समाज को नशे से हटाकर रचनात्मकता की ओर बढाने की जरुरत
कल प्रधानमंत्री जी ने नशे के बारे में अपनी चिंता जाहिर की है, यह शायद पहला मौका है जब भारत के प्रधानमंत्री को नशे जैसी लत के बारे में सरोकार रखते हुए राष्ट्र को संबोधित करना पड़ रहा है, आज हमारी पीढी प्रोडक्टिव और सृजनशील ना होकर एक नशीली पीढी बन रही है, जो किसी भी राष्ट्र और समाज के लिए चिंता की बात है. निश्चित ही नशा एक भयानक बीमारी बनकर समाज के हर हिस्से में अपनी घुसपैठ बना चुका है. मप्र में अपने काम के दौरान मैंने छोटे बच्चो से लेकर बड़े - बूढों को इस प्रवृत्ति में लिप्त पाया है, गुटखा, तम्बाखू और बीड़ी -सिगरेट ही नहीं वरन भयानक किस्म का जहरीला नशा जिसका अंत सिवाय मौत के कुछ नहीं हो सकता फैला हुआ है शहरों से लेकर दूर दराज के गाँवों में. छोटे बच्चे जो प्लेटफोर्म पर रहते है, शहरों और गाँवों में कचरा बीनते है भी इससे अछूते नहीं है, आयोडेक्स से लेकर सूंघने के अनेक प्रकार के नशे वाले विकल्प उनके पास मौजूद है, बड़े लोग शराब से लेकर सुई से नशीली दवाओं का सेवन कर रहे है, जो वे व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से कर रहे है, उससे एड्स जैसी बीमारियाँ फ़ैल रही है, महिलाओं में भी यह प्रवृत्ति बढ़ी है इससे इनकार नहीं किया जा सकता- शहरों में आये दिन होने वाली पार्टियां और नाईट आउट्स में युवा लड़कियों और संभ्रांत घरों की महिलाओं द्वारा नशा करना इसका गवाह है. दरअसल इसके कारणों में जाए तो हम पाएंगे कि अकेलापन, कुंठा, प्रतिस्पर्धा, और बढ़ती जिन्दगी में तनावों ने हरेक को परिवार या समूह में रहते हुए भी एकाकी जीवन जीने को मजबूर कर दिया है, सामाजिक ताने बाने में मेल जोल की प्रक्रियाएं समाप्त हो गयी है, और रूपया कमाने की हवस ने आदमी को एक ऐसे मकाम पर लाकर खडा कर दिया है कि वह सिवाय मशीनीकृत जीवन के कुछ कर नहीं पा रहा और ऐसे में उसे विकल्प की जरुरत पड़ती है जो नशे के रूप में बहुत ही सुलभ है. मेट्रो शहरों में पांच दिवसीय काम के हफ्ते के बाद जिस तादाद में वीक एंड पर क्लबों में युवा नशे में धुत्त पड़े रहते है और जिन्दगी एन्जॉय करते है वह कितना शोचनीय है. चंद रुपयों से शुरू होने वाला यह विकल्प अंततः उसकी जान ले लेता है. कैंसर, एड्स और फेफड़े की बीमारियाँ जिस तादाद में बड़ी है खासकरके युवाओं में और हार्ट अटैक के केस युवाओं में जिस मात्रा में सामने आये है वह दर्शाता है कि हम एक बीमार समाज में रह रहे है. अगर ऐसे ही हालात रहे तो दुनिया का सबसे ज्यादा युवा संख्या वाला देश नशे की गिरफ्त में आ जाएगा, और हमारा जग सिरमोर बनने का स्वप्न अधूरा रह जाएगा. जरुरी है कि परिवारों में मेलजोल, सामाजिक मनोरंजन और सामंजस्य बढाया जाए, आपस में बातचीत और चर्चाओं को स्वस्थ माहौल मिले और अच्छी पुस्तकें पढने को अवसर मिलें, परामर्शदात्री सेवाएँ बढ़ाई जाए, एनजीओ, सामाजिक संगठन, मीडिया और अन्य संस्थाएं बातचीत के अवसर पैदा करें, ताकि समाज के सभी वर्ग नशे से अपना ध्यान हटाकर रचनात्मक जीवन जीने की ओर अग्रसर हो.
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