देश की आजादी में शरीक होने का श्रेय कांग्रेस हमेशा से लेती रही है और जाहिर है देश की सबसे बड़ी पार्टी थी जिसने लम्बे समय तक देश पर राज किया. इंदिरा गांधी भी आपातकाल में सत्ता हारने के बाद तीन सालों में फिर से पुरी ताकत के साथ खडी हुई और फिर से सत्ता पर काबीज हुई परन्तु पिछले दस बरसों में जिस तरह से इस पार्टी के सितारे गर्दिश में गए है वह शोचनीय है. डा मन मोहन सिंह ने कठपुतली प्रधानमंत्री का रोल बखूबी निभाया यह हम सब जानते है, वे पार्टी की छबि सुधारने के लिए कुछ कर भी नहीं सकते थे. जागरुक होती देश की जनता ने धीरे धीरे कांग्रेस को हाशिये पर धकेलना शुरू किया. भ्रष्टाचार का मुद्दा और अन्ना का आन्दोलन इस दिशा में एक मील का पत्थर साबित हुआ था और फिर जो कांग्रेस की गाड़ी बिगड़ी है वह पटरी पर नहीं आ पाई. सोनिया और राहुल की व्यक्तिगत मिल्कियत बनी पार्टी में प्रणव मुखर्जी, अर्जुन सिंह, शरद पवार से लेकर चिदंबरम जैसे नेता थे और आज भी है परन्तु वंशवाद की परम्परा और लगातार लचीले होते अकुशल नेतृत्व के कारण कांग्रेस की दशा आज यह हो गयी है कि एक समय में सहोदर रहे सारे दल भी छिटक कर दूर हो गए है. कई राज्यों के चुनाव हारने के साथ देश के इतिहास में पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस मात्र 44 सीटें लेकर आई है, ताजा चुनावों में तीसरे नंबर के दल के रूप में उभरी है यह कितना दुखद और हास्यास्पद है कि अब कांग्रेस विपक्ष की भूमिका निभाने लायक भी नहीं बची है. दरअसल व्यक्तिगत महत्वकांक्षाएं जब हावी होती है तो किसी भी तरह से किसी का भला नहीं होता, यह समय कांग्रेस के लिए दुखदायी समय है और गहरी मंत्रणा का भी, जब पार्टी के अन्दर से भी अब आवाजें तेज होने लगी है, गाहे-बगाहे पार्टी के लोग पार्टी नेतृत्व और नीयत पर सवाल करने लगे है और शायद यही सही समय भी है जब इस पार्टी के लोगों को और नेतृत्व को आने वाले दस बरसों तक खामोश रहकर अपनी ताकत जमीनी मुद्दों को लेकर साफ़ करनी होगी, एक या दो मुद्दे उठाकर अपनी रणनीति और समझ साफ़ करना होगी, और इस बात की कोशिश करना होगी कि आखिर पार्टी देश में क्या चाहती है, या शल्क देश को देना चाहती है, और भारतीय समाज जो लगातार विघटन की ओर अग्रसर है, बाजार और पूंजी के आतंक से ग्रस्त है उसके लिए क्या नीति है? भारतीय मतदाता जागरुक, चाक चौबंद और समझदार हो गया है, अब वाड्रा जैसे मुद्दे भी सोशल मीडिया के कारण सामने आने लगे है इसलिए अपनी भूमिका और देश के लिए कार्यक्रमों की पुख्ता समझ के साथ कांग्रेस को आना होगा. इस हेतु यदि कांग्रेस को लगता है कि सहयोगी दलों के साथ बिना स्वयं अपने पैरों पर वह दम भर सकती है तो बेशक ऐसे सभी प्रयास करना चाहिए जो पार्टी हित में हो, ना कि गांधी परिवार के हित में. लोगों का विश्वास गांधी परिवार से उठा है इस बात को समझ कर किसी नए आदमी को नेतृत्व देने की दरकार है तभी एक पार्टी, एक विचारधारा और एक विरासत बच सकेगी.
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत
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