Skip to main content

Interesting Discussion on Face Book ref Modi Mullaa and Topi

हम कब आदिम युग के प्रतीकों को इस्तेमाल करते रहेंगे कितने ब्राहमण जनेऊ पहनते है या कितने मुस्लिम टोपी पहनते है अब जबकि हमारे सामने और भी मुद्दे लड़ाई के है तो ये छोडकर आगे बढे कुछ और करे उस आदमी की चिंता करे जो मात्र ३२ या २५ रूपये में जिंदगी से दो चार हो रहा है और जिसकी फिक्र ना मोदी को है ना मौलवी मुल्ला को है इनके पेट भरे हुए है और खा खाक्रर ये मदमस्त हो गए है इसलिए उपवास करना पड रहा है इनको ...........
Sanjay Jothe बिलकुल सही दादा... जिनके लिए मज़हब को थोड़ी देर भूल कर नयी दुनिया से रास्ता जोड़ने की जरूरत है वे जान बुझकर खुद को और अपने गरीब लोगों को टोपी और जनेऊ में उलझाए हुए हैं... इस सबमे सबसे ज्यादा नुक्सान बेशक टोपी को ही होता आया है और होता रहेगा... जनेऊ तो 'अन्दर की बात' है इसलिए खामोश है, टोपी जगजाहिर होती है इसलिए अनावश्यक रूप से मुखर है, इसीलिए राजनेताओं की पहली टार्गेट है, न सिर्फ इस मुल्क में बल्कि पूरी दुनिया में...

Vishal Pandit I oppose...Janeu or cap are the symbols....and without these symbols we are nothing..........this is not a matter of religion...its a matter of class...........class war is going on........Marx was right

Sandip Naik Sam जनेऊ और टोपी यदि हमारे प्रतीक और अस्मिता है तो हमें पत्थर युग में जाने की आवश्यकता है नाकि इंटरनेट पर बैठकर रोना धोना करने की ....ये बर्बर प्रतीक है और मानव सभ्यताएं नष्ट हो गयी जो प्रतीकों के भरोसे रही चाहे वो बेबीलोन की हो सिंधु घाटी की या ग्रीक मिस्र की ......यदि हमारी जिंदगी प्रतीकों के सहारे ही है तो जीवन व्यर्थ है और हम कहा जी रहे है यह भी सवाल है, रहा सवाल संजय की बात का कि जनेऊ अंदर की बात है बाहर टोपिया दिखती है तो सर पर उगी चोटिया भी दिखती है इसी चोटी के लिए देवास में संघ के कार्यकर्ता की ह्त्या हुई थी और आडम्बर अंदर हो या बाहर वो सिर्फ एक कायरता है ना कि पहचान.....इन्ही आडम्बरो की वजह से इस देश के बड़े या यु कहू कि बहुसंख्यक समुदाय ने अपने आप को दलित, सवर्ण और अल्पसंख्यक में बाँट दिया है और यह सारी लड़ाई प्रतीकों और संस्कारों की है जो बेहद खतरनाक है. मुझे लगता है सबको अज़गर वजाहत का नाटक "सबसे सस्ता गोश्त" पढाना चाहिए ताकि थोड़े जले साफ़ हो सके.....जितना कबाडा इस देश में ब्राह्मणों ने किया है उतना कोई जल्लाद भी नहीं कर सकता अम्बेडकर पूरी जिंदगी यही भोगते रहे ......

Vishal Pandit mai fir bhi aapke kathan se sahmat nahi hu

Sandip Naik Sam Pandit, its Democracy you may and better you may nt but fact is fact we all know but due to our so called family and conservative values unable to accept publicly becoz we believe in maintaining statuesque, and this gives us RELIEF and keep us far from all muddles and Mess..............!!!!!!!!!!!

Vishal Pandit I proud of being a bramhin and I preserve symbols.........u also go through history and found in america or west...as traditional systems...symbols vanished....they are so called secular but from inside...they have another face....attacks in AUS for example.........sabhyatao ko jeevit rakhne ke madhyam hai prateek.....mai janeu pahan ke bhi moderate ho sakta hu aur janeu pahne bina kattar.....its my own choice

Comments

Popular posts from this blog

हमें सत्य के शिवालो की और ले चलो

आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...

संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है

मुझसे कहा गया कि सँसद देश को प्रतिम्बित करने वाला दर्पण है जनता को जनता के विचारों का नैतिक समर्पण है लेकिन क्या यह सच है या यह सच है कि अपने यहाँ संसद तेली का वह घानी है जिसमें आधा तेल है आधा पानी है और यदि यह सच नहीं है तो यहाँ एक ईमानदार आदमी को अपने ईमानदारी का मलाल क्यों है जिसने सत्य कह दिया है उसका बूरा हाल क्यों है ॥ -धूमिल

चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास

शिवानी (प्रसिद्द पत्रकार सुश्री मृणाल पांडेय जी की माताजी)  ने अपने उपन्यास "शमशान चम्पा" में एक जिक्र किया है चम्पा तुझमे तीन गुण - रूप रंग और बास अवगुण तुझमे एक है भ्रमर ना आवें पास.    बहुत सालों तक वो परेशान होती रही कि आखिर चम्पा के पेड़ पर भंवरा क्यों नहीं आता......( वानस्पतिक रूप से चम्पा के फूलों पर भंवरा नहीं आता और इनमे नैसर्गिक परागण होता है) मै अक्सर अपनी एक मित्र को छेड़ा करता था कमोबेश रोज.......एक दिन उज्जैन के जिला शिक्षा केन्द्र में सुबह की बात होगी मैंने अपनी मित्र को फ़िर यही कहा.चम्पा तुझमे तीन गुण.............. तो एक शिक्षक महाशय से रहा नहीं गया और बोले कि क्या आप जानते है कि ऐसा क्यों है ? मैंने और मेरी मित्र ने कहा कि नहीं तो वे बोले......... चम्पा वरणी राधिका, भ्रमर कृष्ण का दास  यही कारण अवगुण भया,  भ्रमर ना आवें पास.    यह अदभुत उत्तर था दिमाग एकदम से सन्न रह गया मैंने आकर शिवानी जी को एक पत्र लिखा और कहा कि हमारे मालवे में इसका यह उत्तर है. शिवानी जी का पोस्ट कार्ड आया कि "'संदीप, जिस सवाल का मै सालों से उत्तर खोज रही थी व...