पुराना रिटायर्ड अधिकारी दफ्तर में बाबूओ से अपना हिस्सा वसूलने आया था नए साब ने ज्वाइन कर लिया था कह रहा था यार तुमने उस जिले में तो सारा का फंड निपटा दिया था, यहाँ में तो काफी कुछ छोडकर गया था अब तुम इस दिसंबर के पहले साफ़ कर देना फ़िर अतिरिक्त आवंटन मांग लेना, दस दिन फील्ड में घूमने की अनुमति तुमने ले ही ली है अब साला सरपंचो को धर दबोचो ओर ले लो जितना खीच सकते हो, हाँ अभी चार धाम की यात्रा कर आया हूँ काफी खर्च हो गया बस उसीकी वसूली करना है साला कुछ नहीं कमाया यहाँ रहकर भी(प्रशासन पुराण 26)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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