Skip to main content

प्रिया के जायज सवाल और भारत स्वच्छता अभियान





ये है प्रिया आठ साल की है और साथ है उनकी छोटी बहन जिसका अभी कोई तयशुदा नाम नहीं है। ये दोनों बहने रोज़ सुबह तीन बजे कचरा बीनने निकलती है "स्कूल कब जाएँ" यह सवाल प्रिया ने मुझसे पूछा। रोज़ दो सौ से तीन सौ रूपये कमा लेती है जिससे घर चलता है। माँ घरों में काम करती है और वो भी सात आठ सौ कमा लेती है।
प्रिया , नरेला क्षेत्र, छोला रोड ,भोपाल की उड़िया बस्ती में रहती है - जो उड़ीसा के विस्थापितों की बस्ती है। गैस त्रासदी में प्रिया के पिता बीमार हो गए थे और उनके पाँव खराब हो गए तब से वो कुछ कर नहीं पाते। बस्ती में सतीनाथ षडंगी ने अपने संभावना ट्रस्ट से डोमिनिक लापियर के सहयोग से एक गैर मान्यता प्राप्त स्कूल भी खोला है जहां आज 58 बच्चे पढ़ते है यह विद्यालय निशुल्क है परंतु प्रिया और उसकी बहन पढ़ नहीं पा रही। शिक्षा का अधिकार पर काम करने वालों के लिए प्रिया और उसकी बहन एक चुनोती है।
हाल ही में यहां कैम्प संस्था ने काम शुरू किया है जो महिलाओं बच्चों और किशोर वय की लड़कियों की सुरक्षा के लिए नगर निगम के साथ मिलकर काम करती है।
स्वच्छ भारत अभियान में बड़े लोग तो खूब हाई लाईट हो रहे है पर हमारी बच्चियां और महिलाये जो पुरे शहर का कचरा बीनती है और सफाई में महत्वपूर्ण काम करती है , उनका कही जिक्र नहीं है। इनकी ओर ध्यान देने की जरुरत है। ये बच्चे हमारी धरोहर है और इनका भी बचपन है आप और हमारी तरह इन्हें भी बड़े होने पर बचपन की सुखद और मधुर स्मृतियाँ चाहिए और अगर हम , हमारा देश और संविधान इसकी ग्यारंटी नहीं दे सकता तो देश संविधान से बढ़कर मैं प्रिया के हौंसले को झुककर सलाम करता हूँ जो बगैर डरे रोज़ भोर में उठकर कमाने निकल जाती है। आज प्रिया ने मुझे कई बातें सिखाई है और एक नया नजरिया दिया है।
उम्मीद की जाना चाहिए कि प्रिया जैसे बच्चों के जीवन में एक सुहानी सुबह जरूर आएगी।


Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी वह तुमने बहुत ही