ये छोटी सी नगर पंचायत थी जो प्रदेश के बड़े आदमी की विधानसभा में आती थी इसलिए ये बड़ी महत्वपूर्ण थी यहाँ के मुख्य अधिकारी बड़े लोच वाले सज्जन थे प्रोटोकाल के तहत जो भी वीआईपी आते थे उनका बाकायदा फल फुल और काजू पिश्तो से स्वागत करते थे, बदले में सालो से टिके थे छोटी जगह पर ऐसा दफ्तर कि साला जिला शरमा जाए और पंचायत में चमचमाती गाडिया चाहे अग्निशमन वाहन हो या एम्बुलेंस या अपनी खुद की गाड़ी, सब सेट था. काम यही कि कोई भी मरे खपे या पैदा हो सबकी सेवा सुश्रुआ करना, ऊपर तक से लाभ दिला देना और चुने हुए प्रतिनिधियों के भी खास थे क्योकि कहा ना कि रीढ़ की हड्डी ही नहीं, खूब पुण्य कमा रहे थे बाकी तो सब जाहिर ही है और ऊपर से तुर्रा यह कि जिले के अधिकारियों के जेब में रखते थे क्योकि बड़े आदमी के छोटे से कारिंदे है (प्रशासनिक पुराण 33)
आभा निवसरकर "एक गीत ढूंढ रही हूं... किसी के पास हो तो बताएं.. अज्ञान के अंधेरों से हमें ज्ञान के उजालों की ओर ले चलो... असत्य की दीवारों से हमें सत्य के शिवालों की ओर ले चलो.....हम की मर्यादा न तोड़े एक सीमा में रहें ना करें अन्याय औरों पर न औरों का सहें नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." मैंने भी ये गीत चित्रकूट विवि से बी एड करते समय मेरी सहपाठिन जो छिंदवाडा से थी के मुह से सुना था मुझे सिर्फ यही पंक्तिया याद है " नफरतों के जहर से प्रेम के प्यालों की ओर ले चलो...." बस बहुत सालो से खोज जारी है वो सहपाठिन शिशु मंदिर में पढाती थी शायद किसी दीदी या अचार जी को याद हो........? अगर मिले तो यहाँ जरूर पोस्ट करना अदभुत स्वर थे और शब्द तो बहुत ही सुन्दर थे..... "सब दुखो के जहर का एक ही इलाज है या तो ये अज्ञानता अपनी या तो ये अभिमान है....नफरतो के जहर से प्रेम के प्यालो की और ले चलो........"ये भी याद आया कमाल है मेरी हार्ड डिस्क बही भी काम कर रही है ........आज सन १९९१-९२ की बातें याद आ गयी बरबस और सतना की यादें और मेरी एक कहानी "सत...
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