अबोला तो था नहीं पर एक चौमासा हो गया है कि कही से सहजता आती ही नहीं है और मौसम की मार बार बार पडने लगती है.............कितना पानी गिर चुका और अब तो सुबह सुबह ओंस की बूंदें भी याद दिला जाती है कि हम तो भूल ही गए है आँखों की कोरो से भी लगभग ऐसी ही धार निकल पडती है जब किसी फूल को खिलते हुए देखकर गिरते हुए देख लेता हूँ या उस तितली को देखकर जो घूम घूम कर मधु तो ले जाती है पर इन ओंस की बूंदों के समय तक नहीं पंहुच पाती........बस फिजां में एक सुरसुरी है और फ़िर लग रहा है कि हवाएं फ़िर से पूरब की ओर बहने लगी है....
The World I See Everyday & What I Think About It...