण होता है जब आप अपनी शर्तों, सिद्धान्त और बगैर समझौते किये काम करते है - खासकरके तब, जब संस्था दलित, आदिवासियों और वंचितों के साथ आम लोगों के मुद्दे, पोषण, आजीविका, शिक्षा एवं स्वास्थ्य से लेकर बजट विश्लेषण और तमाम तरह के अकादमिक कामों, नीति निर्माण, जनोन्मुखी प्रकाशन, कानून बनवाने और योजनाओं को लागू करवाने में ज़मीनी स्तर पर लगी हो पूरी प्रतिबद्धता और पारदर्शिता के साथ
मीडिया एडवोकेसी से शुरू हुआ काम आज सँविधान के मूल्यों को व्यापक रूप से फैलने - फैलाने का है - बल्कि यूँ कहें कि सारे कामों को संविधानिक और लोकतांत्रिक मूल्यों के फ्रेमवर्क में करने का ठाना है, सँविधान संसाधन केंद्र और रणनीतिक संचार हब के रूप में विकसित होता संस्थान अब किसी परिचय का मोहताज नही है
ठेठ देशी तरीकों को सम्मान देते हुए आधुनिक वैज्ञानिक तौर तरीकों से आज दूर दराज़ के गांवों, प्रदेश, देश और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने वाली संस्था का यह सोलह साला संघर्ष रंग ला रहा है - मप्र के साथ छग, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, उड़ीसा और राजस्थान में नए अवसर और काम की संभावनाएं खुल रही है
आज अपनी पूरी टीम और उनके परिजनों, मनमिलें मित्रों के साथ इस 16 वीं वर्षगांठ पर शामिल होना उपलब्धि ही कहा जा सकता है
रास्ते मुश्किल और मंज़िलें ढेरों है - पर जुझारू टीम का हौंसला और हिम्मत बनी रहें ; नए काम, नवाचार और यश उपलब्धियां अभी और आना बाकी है अंग्रेज कवि 'रॉबर्ट फ्रॉस्ट' कहते है ना -
Miles to go before I sleep......
सबको
बधाई
शुभकामनाएँ , खूब प्यार और अशेष दुआएँ***
Candida - GB Shaw
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यह नाटक बुरी तरह से याद आ रहा है 1986 से इसे दर्जनों बार पढ़ चुका हूँ पर वह युवा पादरी - Eugene Marchbanks याद आता है, उसकी मनोदशा, उसके और कैन्डिडा के पति James Mavor Morell के बीच कैन्डिडा के लिए नीलामी होती है और यूजी अगले दिन का इंतज़ार किये बिना ही रात के अँधियारे में घर छोड़कर चले जाता है, इस तरह से उसके जाने की दुर्दशा याद आती है, लगता है कितने बड़े उहापोह और संघर्ष से गुजरा होगा वह - यह निर्णय लेने से पहले, कितना कड़ा मन किया होगा और कितनी बार मरा होगा वह घर छोड़ने के पहले
कैन्डिडा की दोनो के बीच नीलामी में निश्चित ही यूजी अप्रत्यक्ष रूप से जीत जाता है, पर कैन्डिडा पति का साथ देती है क्योंकि वह कमज़ोर है - यह नाटक का अंत नही बल्कि एक शुरुवात है
मेरा यह मानना है कि हर जीत, जीत नही होती - बल्कि कई बार बड़ी हार ही जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि होती है या यूँ कहें कि ताकतवर आदमी को जीतने - हारने के बीच परिणाम के पहले लड़ाई छोड़ देना चाहिये [ a strong person must quit before s/he wins ]
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तेरी मेरी इसकी उसकी
सबकी बात
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बिखरा पड़ा है तेरे ही घर में तेरा वजूद
बेकार महफ़िलों में तुझे ढूँढता हूँ मैं
मैं ख़ुदकशी के जुर्म का करता हूँ ऐतराफ़
अपने बदन की क़ब्र में कब से गड़ा हूँ मैं
किस-किसका नाम लाऊँ ज़बाँ पर कि तेरे साथ
हर रोज़ एक शख़्स नया देखता हूँ मैं
ना जाने किस अदा से लिया तूने मेरा नाम
दुनिया समझ रही है के सब कुछ तेरा हूँ मैं
ले मेरे तजुर्बों से सबक ऐ मेरे रक़ीब
दो चार साल उम्र में तुझसे बड़ा हूँ मैं
जागा हुआ ज़मीर वो आईना है "क़तील"
सोने से पहले रोज़ जिसे देखता हूँ मैं
◆ क़तील शिफ़ाई
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सीधे आयएएस बनने वाला अफसर जब अपने कमरे में सीधी भर्ती वाले आयएएस अफसर मित्र के साथ चाय, कॉफी पीता है और जब कोई समकक्ष प्रमोटी आयएएस कमरे में आ जाता है तो चाय का पूछना तो दूर बैठने का भी नही पूछता और उस प्रमोटी को दोनो मिलकर ऐसे घूरते है और प्रश्न पूछते है जैसे यूपीएससी के बोर्ड में बैठकर वे नार्थ ईस्ट के किसी आदिवासी एस्पिरेन्ट का इंटरव्यू कर रहें हो जिसकी अँग्रेजी में नानी मरती हो और जे विदेश पलट हो मल्लब फॉरेन रिटर्न शिक्षित - दीक्षित
एक ही जीवन के बड़े कष्ट है बाबू
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सीधे आयएएस बनने वाला अफसर जब अपने कमरे में सीधी भर्ती वाले आयएएस अफसर मित्र से बात करता है तो अँग्रेजी में करता है और जब कोई समकक्ष प्रमोटी आयएएस कमरे में आ जाता है तो राष्ट्र भाषा हिंदी का उद्धार होता है
एक ही जीवन के बड़े कष्ट है बाबू
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जब आदमी नायब तहसीलदार से एसडीएम बनता है तो अकड़ता है और एसडीएम से प्रमोटी आयएएस बनता है तो दोस्तियाँ बढ़ाता है और दो साल राजधानी में यहाँ - वहाँ घिसकर जब जुगाड़ - तुगाड से कही दो चार साल के लिये जिले में कलेक्ट्री पा लेता है तो लक्ष्य बनाता है कि बेटियों का ब्याह कर दें, बच्चों को विदेश भेज दे या छोटे - मोटे उद्योग खोल दें और इस सबमें दोस्त और साहित्य, संगीत, कला को भूलना ही पड़ता है - ये हानिकारक होते है कलेक्ट्री में, फिर कलेक्ट्री से ही रिटायर्ड होकर सिर्फ कहानी सुनाने लायक या कविता लिखने लायक ही बचता है
इसके ठीक विपरीत सीधे आयएएस बनने वाला अफसर जीवन भर सबका दुश्मन रहता है - घर में बीबी, बच्चों से लेकर ससुराल, रिश्तेदार और बाहर सीनियर से लेकर दोस्तों का - पर वो बेफिक्र होकर मजे में रहता है, इनके बच्चे पैदा होने के पहले ही जुगाड़ू होते है - वे जीवन मे कुछ भी पा ही लेते है, यह अफसर रिटायर्ड होकर सलाहकार बनता है या किसी बड़ी फर्म का डायरेक्टर - फिर वो साहित्य, संस्कृति की हो या महुआ की गुठली से तेल निकालने की, हां उसका कवि और नेटवकिंग मरता नही कभी
एक ही जीवन के बड़े कष्ट है बाबू
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आज सुबह से 6 युवा मित्रों यानी 28 से 42 तक की उम्र वालों की मौत की खबर सुन चुका हूँ
संयोग है या दुर्योग कि सभी अचानक हुए गम्भीर हार्ट फेल से खत्म हो गए
सभी के परिजनों ने कहा कि कोरोना टीके का बूस्टर लगवाया था अभी अगस्त में ही, भले चंगे थे और खत्म
छठवीं मौत की खबर अभी हेमंत पोळ ने दी उसके साथ होलकर कॉलेज में पढ़े विनोद पाराशर की थी, हैदराबाद में विनोद भी अचानक चल बसा
पर कही कोई स्पष्टीकरण, आवाज़, मीडिया में या कही कोई प्रश्न है
पर सवाल तो है
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हर खास और आम को सहर्ष सूचित किया जाता है कि सिंधु घाटी, बेबीलोन, मेसीपोटामिया और ना जाने कहाँ - कहाँ से यात्रा करके भारतीय मूल का यह सनातन, शाश्वत और चिर युवा - "सोन पापड़ी" डिब्बा मुझ तक आज पुनः आ पहुँचा है , जिस किसी सज्जन या दुर्जन का हो, कृपया सबूत बताकर ले जाये
असल में हैदराबाद में अभी एक ट्रेनिंग देने दो दिन के लिए आया हूँ तो एक भक्त उर्फ शोधार्थी ने मेरे श्रीचरणों मे रख दिया और खिसक लिया, शायद राखी पर किसी बहन ने उसे भेजा हो पर वह मेरे को समर्पित कर गया, कवि कुलगुरु परम्परा का होगा - जब विवि के सभी प्राध्यापकों और तदर्थ माड़साब लोग्स ने भी दुत्कार दिया होगा उसे तो पटक गया मेरे चरणों पर वंदना करके कि मेरे निदेशक को जरा हिंदी में समझा दीजिये कि जल्दी निपटा दें, पर बंदे में मेरे श्रीमुख को देखने और लपलपाती आँखों का सामना करने की उसकी हिम्मत ना थी, आधा किलो वजन बढ़ रहा है, उपयुक्त अनुसरणकर्ता की तलाश है जिसके माथे मढ़कर मैं पापमुक्त हो सकूँ
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