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Posts of May Last week 2019

यह तस्वीर राजनैतिक नही बल्कि करुणा, संग, साथ और अंतिम समय तक साथ देने की है - जेंडर की भारतीय धारणाओं को तोड़ती हुई एवं पीड़ा, संत्रास और अवसाद की
इस तरह की तस्वीरें आश्वस्त करती है और स्मृति ईरानी को बधाई देता हूँ कि उन्होंने यह पहल की और एक नये अंदाज़ में अपना रुख पेश किया
मैं इसे राजनैतिक ना मानकर एक सांसद का अपने क्षेत्र के लोगों से कैसा रिश्ता होना चाहिये - यह भी दर्शाया है
इस तरह की द्वैषपूर्ण हत्याओं पर कड़ी रोक लगना चाहिये
Image may contain: 6 people, including शंकरानंद, people standing and outdoor

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शहर भर की नालियाँ और मैला साफ़ करने वाले आदमी को देख दार्शनिक महोदय ठहर गए।
"बहुत कठिन काम है तुम्हारा ! यूँ गंदगी साफ़ करना... कितना मुश्किल होता होगा ! दुःख है मुझे ! मेरी सहानुभूति स्वीकारो।" दार्शनिक ने सहानुभूति जताते हुए कहा।
"शुक्रिया हुज़ूर !" मेहतर ने जवाब दिया।
"वैसे आप क्या करते हैं ?" उसने दार्शनिक से पूछा।
" मैं? मैं लोगों के मस्तिष्क पढ़ता हूँ ! उन के कृत्यों को देखता हूँ ! उन की इच्छाओं को देखता हूँ ! विचार करता हूँ ! " दार्शनिक के जवाब में एक तरह की इतराहट थी।
"ओह ! मेरी सहानुभूति स्वीकारें, जनाब !" मेहतर का जवाब आया।
[ ख़लील जिब्रान की 'सैंड एंड फ़ोम' से ]
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मोदी जी को एक बार पुनः बधाई
आज आपने जो ऐतिहासिक भाषण दिया है वह कमाल का है और सच में तारीफ़ करना पड़ेगी
आपने जो विकास साथ और विश्वास की बात की है वह काबिले तारीफ़ है
बस दृढ़ रहिएगा अपनी बातों पर , रमजान के पाक माह में आपने जो आश्वस्त किया है पूरे देश को - खासकरके दलित, वंचित, आदिवासियों, अल्पसंख्यक और गरीबों को वह आपके जमीनी कार्यकर्ता भी समझें, आपकी भावना और इरादों को अमली जामा पहनाए तो बात बनेगी ही नही सुधरेगी, मातृशक्ति को आपने सशक्त करने की जो बात की है वह भी उम्मीद जगाती है कि अब आधी आबादी मनुष्य होंगी बजाय देवी के
ख़ैर , आपका आज का भाषण बहुत ही सुलझा और विजन के साथ था, नए मित्रों को मीडिया और दिल्ली के ठगों से दूर रहने के जो नुस्ख़े अनुभव आधारित दिए है वे कारगर हो - आमीन
यह वादा है कि टांग खींचने के बजाय सकारात्मक फीडबैक दूँगा और निंदा के बजाय वस्तुस्थिति को समझकर ही कमेंट करूँगा
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कार्ल मार्क्स की एक बात हमेंशा याद रहती है -
"आदमी जो बोलता है उस पर शक करो "

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सूरत की घटना के बाद हम लोग अपने जिले के कलेक्टर साहब को अनुरोध कर, मीडिया के साथियों से कहकर आज से शहर भर की कोचिंग संस्थान और स्कूलों में जांच शुरू कर सकते है इन बिन्दुओं पर कम से कम ताकि हमारे बच्चे सुरक्षित रहें
◆ पीने का पानी
◆ आग बुझाने के साधन
◆ फर्नीचर की गुणवत्ता
◆ क्रास वेंटिलेशन हवा के लिए 
◆ फर्स्ट एड
◆ शौचालय लड़के लड़कियों के 
◆ कोचिंग में आने जाने की स्थिति

अभी ताज़ा मामला है कोई मना नही करेगा , ध्यान रहें बहुत भयानक परिणाम निकलेंगें , बस पूर्वाग्रह और दुराग्रह ना हो, व्यवसायिक हित बीच मे ना आये मीडिया के
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15 वर्ष ये रहें मुख्यमंत्री, फिर आनंदी बेन उसके बाद दो तीन लल्लू पंजू, पर ना सूरत में चार मंजिल चढ़ने लायक फायर ब्रिग्रेड के पास सीढ़ी आई और ना बाढ़ के पानी के निकास की व्यवस्था हुई और हैजे की हैदस में शहर हमेंशा जिंदा रहा- स्मार्ट सीटी बना रहे थे - अपनी ही औलादों को निगल गए
कपड़ों से लेकर हीरे के व्यापारी मेहनत कर कमाते रहें , टैक्स भरते रहें पर सरकार को कोई फर्क नही पड़ा, इन्हें तो गुजरात मॉडल फैलाना था, संजीव भट को ठिकाने लगाने का था
लीजिये आपके 20 वोटर्स मर गए आपकी स्मार्टनेस में - अब 2024 में क्या होगा - कुछ नही होगा जी - गुरुजी की, दीनदयाल जी की मूर्ति लगवाएंगे, अच्छी बात यह है कि मूर्तियों में आग नही लगती और फायर ब्रिग्रेड की भी जरूरत नही पड़ती
20 वोट का नुकसान - कैसे सहेगा हिंदुस्तान
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दुनिया भर के उन कबीर पंथियों के नाम जो देवास में आकर कबीर का जनाज़ा निकालने में पारंगत हो गए और कबीर बेचने के सिद्ध हस्त खिलाड़ी इसमें ठेठ गांव से लेकर अमेरिका और दिल्ली, मुंबई ,लखनऊ, बेंगलोर और नाशिक इंदौर सब शामिल है
देवास में कबीर गायक टिपानिया जी के प्रचार में कोई तुर्रे खां दिखे नही - ना देशी ना विदेशी ना कैफ़े वाले ना बुद्धिजीवी टाईप के कबीर बेचूँ
कोई भी कबीर गायक, वादक, प्रचारक और दास्तान गोई वाला दिखा नही डेढ़ माह तक, पर विश्लेषण करने तो बहुत दिखेंगे , अफसोस कबीर यात्राएँ जो 5 - 6 सालों में निकलती रही उसका कुल जमा हश्र शून्य ही रहा , थोड़ा कड़वा लगेगा पर सच यह है कि प्रह्लाद जी का साथ देने कोई धाकड़ या तथाकथित लोग दिखें नही मैदान में - दो चार आसपास के लोग ही थे जो बीच बीच मे आते जाते रहें और उनके भी मकसद क्या थे सब स्पष्ट है
हम सब समझ गये हम लोग कि रुपया , प्रचार , भीड़ और मंच के बिना कोई कुछ जानता नही, काहे को हम पक्का गाने वालों, बन्द कमरों की महफिलों में गाने बजाने वालों को गाली देते है, सब रुपये के पुजारी और भयानक तरीके से कबीर बेचने में लगे है - जैसी करनी वैसी भरनी
इसलिए मालवा में कबीर नही हारा, कबीर का वो रूप हारा जिसने बरसों पहले यहां के लोक के कबीर को सीखकर, आत्मसात कर एवं शास्त्रीयता में गूंथकर बाज़ार में क्लासिक बनाकर बेचना शुरू किया था, यश - कीर्ती और धन कमाने को कबीर जैसे कवि को माध्यम बनाया और उसकी देखा देखी आज जिनके पास गला नही , झांझ बजाना नही आता - वो पंद्रह हजार रुपये माँगता है तीन घँटे का और बाकी खर्च अलग
यह कबीर की हार नही, बाज़ार में खड़े कर दिए गए कबीर की हार है जो विनम्रता से बात करना भी भूल गए है इसलिए शहरी क्षेत्र में लोगों ने कहा कि जो लोग भजन गाने के लाखों मांगते है उन्हें क्या , उनसे कोई प्रतिबद्धता की उम्मीद नही ऊपर से अपने भद्र समाज में जातिगत विश्लेषण और गालियां तो सदैव सिरमौर रही ही है
[ नोट - उजबक किस्म के अंग्रेज़ी, हिंदी, उर्दू के मक़्कार मास्टर, समाजसेवी, एनजीओ कर्मी और मीडिया के दलाल - जिनकी समझ नही और कबीर से वास्ता नही और इस पोस्ट का सन्दर्भ नही मालूम - वो अपना दिमाग यहां लगाकर कुंठित ना हो , ना ही आड़ा - टेढ़ा व्यंग्यात्मक लिखें, आप लोग अपनी मास्टरी और काम कर लें वही देश - दुनिया पर उपकार होगा ]
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और भी गम है ज़माने में 
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अपने बच्चे की कोचिंग या स्कूल गए है कभी, उसके ट्यूशन वाले मास्टर, भैया , दीदी के घर गए है कभी जहां वो आपके मन्नत से पाये हुए बेटे बेटी को पढ़ाते है
सूरत में 19 से ज़्यादा किशोर जो 15 से 17 वर्ष तक थे यानी 20 से कम उम्र के थे, एक कोचिंग सेंटर में लगी आग से आगजनी में मारे गए
कौन जिम्मेदारी लेगा इन 19 किशोर बच्चों की हत्या की - क्या सुप्रीम कोर्ट या गुजरात हाई कोर्ट या राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग स्वतः संज्ञान लेगा इस घटना और राज्यों को निर्देश देगा कि राज्य के जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारी कुछ पहल करेंगें अपने जिलों, कस्बों में और कोचिंग संचालकों की गुंडागर्दी पर अंकुश लगायेंगे
सरकार ने एक किशोर की कीमत चार लाख रुपये आंकी है , 20 साल के बच्चे को पढ़ाने लिखाने, भोजन कपड़ा पानी और अन्य छुटपुट खर्च चार लाख में हो जाएंगे - मतलब क्षतिपूर्ति सरकार की लापरवाही के बदले देंगे ना चार चार लाख और क्या मरें बेचारी सरकार
कोई ध्यान देने वाला नही है, देवास में एबी रोड़ से लेकर शहर भर की गलियों में लाखों बच्चे असुरक्षित है - कोचिंग के अंदर भी और बाहर निकलते ही सड़क पर भी
ना माँ बाप को चिंता है ना संचालकों को , इसके अलावा स्कूल भी इससे अछूते नही है , आग बुझाने के ना साधन है ना कोई जांचने वाला
मूर्ख माँ बाप है जो भीड़, लुभावने विज्ञापन, आई आई टी और मेडिकल के लिए अपने भविष्य को इन नालायक हरामखोर संचालकों के हवाले कर देते है वो भी तीन से दस लाख देकर, संचालक प्रशासन को रिश्वत देकर धँधा चला रहे है
इन कोचिंग में पीने के पानी से लेकर पेशाब करने की सुविधाएं नही है और आप उम्मीद कर रहें है कि आग बुझाने के यंत्र चालू हालत में होंगे, अरे जनाब सिर्फ मालिक के कमरे का फर्नीचर और चमक दमक मत देखिये आप, एक बार अंधेरे क्लासरूम देखिये, फर्नीचर देखिये शौचालय देखिये, क्रॉस वेंटिलेशन देखिये आपके बच्चे को वहां पढ़ना है - घास नही काटनी है
आपको यह समझ है या नही - क्योकि बाकी हित तो आपको बहुत समझते है - देश के, जाति और सम्प्रदाय के, पर यहां आकर आप गंवार हो जाते है - एकदम मूर्ख और जाहिलों की तरह - डूब मरिये, यदि आप यह सब नही देखते और अपने बच्चों को ऐसे नालायकों के यहां भेज रहें है तो
आजकल सबका बस एक ही ध्येय वाक्य है
बाप बड़ा ना भैया - सबसे बड़ा रुपइया
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बंदगी हम ने छोड़ दी है 'फ़राज़' 
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ

-अहमद फ़राज़

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बधाई अमित शाह, नरेंद्र मोदी और भाजपाईयों
चुनाव कोई आज पहली बार नही हुए और कभी फिर ना होंगे ऐसा भी नही , हारना - जीतना खेल का हिस्सा है और अल्पमत में होने का अर्थ मेरा तुम लोगों की कार्पोरेटी आस्था, फासिज़्म और विश्वास से सहमत होना नही है
मेरा वोट हमेशा सत्ता के ख़िलाफ़ रहेगा चाहे कोई भी हो फिर, उन लोगों के ख़िलाफ़ रहेगा जो गांधी के 150 बरस का जश्न तो मनाने की घोषणा तो करते है पर "गांधीवध" को सही ठहराकर, नाटक कर मान्यता देते है
लोकतंत्र की खूबसूरती ही यही है कि आप अपना मत भिन्न रख सकते है, और यह जरूरी भी नही कि सब लोगों से - सब बातों पर सहमत हुआ जाएं, मर्यादा और सीमाएं अपने लिए मैं तय करूँगा - क्योकि मैं सही या गलत समझने के लिए सक्षम हूँ और अपनी दृष्टि और विवेक से सच को जानता ही नही, बल्कि कहने का भी साहस रखता हूँ
आप लोगों का भाषण दिखा रहा है और तय कर रहा है आगामी 5 वर्षों की दिशा और दशा
आज बस इतना ही, पर एक लेखक और प्रज्ञावान व्यक्ति होने के नाते विवेक सम्मत ढँग से लिखता पढ़ता रहूँगा
बस अपने सुकून के लिए कुछ लोगों को विदा करूँगा जो इन 40 - 50 दिनों में जो पूरी तरह से नंगे हुए है , जिनकी असली औकात सामने आई है, जो सांप और लोमड़ियां सामने उजागर हुए है - वो मेरी सूची में नही रहेंगें - उन सबको शुभकामनाएं
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मतदान केंद्र पर महिलाएं थी पीठासीन से लेकर महिला कांस्टेबल तक
मेरे सामने सेक्टर अधिकारी आई दो - महिलाएं थी , उनके साथ दौड़ने वाली दो महिलाएं , एक मॉडल स्कूल में गया एक अपनी रिश्तेदार को खाना देने तो वहां भी वह पीठासीन थी और पूरी टीम महिलाओं की , वहां 3 बूथ थे महिलाएं ही थीं
शहर भर में महिला पुलिस अधिकारी, प्रेक्षक महिलाएं, घर से छोटे भाई की पत्नी ठेठ आदिवासी गांव उदयनगर के पास कल से गई है उसके साथ भी दो महिलाएं है, कल सुबह केवी देवास में कुछ परिचितों को चुनाव सामग्री लेने जाना था वहां भी महिलाएं थी बहुतायत में
कुल मिलाकर अनुशासन, शांति और बेहद व्यवस्थित तरीके से सब कुछ चल रहा है , कही कोई अभद्रता या कुप्रबंधन नही
पढ़ाई का असर, नौकरी में आने का असर और इन महिलाओं ने दिखाया है कि वे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी कौशल, दक्षता और प्रतिबद्धता से निभा सकती है
महिला शक्ति को सौ सौ सलाम - सच है बेटी पढ़ेगी तो विकास गढेगी
अब बारी नई सरकार की कि पंचायत और नगरीय निकायों के बाद लोकसभा विधानसभा में इन्हें 50 % आरक्षण दें और क्षमता ताकत को आंकने की जरूरत नही पिछले 15 दिनों में ममता, मायावती, निधि राजदान,अंजना ओम कश्यप और बाकी सबने दिखा ही दिया है कि बेटी पढ़ाओ बेटी के साथ देश भी बचाओ

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