सुनना, गुनना और बोलना हमारी परम्परा ही नहीं बल्कि संस्कृति का एक अभिन्न अंग है. हमारे मालवे में बड़े बूढ़े और सयाने लोग इसी सब के साथ हमेंशा लगे रहते है ओर सबके साथ सब कुछ साझा करते है, और यही हमारी ताकत है. हम सब देवास के लोग जो लिखने -पढने का शौक रखते है कुछ लिखते पढते ओर गुनते बुनते है सबके साथ साझा ही नहीं करते पर दूसरों को भी सुनने में और समझने में यकीन करते है.
देवास में लिखने पढने वालो की एक वृहद लंबी परम्परा रही है संगीत, साहित्य, चित्रकला ओर ना ना प्रकार की ललित कलाएं इस शहर की विशेषता है और इस कला को हम साकार होते देखते है जब अपनी ही माटी के लोग उठते और खड़े होते है पूरी प्रतिबद्धता ओर उत्साह के साथ कि देश- प्रदेश में सबके साथ सबके लिए कुछ सार्थक करेंगे.
ऐसे ही एक साथी प्रमोद उपाध्याय को याद कर रहे है इस बार जो ताउम्र रचनाशील रहे ओर नवगीत की परम्परा में ऐसा कुछ कर गए कि बस हम उनके गीत पढते है और सोचते है कि एक व्यक्ति गीतकार होने के साथ एक अच्छा इंसान कैसे हो सकता है. ऐसे ही प्रमोद भाई को याद करते हुए देवास के ओटले पर हम सब मिल रहे है.
प्रिय अनुज डा. जीतेन्द्र श्रीवास्तव एक स्थापित ओर जाने माने कवि है वर्तमान में कविता के साथ जीतेन्द्र एक अच्छे आलोचक के रूप में भी स्थापित है ओर लगभग सभी जगहों से उनके आलेख, कवितायें प्रकाशित है कई किताबो ओर शोध पत्रों, शोध ग्रंथो के अध्येता जीतेन्द्र देवास में आ रहे है ओर देवास के "ओटले पर " अपनी कविताओ का पाठ करेंगे साथ ही दो दिनों में मित्रों से हिन्दी की नई कविता ओर कविता की दशा- दिशा पर भी खुली बातचीत करेंगे. आप सभी आमंत्रित है.
निवेदक-"'ओटला" के साथी डा प्रकाश कान्त, संदीप नाईक, बहादुर पटेल, मनीष वैद्य, मोहन वर्मा, ब्रजेश कानूनगो, जीवन सिंह ठाकुर, दिनेश पटेल, अमेय कान्त ओर सभी मित्र गण
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