जितना पिछली बरसात में नहीं भीगा, उतना भोपाल से आते में आज भीग गया।
शायद अब ठंडक पडी है पुरे साल को कोसता रहा कि सबसे खराब साल था जीवन का, सो आज बरसात ने सारा गुस्सा शांत कर दिया है!!!!!
बरसात, बादल , काली घटाएं , दूर किसी कोने में हल्की सी लालिमा, खेतों में चने के हरे कच्चे झूमते पौधे और गेंहूँ की दूब लगभग आपस में बतियाती सी और मिट्टी की सौंधी सी खुशबू जो बिखरती फिजां में खो जाने को बेताब है और ऐसे में तुम्हे याद ना करूँ तो जीने के मायने ही नहीं है!!!
फिर पूछता हूँ .... तुम्हारे लिए .... यह जीवन और सारा प्रपंच है.....सुन रहे हो ना....कहाँ हो तुम....?????
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