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मै गवाह रहना चाहता हूँ - एक काले दिवस 16 दिसंबर पर दर्द के साथ





मै गवाह रहना चाहता हूँ 
बच्चों की जिद, हंसी और लड़कपन में 
इससे पहले की ख़त्म हो जाए खुशी 
इससे पहले ख़त्म हो जाए आवाजें
मै सब कुछ अपनी इन्ही आंखो से 
देखना चाहता हूँ अपने जीते जी


टीवी पर दृश्य भयावह है, कोई कैसे इतना हरामी हो सकता है.


जिस धर्म और मजहब के अनुयायी बच्चों के खून से जन्नत का रास्ता खोज कर अमन की दुनिया को आतंक का पर्याय बना देने पर आमादा है , उसे मैं कोसता हूँ!। इन लोगों का कोइ धर्म नहीं होता इन्हें सिर्फ हैवानियत से ही ठीक किया जा सकता है। बच्चों के लिए काम करने वाले हम सब लोग इसकी निंदा करते है और ऐसे जुनूनी और मजहबी लोगों पर सौ-सौ लानतें भेजते है। शर्म करो, डूब मरो और ऐसे लोग जो इनसे सहानुभूति रखते है उन्हें मैं मानवता से बेदखल करता हूँ
दुखी हूँ द्रवित हूँ उन अभिभावकों के लिए जिन्होंने आज इस्लामिक तालिबान के हाथों अपने शहजादे - शहजादियाँ खोये है ।
ॐ शान्ति !!!

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