Manish Sharma की ज़ुबानी ओटला
ओटला`यानि वह ठोस धरातल
वह संगम जो जोड़ता है
घर को बाहर से
ओटला जहाँ बच्चे खेलते
अनेकों खेल
यानि वह उनका नदी और पहाड़
जिस पर बैठ कोई भूखा
खा लेता भिक्षा में मिला खाना
जिस पर दोनों पैर आगे रख
गाय भी बाट जोहती रोटी की
तपती गर्मी की दोपहर
जहाँ सुस्ता लेता कुत्ता भी
ओटले पर शाम को
जाजम पर बैठे बुजुर्ग
वो दोस्तों का जमघट
बे साख्ता ठहाके , वो ज्ञान चर्चा
वो जिस पर बैठ कर लेते
सर्दी की गुनगुनी धूप का मजा
बरसात में तैरातें नाव जहाँ से
गर्मी की शाम करते जहाँ हंसी -ठट्ठा
पता है तुम्हे ..अपने मोहल्ले में अब
ओटले दिए जाते है ..किराये पर
बिकते है जहाँ गणपति ,पटाखे
और होली के रंग ..
इन्ही त्योहारों पर जो होते थे आबाद
अब बिके-बिके नजर आते है ..
ये ओटले जीवन के अर्थ -शास्त्र में
समाजवाद व पूंजीवाद का अंतर बतलाते है
ओटला`यानि वह ठोस धरातल
वह संगम जो जोड़ता है
घर को बाहर से
ओटला जहाँ बच्चे खेलते
अनेकों खेल
यानि वह उनका नदी और पहाड़
जिस पर बैठ कोई भूखा
खा लेता भिक्षा में मिला खाना
जिस पर दोनों पैर आगे रख
गाय भी बाट जोहती रोटी की
तपती गर्मी की दोपहर
जहाँ सुस्ता लेता कुत्ता भी
ओटले पर शाम को
जाजम पर बैठे बुजुर्ग
वो दोस्तों का जमघट
बे साख्ता ठहाके , वो ज्ञान चर्चा
वो जिस पर बैठ कर लेते
सर्दी की गुनगुनी धूप का मजा
बरसात में तैरातें नाव जहाँ से
गर्मी की शाम करते जहाँ हंसी -ठट्ठा
पता है तुम्हे ..अपने मोहल्ले में अब
ओटले दिए जाते है ..किराये पर
बिकते है जहाँ गणपति ,पटाखे
और होली के रंग ..
इन्ही त्योहारों पर जो होते थे आबाद
अब बिके-बिके नजर आते है ..
ये ओटले जीवन के अर्थ -शास्त्र में
समाजवाद व पूंजीवाद का अंतर बतलाते है
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