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बेटियाँ कब माँ की भूमिका निभाना शुरु कर देती हैं

बिटिया दिवस पर पुरुषोत्तम अग्रवाल की एक अदभुत कविता........

"बारह बज गये, अब सो जाओ. सुबह छह बजे मुझे सोते नजर आना. यह नहीं कि मैं नीचे आऊं तो चार बजे सुबह पढ़ रहे हैं..... कोई बात हो तो मुझे बुला लेना, और हाँ, यह जो ली है, होम्योपैथिक दवा है, अब न कुछ खाना, न कुछ पीना....और सिगरेट तो....खबरदार..."

पता ही नहीं लगता, बेटियाँ कब माँ की भूमिका निभाना शुरु कर देती हैं....
Purushottam Agrawal धन्यवाद संदीप जी
Sandip Naik Sam आपकी कविता है या जीवन पुरुषोत्तम जी....................इतना सरल और सीधा अर्थ कि बस युही गुजर जाती दिल से कि बस!!!!
Purushottam Agrawal यह वाक्य जरूर कविता है- 'आपकी कविता है या जीवन...इतना सरल और सीधा अर्थ कि बस यूंही गुजर जाती दिल से...' एक बार फिर शुक्रिया संदीप ज

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